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Ritu_Upadhyay
सीरत देखनी हो तो सूरत मत देखो धरा का पता गगन में नहीं मिलता.! ©Rituu सीरत अर्थात् आंतरिक सुन्दरता धरा अर्थात् पृथ्वी गगन अर्थात् आसमान.
#Seema.k*_-sailent_*write@
सांसो को तुम काबू में रखना पाओगे, आओ चलो क्या तुम फिर से पेड़ लगाओगे कुछ अपने लिए_ कुछ अपनों के लिए- क्या मिलकर नया प्लेटफार्म बनाओगे! ©seema kapoor पृथ्वी दिवस प्रथ्वी दिवस #EarthDay2021
Mahesh Kopa
पृथ्वी की पुकार ना मै कोई कन्या हूँ, ना किसी की जायदाद हूँ। ना छेड़ मुझे तू इनकी भांँति, कहने को संसार हूँ, पर मै कूड़ादान हूँ। शताब्दी से अधिक न सहती, तुम देते इतना पीढ़ा हो। कहने को संसार हूँ, पर मै कूड़ादान हूँ। इतना कष्ट न दे तु मुझको, ये मेरी सब्र से बाहर है। कहने को संसार हूँ, पर मै कूड़ादान हूँ। गंगा, जमूना-सरस्वती, वन-वृक्ष श्रृंगार मेरी। क्या कहूँ उस अल्पभू-मालिक से, सुनता न मेरी पुकार है। कहने को संसार हूँ, पर मै कूड़ादान हूँ। ना करता तू मेरी परवाह, बनता है अब स्वार्थ क्यों। गर्मी से मै झुलस रही हूँ, अब तो कर श्रृंगार मेरी। कहने को संसार हूँ, पर मै कूड़ादान हूँ। लज्जा मुझको मुझ पर आती, कैसी धरती माता हूँ। मेरे आंगन जन्म लिया तू, आंगन स्वच्छ न रखता क्यूँ। कहने को संसार हूँ, पर मै कूड़ादान हूँ। नोक सूईं की नहीं तू लगता, घमंड की तुझमे आकार नहीं। एक समय ऐसा आयेगा, श्रृंगार स्वयं कर जाऊंगी। कहने को संसार हूँ, पर मै कूड़ादान हूँ। फिर ना कहना तुम मुझसे, धरती कैसी माता है। स्वार्थ न मुझको बनने देना, निःस्वार्थ अब होता जा। तू तो अपना देख रहा है, मै भी वो कर जाऊँगी। कहने को संसार हूँ, पर मै कूड़ादान हूँ। क्रोध अधिक आती है तुझ पर, जैसे तुझसा स्वार्थ नहीं। श्रृंगार तू करता खूद ही, मेरी कोई बिसात नहीं। कहने को संसार हूँ, पर मै कूड़ादान हूँ। ✍️महेश कोपा ©Mahesh Kopa पृथ्वी की पुकार
Mahesh Kopa
गंगा, जमूना-सरस्वती, वन-वृक्ष श्रृंगार मेरी। क्या कहूँ उस अल्पभू-मालिक से, सुनता न मेरी पुकार है। कहने को संसार हूँ, पर मै कूड़ादान हूँ। ©Mahesh Kopa पृथ्वी की पुकार #Earth_Day_2020
Mahesh Kopa
ना करता तू मेरी परवाह, बनता है अब स्वार्थ क्यों। ऊष्मा से मै झुलस रही हूँ, अब तो कर श्रृंगार मेरी। कहने को संसार हूँ, पर मै कूड़ादान हूँ। ©Mahesh Kopa पृथ्वी की पुकार #Earth_Day_2020
Mahesh Kopa
नोक सूईं की नहीं तू लगता, घमंड की तुझमे आकार बड़ी। एक समय ऐसा आयेगा, श्रृंगार स्वयं कर जाऊंगी। कहने को संसार हूँ, पर मै कूड़ादान हूँ। फिर ना कहना तुम मुझसे, धरती कैसी माता है। स्वार्थ न मुझको बनने देना, निःस्वार्थ अब होता जा। तू तो अपना देख रहा है, मै भी वो कर जाऊँगी। कहने को संसार हूँ, पर मै कूड़ादान हूँ। क्रोध अधिक आती है तुझ पर, जैसे तुझसा स्वार्थ नहीं। श्रृंगार तू करता खूद ही, मेरी कोई बिसात नहीं। कहने को संसार हूँ, पर मै कूड़ादान हूँ। ©Mahesh Kopa पृथ्वी की पुकार #Earth
Krishna tripathi
परम आनंद :एक ऐसी अनुभूति जब आप अनुभव करते हैं कि आप एक ऐसी अनुभूति को अनुभव करने जा रहे हैं जो आपने पहले कभी अनुभव नहीं की है। --krishna tripathi #आंतरिक शान्ति