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वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। त्वामग्ने धर्णसिं विश्वधा वयं गीर्भिर्गृणन्तो नमसोप सेदिम। स नो जुषस्व समिधानो अङ्गिरो देवो मर्तस्य यशसा सुदीतिभिः ॥ पद पाठ त्वाम्। अ॒ग्ने॒। ध॒र्ण॒सिम्। वि॒श्वधा॑। व॒यम्। गीः॒ऽभिः। गृ॒णन्तः॑। नम॑सा। उप॑। से॒दि॒म॒। सः। नः॒। जु॒ष॒स्व॒। स॒म्ऽइ॒धा॒नः। अ॒ङ्गि॒रः॒। दे॒वः। मर्त॑स्य। य॒शसा॑। सु॒दी॒तिऽभिः॑ हे (अग्ने) विद्वन् ! आप जैसे हम लोग (गीर्भिः) वाणियों से (गृणन्तः) स्तुति करते हुए (विश्वधा) संसार के धारण करने वा (धर्णसिम्) अन्य को धारण करनेवाले (त्वाम्) आपके (नमसा) सत्कार से (उप, सेदिम) समीप प्राप्त होवें और हे (अङ्गिरः) अङ्गों में रमते हुए ! (सः) वह (देवः) दाता (समिधानः) प्रकाशमान आप (मर्त्तस्य) मनुष्य के (सुदीतिभिः) उत्तम दानों से (यशसा) जल, अन्न वा धन से (नः) हम लोगों का (जुषस्व) सेवन करें, वैसे (वयम्) हम लोग आपके समीप स्थित होवें ॥ Hey (fire) We like you (Giribhi:) praising from the Vyāras (Grinanyah), attaining (Visvadha) the wearing of the world or (Dharnasim) holding the other (Tvam) by your (Namassa) hospitality (Up, Sedim) will come near and Agirah:) Crying in the eggs! (S:) He (Dev:) Giver (Samidhan:) Prakashman You (Murtasya) Man's (Suditibhi:) From the best grains (Yashsa) Water, With food or wealth (Nah) We should consume people (lust), by the way (Vyam) we People will be located near you. ( ऋग्वेद ५.८.४ ) #ऋग्वेद #वेद #धारणकर्त्ता #ईश्वर #सर्वेश्वर
'मनु' poetry -ek-khayaal
वेद के पहले न सत्य था न असत्य, प्रथम वेद में देवता भी उन्हें माना गया जो दृश्यमान प्राकृतिक शक्ति उर्जा स्त्रोत एवम तत्व थे, प्रथम वेद स्तुति संग्रह है, मानव बुद्धि के विकास के साथ साथ समाज और ईश्वर की धारणा को बल दिया गया। 'मनु' वेद
netrapal bharat
" चार वेद " 1. ऋग्वेद 2.यजुर्वेद 3.सामवेद 4. अथर्ववेद ©netrapal bharat वेद
Ruchi Sharma
शक्ति है भक्ति है जन्मों की मुक्ति है जीवन का ये संपूर्ण सार है... युग युग से कण कण में सृष्टि के दर्पण में वेदों की कथा अपार है.. धर्मो की गाथा है देवों की भाषा है सदियों के इतिसाह को प्रणाम है... ©Ruchi Sharma वेद सार
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। कः स्वि॑देका॒की चर॑ति॒ कऽउ॑ स्विज्जायते॒ पुनः॑। किस्वि॑द्धि॒मस्य॑ भेष॒जं किम्वा॒वप॑नं म॒हत्॥ पद पाठ कः। स्वि॒त्। ए॒का॒की। च॒र॒ति॒। कः। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। स्वि॒त्। जा॒य॒ते॒। पुन॒रिति॒ पुनः॑। किम्। स्वित्। हि॒मस्य॑। भे॒ष॒जम्। किम्। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। आ॒वप॑न॒मित्या॒ऽवप॑नम्। म॒हत्॥ हे विद्वानो ! हम लोग तुम को पूछते हैं कि (कः स्वित्) कौन (एकाकी) एकाएकी अकेला (चरति) विचरता है? (उ) और (कः, स्वित्) कौन (पुनः) बार-बार (जायते) प्रगट होता है? (किम्, स्वित्) क्या (हिमस्य) शीत का (भेषजम्) औषध और (किम्) क्या (उ) तो (महत्) बड़ा (आवपनम्) बीज बोने का स्थान है? ॥ Hey scholars! We ask you (who: self) who is (lonely) lonely (charati) wandering? (A) and (A: self), who (again) appears again and again (jayate)? (Kim, Svitta) Is (Himsya) Cold (Bheshajam) Drug and (Kim) Is (U) So (great) big (Aappanam) is the place of sowing seeds? ( यजुर्वेद २३.९ ) #यजुर्वेद #वेद
manoj kumar jha"Manu"
"यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वते। वसन्तोSस्यासीदाज्यं ग्रीष्मSइध्म: शरद्धवि: ..."।। देवताओं ने उस (विराट) पुरुष के शरीर में ही हविष्य की भावना करके यज्ञ सम्पन्न किया। इस यज्ञ में वसन्त ऋतु घृत, ग्रीष्म ऋतु इन्धन और शरद ऋतु हविष्य हुए अर्थात देवताओं ने इनमें यह भावना की। (इस मंत्र में सृष्टि रूप यज्ञ का वर्णन)। पुरुषसूक्त वेद पढ़ो