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Parasram Arora
कोई पुरखो को पानी पहुंचा रहा हैँ कोइ गंगाओ मे पाप धो रहा हैँ कोई पथर की प्रतिमाओं के सामने बिना भाव सर झुकाये बैठा हैँ धर्म के नाम पर हज़ार तरह की मूढ़ताएं प्रचलन मे हैँ धर्म से संबंध तो तब होता हैँ जब आदमी जागरण की गुणवत्ता हासिल कर लेता हैँ जहाँ जागरण होगा वहा अशांति कभी हो ही नहीं सकती क्यों कि जाग्रत आदमी विवेकी होता हैँ इर्षा क्रोध की वृतियो से ऊपर उठ चुका होता हैँ औदेखा जाय तो धर्म औऱ शांति पर्यायवाची शब्द हैँ धर्म औऱ शांति...... पर्यायवाची शब्द हैँ
Parasram Arora
खून को पानी का पर्यायवाची मत मान. लेना अनुभन कितना भी कटु क्यों न हो वो.कभी कहानी नही बन सकताहै उस बसती मे सच बोलने का रिवाज नही है यहां कोई भी आदमी सच.को झूठ बना कर पेश कर सकता है ताउम्र अपना वक़्त दुसरो की भलाई मे खर्च करता रहा वो ऐसा आदमी कुछ पल का वक़्त भी अपने लिये निकाल नही सकता है ©Parasram Arora पर्यायवाची......
Monika jayesh Shah
हम दोनों की जोड़ी अब कोई क्या करे जब किस्मत ने खेली होली.. सजा सावरा रूप ये मेरा खेल गया अटखेली... रंग रूप मेरा बिगड़ गया.. बुरा ना मानो ये है.. हमजोली। मुश्किल से मिलता हैं.. मनमीत.. यही है.. हर एक के जीवन का संगीत.. ©Monika jayesh Shah #हमजोली
Mohan Sardarshahari
मैं दिल का राजा तू देशी गर्ल तू मेरी शहजादी मैं तेरा फकीर तू भरती प्यार से झोली जीवन लगता आंख मिचौली हर राह की तू हमजोली। हर सपना बना हकीकत मैंने माना तुझे मल्कियत तूने समझाई असलियत आती गई हर सलाहियत जीवन नैया जब भी डोली चिंता नहीं रही जबसे है हर राह की तू हमजोली।। ©Mohan Sardarshahari # हमजोली
manoj kumar jha"Manu"
धरती का दुःख क्यों, समझते नहीं तुम। धरा न रही अगर, तो रहोगे नहीं तुम।। सुधा दे रही है वसुधा हमें तो, भू को न बचाया, तो बचोगे नहीं तुम।। "भूमि हमारी माता, हम पृथिवी के पुत्र"* वेदवाणी कह रही, क्या कहोगे नहीं तुम।। (स्वरचित) * माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या: (अथर्ववेद १२/१/१२) धरती का दुःख हम नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा। इसमें धरती के पर्यायवाची शब्द भी हैं।
भानु
थोड़ा -सा गुलाल जो लगाया मैंने पी के गालों पर। रंग शर्म का चढ़ गया फिर मेरे गालों पर।। पहरा बैठा दिया आज रंगों का अपनों ख्यालों पर। क्यों दूँ मै ध्यान आज रंगहीन से सवालों पर।। भर दी प्यार के रंग की चाबी अरमानों के तालों पर। सजाया हैं मोहब्बत का रंगीन गजरा खुद के बालों पर।। तोड़ दी रंग से जो भी थी बंदिशे समाज की पायलों पर। असर हुआ होली का मेरी थमी सी चालों पर।। #होली-हमजोली
Rajendrakumar Jagannath Bhosale
कौन समजेगा ये शिक्षा प्रणाली ज्ञान की नीव हो गयी खोकलीll धृ ll छा गया अज्ञान का साया अनपढ बना सियासी राया शिक्षा की धारा थम गयी सियाशी उलझन बढ गयी बेगाने संस्थओंकी बनी हमजोली ll1ll.... कवी राजेंद्रकुमार जगन्नाथ भोसले मो.क्रं.9325584845 ©rajendrkumar bhosale #हमजोली #MorningTea
Jogendra Singh writer
आपके अनुसार Nojoto का पर्यायवाची क्या है Answer in comment section ©Jogendra Singh Rathore 6578 nojoto ka पर्यायवाची #Light