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Amit Singhal "Aseemit"
बहुत नख़रे दिखाता है और बहुत तड़पाता है, करवाचौथ पर देखो तो कहीं नज़र न आता है। बादलों के पीछे से करता रहता है तांक झांक, बहुत नटखट है, बहुत नख़रीला है यह मृगांक। ©Amit Singhal "Aseemit" #मृगांक
Shikha Srivastava
मृगमरीचिका सा ये जीवन अनेक तृष्णा से भरा हर इंसान के चेहरे पर झूठ का मुखौटा चढ़ा सत्य से अवगत होकर भी हर कोई मौन खड़ा आरजू नहीं रही अब किसी को गलत ठहराने की ©Shikha Srivastava #saval #मृगांमारीच #mukhota #dokha
मिलन राधाकृष्ण
मंजिल की राह में रूकावटे हर बार नए रूप में हैं.. इसमें कई असल कारण भी हैं, कई चहते हैं और कई बहाने भी हैं, निराशा भी है, असफलताओं का ढेर भी है पर सब कुछ मुस्करा कर पार कर लेता हूं उस एक मंज़िल के लिए.... ©MAAN THE CREATOR By- मृगांक #Books
Devanand Jadhav
मृगाच्या शिडकाव्यात गंध मातीचा येई पहिल्याच पावसाने धरणी धुंद होई ✍🏻© •देवानंद जाधव• jdevad@gmail.com 9892800137 / 9594423428 ©Devanand Jadhav मृगाचा पाऊस...गंध मातीचा #Stars
S Ram Verma (इश्क)
जिस मृगांक की आँखों में निशा रहती है ; आठों पहर उसके दिन भी हसीं रातों सरीखे ही होते होंगे ना ! #मृगांक #आंखें #आठों#पहर
Swarima Tewari
नवजात सा पवित्र छुईमुई सा नाज़ुक रजनी सा गहरा मृगांक सा शांत देह से परे ब्रह्मांड सा विस्तृत उन्मुक्त पंछी सा हमारा "प्रेम" मुठ्ठी में रेत रेत पर घरौंदा आंँधी में तिनका हथेली पर नीर रोशनी में सितारे गणित सा जटिल मृत्यु रोकता सा हमारा "मिलन" मृगांक~चंद्रमा, रजनी~रात, नीर~पानी #yqbaba #yqdidi #yqhindi #hindiquotes #hindipoetry #yqdidihindi #pc_pinterest
SURAJ आफताबी
गर्भस्थ कृति मेरी नि:सन्देह ही तेरा असीम विस्तार जन्मेगी, तृण पर जमी तुषार सा नेह अनुबन्ध अपना; वो मृगांक ही मेरा वजूद, सुबह की पहली किरन संग ये बूँद आखिर मिट्टी में ही मिलेगी ! तुषार- जमी बर्फ की बूँद मृगांक- चाँद #yqbaba #yqdidi #yqhindi #yqlove #love #life #yqquotes #surajaaftabi
SURAJ आफताबी
सोलह श्रृंगार उस तिरिया ने चन्द्र की सोलह कलाओं से चुराये "करवा" लिये छलनी से उस चाँद को जब तकेगा मेरा मृगांक बड़ा ही हसीन होगा वो मंजर, देखते हैं पहले कौन शरमाये!! प्रतिस्पर्धा कड़ी होगी आज..😜🤗 तिरिया-स्त्री मृगांक-चाँद #yqbaba #करवाचौथ #chand #चाँद #yqdidi #love #lovequotes #surajaaftabi
SURAJ आफताबी
गर कभी श्वाँसों की गति मेरी अवरुद्ध होगी देह मेरी जर्जर व काशीवास की ओर लुब्ध होगी तुम सारे आबंध खोल, सारे उपालंभ समय के पीछे छोड़ गोद में रख सर मेरा अंतिम बार फिरसे मस्तक सहलाओगी ना मैं रोक लूँगा नजरों को तेरे रस्ते में मगर बताओ आओगी ना जब सूरज की किरणें मेरे प्राणों से क्षुब्ध होगी मृगांक की ज्योत्सना भी मेरी विदाई पर अत्यंत मुग्ध होगी मेरे सारे प्रणय आँसूओं में भर, स्वयं के प्रण सारे मोम-से पिघला कर गीत वही पुराना अपने होंठों से गा अंतिम बार फिरसे सुलाओगी ना मैं रोक लूँगा मँद साँसों को तेरे सदके में मगर बताओ आओगी ना अंत में जब अक्रिय देह पंडित-पुरोहितों के मंत्रों से शुद्ध होगी पंचतत्व होंगे माटी में विलीन और आत्मा स्वयं बुद्ध होगी तुम तोड़ अपना मौन इक अंतिम बार फिरसे "आफताब" बुलाओगी ना मैं मुस्काते हुये तुम्हारे स्पर्श से हो जाऊँगा विदा मगर बताओ आओगी ना बताओ आओगी ना कविता..🙏🙏 काशीवास- मृत्यु लुब्ध- आसक्त, आकर्षित या मोहित आबंध - गाँठ उपालंभ- गिले-शिकवे