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Author Harsh Ranjan
आज़ादी तीन रंगों की घनी धुंध है, जिसमें एक विदीर्ण असंतुलित सा चक्का बढ़ा जा रहा है, बगल के डंडे के सहारे खड़े होने की कोशिश करता एक अपाहिज सामने देख रहा है एक आस में और वहाँ खड़ा वो बच्चा मुंह फेरकर, आँखें मूँदकर, एक राष्ट्रधुन गा रहा है, फूल बिखरे हैं इस क़दर कि कहने में हिचक होती है, श्रद्धांजलि अर्पित हुई है या कोई स्वागत किया जा रहा है! तुम्हारा शब्द-चयन गलत था, आज़ादी नहीं, अधिकारों का हर-फेर था वो, देश की सीमाओं तक पर राय लेने आज भी तुम्हें दिल्ली कोई नहीं बुला रहा है! पंद्रह तारीख
Ashab Khan
मैंने पंद्रह साल कि रातें यूं ही तन्हाई मे तुझे याद करते करते बिता दिये .बस अब बहुत हुआ अब नही .में तेरे जिस्म से बनती हुई तस्वीर से अब तन्हाई नही काट सकता मुझे पता है अगर तेरी याद से बाहर निकला तो में बिखर सा जाऊंगा .तेरे हाथों मे लगी मेहंदी कि खुशबू अब भी हवाओं से होते हुये मेरे कमरे मे दाखिल हो जाती है और फिर एक बार मुझे तेरी याद मे तडपता हुआ छोड़ जाती है .बाहर गली मे बजते हुये हर पायल कि आवाज सुन कर मे दौड़ कर खिड़की पर चला आता हूं मगर तुम्हें ना पाकर फिर दिल थाम कर वही बैठ जाता हूं बस अब नही होता मुझसे. तेरी बाहों मे लेट कर कविता पढ़ने कि ख्वाहिश अधूरी ही रह गई है मैंने बंद कमरे का दरवाजा खोल भी दिया और हवाओं ने उन सारी तन्हाई पर कब्जा कर लिया और में तुम्हारी याद से आजाद में भी खुश हूं इस आजादी से जैसे बरसों बाद कोई गुलाम कैद से आजाद हुआ हो मगर न जाने क्य ऐसा लग रहा है तेरी याद अब भी कहीं न कहीं मेरे अंदर कब्जा किये हुये है बस अब बहुत हुआ सुरज निकलने से पहले मुझे आजाद कर दो अपनी यादों से में पंद्रह साल घुट घुट कर जीता रहा लेकिन अब बस में आजाद होना चाहता हूं मुझे आजाद कर दो क्य न मुझे मरना ही क्य न पड़े ,,, असहब खान पंद्रह साल....
Author Harsh Ranjan
आज़ादी तीन रंगों की घनी धुंध है, जिसमें एक विदीर्ण असंतुलित सा चक्का बढ़ा जा रहा है, बगल के डंडे के सहारे खड़े होने की कोशिश करता एक अपाहिज सामने देख रहा है एक आस में और वहाँ खड़ा वो बच्चा मुंह फेरकर, आँखें मूँदकर, एक राष्ट्रधुन गा रहा है, फूल बिखरे हैं इस क़दर कि कहने में हिचक होती है, श्रद्धांजलि अर्पित हुई है या कोई स्वागत किया जा रहा है! तुम्हारा शब्द-चयन गलत था, आज़ादी नहीं, अधिकारों का हर-फेर था वो, देश की सीमाओं तक पर राय लेने आज भी तुम्हें दिल्ली कोई नहीं बुला रहा है! पंद्रह तारीख
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लेखन और मन लेखन और मन का बड़ा ही गहरा नाता है होता, कोरे कागज़ पर लिखावट में जज़्बातों की स्याही रंगत में शब्दों की माला से जीवन से हमारे जुड़ाव है रखते,जीवन की हकीक़त के हर एक लम्हे यादों के पन्नों में हैं बदल जाते,अच्छे बुरे लम्हे जो आये उनकी दास्तां हम है सुनाते, आसां नहीं होता खुद को शब्दों में ढ़ाल पाना कभी अतीत की पीड़ा तो कभी भविष्य की चिन्ता तो कभी पारिवारिक रिश्तों के भाव तो कभी भक्ति तो कभी देशप्रेम से लगाव, बढ़ती सुंदरता इनकी और भी जब बनावटीपन से दूरी रखकर जो घटित होता लम्हा उन्ही तजुर्बे को ख़ूबसूरती से शब्दों से संजोकर किताब जीवन की तैयार है हो जाती, रमज़ान_कोरा_काग़ज़_2022 पंद्रहवी रचना👉लेखन_और_मन #tarunasharma0004 #hindipoetry #trendingquotes #KKRलेखनऔरमन #collabwithकोराकाग़ज़ #रमज़ा
NR production (Nisha Ritesh)
Dear Moon पंद्रह दिन लगते हैं चांद को रात हो जाने में। मोहब्बत के लिए एक पक्ष ज़रूरी है। पंद्रह दिन लगते हैं चांद को रात हो जाने में। मोहब्बत के लिए एक पक्ष ज़रूरी है।
YumRaaj ( MB जटाधारी )
शहीद शब्द से नहीं जोड़ा जाना चाहिए बलिदान को। कुतर्क कर सकते हो किंतु वास्तविकता बदलेगी नहीं शहीद शब्द की। "बलिदान" और "शहीद" शब्द में उतना ही अंतर है जितना बिना नेत्रों के ज्योति! बलिदानियों को शत् शत् नमन वंदन 🙏🫡🚩🧘🔱 ©YumRaaj ( MB जटाधारी ) #बलिदानदिवस में उन पंद्रह में ठीक हुं जो बलिदान के साथ हैं।🫡🚩🧘🔱 #Nojoto #nojotohindi #YumRaaj369