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रजनीश "स्वच्छंद"
मेरे खेतों की क्यारियां।। मेरे गांव का अहरा, घर का ठिकाना बतातीं आलियाँ। क्यारियों में बहता कलकल पानी, लहलहाती गेंहूँ की बालियां। अपनेपन का संचार लहू में,हर चेहरा सबको पहचानता। कोई कहाँ क्या करता है,हर की व्यथा हर कोई जानता। रब्बी की फसल का मौसम,खेतों में लगता अलाव होरहा। एक मंडली, मुस्काते चेहरों की,बच्चा भी बैठ बाट है जोह रहा। रमुआ अपने गमछे में नमक बांधे आया,संजइया भुनी मिर्ची संग ले आया है। क्या इटालियन, मेक्सिकन क्या,सबके स्वादों का रंग ले आया है। हर मुख, आग की गर्मी में,सूरज की लाली को समेटे बैठा। बातें घर की, सारे संसार की,कोई पैर पसारे तो कोई लेटे बैठा। कुछ समय पहले ही,कटी थी फसल धान की। खरीफ ने कहा था अलविदा,शुरू कथा रबी के बिहान की। हर खलिहान फसलों का ढेर,पिंजों की भरमार लगी। चूडों के मिल भी लगे थे,बोरियों की लंबी कतार लगी। शहर से संवाद है आया,संक्रांति के चूड़े भिजवा दो। घर बैठी दादी भी बोली,काली वाली जुड़े भिजवा दो। बूढ़ा बाप कभी ना नही कहता,ले सर बोरी स्टेशन को चला है। कितना अंतर है गांव शहर में,कहाँ बेटे से बाप पला है। हर दर्द समेटे गमछे में,देखो वहां किसान खड़ा है। हम रिस्क की बातें करते है,वो सर्दी गर्मी से कहाँ डरा है। हर पहर आसमा ओढ़े चलता वो,धरती से सोना उपजाता है। फिर गांव शहर की धुंध में आ,उसका अस्तित्व कहाँ खो जाता है। झंडा लिए वो दूर खड़ा है,नेता बटोरते तालियां। फिर, क्यारियों में बहता कलकल पानी, लहलहाती गेंहूँ की बालियां। ©रजनीश "स्वछंद" #NojotoQuote मेरे खेतों की क्यारियां।।।
प्रभाकर अजय शिवा सेन
मैं भाव सूची उन भावों की,जो बिके सदा ही बिन तोले। तन्हाई हूँ हर उस खत की जो पढ़ा गया है बिन खोले।। हर आँसू को हर पत्थर तक पहुँचाने की लाचार हूक। मैं सहज अर्थ उन शब्दों का जो सुने गए हैं बिन बोले।। जो कभी नही बरसा खुलकर हर उस बादल का पानी हूँ। लव कुश की पीर बिना गाई सीता की रामकहानी हूँ। ©प्रभाकर अजय शिवा सेन मैं भाव सूची उन भावों की।
Shailendra Singh Yadav
मिलें प्रेम से खिलें हो चेहरे खेलें प्यार की होली। सब मिलजुलकर भेदभाव मिटा दें बोलें प्रेम की बोली। कल वक्त कहाँ ले जाए कर लें हँसी ठिठोली । सबकी पिचकारी।से निकले रंगीन रंगों की गोली। शायर:- शैलेन्द्र सिंह यादव्र #NojotoQuote शैलेन्द्र सिंह यादव की शायरी खेलें प्यार की होली।
Rohan Roy