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Rahul Mishra

मक्डोनल्ड की वो दीवार, जो मँहगे काँच की है.. उसपे पड़ती नज़र लाचार, जो अंदर झाँकती है.. कटे -फटे मुफ़लिस लिबाज मे, थका हुआ सा .. एक लाठी पकड

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मक्डोनल्ड की वो दीवार, जो मँहगे काँच की है..
उसपे पड़ती नज़र लाचार, जो अंदर झाँकती है..
कटे -फटे मुफ़लिस लिबाज मे, थका हुआ सा ..
एक लाठी पकड

शिखर सिंह

जरा कटे-फटे लिहाफ़ देखिये, नज़र उठाइये और फ़ुटपाथ देखिये, अरे बहोत दिन देख लिया, ऊँच-नीच, जाति, धर्म और नाम, अब तो जरा इंसान देखिये। निकलि

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जरा कटे-फटे लिहाफ़ देखिये,
नज़र उठाइये और फ़ुटपाथ देखिये,
अरे बहोत दिन देख लिया,
ऊँच-नीच, जाति, धर्म और नाम,
अब तो जरा इंसान देखिये।
निकलिये बाहर आँखे खोलकर,
रोड के किनारे बिखरी बेबसी जारो-ज़ार देखिये,
उनके मुख की निराशावादी लालसा,
जो उनकी आँखों मे दफन है,
उन आँखों की नमी बेहिसाब देखिये,
क्या है उनके पास बस एक फटा हुआ लिहाफ़,
उस लिहाफ़ से लिपटी मजबूरियां एक बार देखिये।
जरा अन्नदाताओं पर ऋण और ब्याज़ देखिये,
पेड़ से लटके हुए इंसाफ देखिये,
अपना सबकुछ खो चुकी जो देवियाँ,
उनकी सड़को पर चलती जिंदा लाश देखिये,
एक छपाक जो ले गयी पहचान बहोतो की,
उस छपाक की क्रूरता आप निहार देखिये,
खरीदी है जिसने जिंदगी दहेज के नाम पर,
उसकी झुलसती हुई जिंदगी और राख़ देखिये,
पढ़ने जाना था जिसे जिस उम्र में,
उसकी जिंदगी, चाय की केतली और गिलास देखिये,
अरे शिकस्त खाते है ये लोग आपसे,
अगले दिन फ़िर लड़ने आ जाते है आपसे,
इनकी उम्मीद और प्रौढ़ता आप देखिये।
और लड़ रहे जो लोग है,
जाति और धर्म के नाम पर,
उनके पीछे जलते हुए शमशान देखिये ।
अरे बहोत दिन देख लिया,
पुरुष-स्त्री, जाति, धर्म और नाम,
अब तो जरा इंसान देखिये। जरा कटे-फटे लिहाफ़ देखिये,
नज़र उठाइये और फ़ुटपाथ देखिये,
अरे बहोत दिन देख लिया,
ऊँच-नीच, जाति, धर्म और नाम,
अब तो जरा इंसान देखिये।
निकलि

कुछ लम्हें ज़िन्दगी के

#HappyFathersDay पापा आज आपके लिए आपके ही ऊपर लिखी नज़्म पापा यूँ आँखें मीच के जब जब हँसता था मैं कभी पापा की पीठ पर

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पापा
यूँ आँखें मीच के जब जब हँसता था
मैं कभी पापा की पीठ पर बस्ता था । 

सुर्ख़ सफ़ेद कुर्ते की जेब से कोई
चिट्टे दूध चावल उड़ा दिया करता था । 

पंछी अब चू चू बड़ी करते है पापा
पूछते है कहाँ है वो रोज़ मिलता था । 

पाँच उंगलियों में अँगूठा थे, पापा
इस अँगूठे से बड़ा हौसला बढ़ता था । 

ज़िन्दगी रंग बदलती है गिरगिट सी
पापा, जैसे मैं छुटके मन बदलता था । 

फ़ुरसत से नहीं किस्तों में याद आते हो
मुझे याद है वो लम्हां जब गले लगता था। 

चिड़िया अब बड़ी उदास है आपकी
जिसकी ची-ची से पूरा घर महकता था । 

छोटा अब भी माहिर है जोड़ने में पापा
छुटके जो कटे फटे नोट जोड़ने लगता था । 

घर पे ज़िक्र होता है, आज भी पापा ,के
रोज़ी के चक्कर में कहाँ घर पे टिकता था। 

गुल्लक बड़ी मज़बूरी में तोड़ी है, पापा
खर्चा जो दिन रात मेरे गले अटकता था । 

ऐसा बनाया था राम ने हम दोनों को 
के बेटा बिल्कुल बाप जैसा दिखता था । 
 
जेब खर्ची में ऐश बहुत कट गई पापा
वो दिन हवा हुए जब सतिन्दर हँसता था । 

✍️©️ सतिन्दर #happyfathersday
  पापा आज आपके लिए आपके ही ऊपर लिखी नज़्म    
                   पापा
यूँ आँखें मीच के जब जब हँसता था
मैं कभी पापा की पीठ पर

Farhan Raza Khan

कुछ कटे तो कुछ घटे लेकिन हम तेरी "आशिकी' में शान से डटे।। #ashiqhui #farhanrazakhan

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कुछ कटे तो कुछ घटे
लेकिन हम तेरी "आशिकी' में 
शान से डटे।। #NojotoQuote कुछ कटे तो कुछ घटे
लेकिन हम तेरी "आशिकी' में 
शान से डटे।।
#ashiqhui #farhanrazakhan

Pawan

पर कटे परिन्दे

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माना कभी- कभी हौसले टूट है जाते..
आँसू के समुद्र मे फिर हम डूब है जाते..
आगे के रास्ते भी ठीक से नजर नही आते..
ऐसे मे खुद को बिखरने मत देना.. 
सपनो को अपने मिटने मत देना..
क्योंकि पर कटे परिन्दे किसी को पंसद नही आते.. पर कटे परिन्दे

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 14 – ममता 'मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहि बस कीन्हे जीव निकाया।।'

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
14 – ममता

'मैं अरु मोर तोर तैं माया।
जेहि बस कीन्हे जीव निकाया।।'
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