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Rahul Shastri worldcitizens2121
Key to Happiness "ज्योतिष" Sep 26,2019 "ॐ" गुरु शुक्राचार्य "भोलेनाथ" "के साथ" "जीवनभर/मृत्युके बाद" भी "अमर" "प्रेम Love Dream Imagination Creativity Authority Philenthophy Prosperity Royaless Soul love Physical Love Progess Infinity " सम्बन्ध में बैठें हैं। #Happiness "Picnic" "शुक्राचार्य" + "भोलेनाथ"
Laddi Sander
आपसे से सीखा और जाना, आप को ही गुरु माना, सीखा सब आपसे हमने, कलम का मतलब भी आपसे जाना ।। आदि धर्म प्रेमियों 🙏🙏 जय वाल्मीकि जी 🙏🙏 जय भीम 🇮🇳🇮🇳
N S Yadav GoldMine
इंद्रजीत की शक्तियां जो उसने गुरु शुक्राचार्य की सहायता से प्राप्त की आइए जानते हैं इंद्रजीत की शक्तियों के बारे में !! 🌸🌸 {Bolo Ji Radhey Radhey} इंद्रजीत की शक्तियां :- 🎆 इंद्रजीत/ मेघनाथ रावण का सबसे बड़ा पुत्र था जो बचपन से ही अत्यंत शक्तिशाली था। रावण ने अपने पुत्र इंद्रजीत को अविजयी बनाने के लिए कई प्रकार के जतन किये थे। समय के साथ-साथ वह रावण से भी अधिक शक्तिवान होने लगा था। जब वह बड़ा हो गया तब उसने गुरु शुक्राचार्य की सहायता से भगवान शिव, विष्णु व ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए कई यज्ञ किये जिनका रावण को भी नही पता था। रावण पुत्र मेघनाथ की शक्तियां :- मेघनाथ ने मौन धारण कर किया अनुष्ठान :- 🎆 जब रावण को इस बात का पता चला तो वह अनुष्ठान वाली जगह पर पहुंचा व मेघनाथ से पूछा कि वह यह किस शक्ति को प्राप्त करने के लिए ऐसा कर रहा हैं। तब रावण के प्रश्नों का उत्तर गुरु शुक्राचार्य ने दिया क्योंकि इस पूरे अनुष्ठान में मेघनाथ को मौन धारण करना था। गुरु शुक्राचार्य के साथ मेघनाथ ने अपनी कुलदेवी निकुंबला को साक्षी मानकर कुल सात यज्ञो का अनुष्ठान किया था। यह सात यज्ञ थे अग्निष्ठोम, अश्व्मेथ, बहुस्वर्णक, राजसूय, गोहमेध तथा वैष्णव। यह सभी यज्ञ करना एक व्यक्ति के लिए अत्यंत कठिन था किंतु मेघनाथ ने गुरु शुक्राचार्य की सहायता से इन सभी यज्ञो को पूर्ण किया व त्रिदेव को प्रसन्न करके उनसे अनेक वर व शक्तियां प्राप्त की। मेघनाथ की शक्तियां :- 🎆 इन यज्ञों के भलीभांति पूर्ण होने के पश्चात भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश ने उसे दर्शन देकर इस यज्ञ के फलस्वरूप मिलने वाली कई शक्तियां प्रदान की। उसे मिले वरदानों में कुछ प्रमुख वर इस प्रकार थे: तामसी रथ :- 🎆 यह रथ मेघनाथ की इच्छानुसार चल सकता था व आकाश में उड़ भी सकता था। इस रथ को पाने के बाद किसी भी युद्ध में उसकी तीव्रता अत्यधिक बढ़ गयी थी। वह इच्छानुसार अपने रथ को कभी आकाश तो कभी पृथ्वी पर ला सकता था। साथ ही किसी भी दिशा से शत्रु पर प्रहार कर सकने में भी वह सक्षम हो गया था। अक्षय तरकश व दिव्य धनुष :- 🎆 मेघनाथ को दो तरकश भी मिले थे जिनमें कभी भी बाण समाप्त नही होते थे। साथ ही दिव्य धनुष प्राप्त हुआ था। इसकी सहायता से वह बिना थके शत्रु पर बाणों की बौछार कर सकता था। ब्रह्मास्त्र :- 🎆 भगवान ब्रह्मा के द्वारा उसे उनके सबसे बड़े अस्त्र ब्रह्मास्त्र की भी प्राप्ति हुई थी जिसके द्वारा वह किसी भी शत्रु का उसकी सेना समेत समूल नाश कर सकता था। इसी अस्त्र का प्रयोग उन्होंने हनुमान पर किया था। वैष्णव अस्त्र :- 🎆 भगवान विष्णु के सबसे बड़े अस्त्र वैष्णव अस्त्र की भी उसे प्राप्ति हुई थी जो अपने शत्रु को भेदकर ही वापस आता हैं। इसे नारायण अस्त्र भी कहते हैं। पाशुपत अस्त्र :- 🎆 यह भगवान शिव का सबसे बड़ा अस्त्र हैं जिसे उन्होंने प्रसन होकर मेघनाथ को दे दिया था। यह शिव व काली का अस्त्र हैं व इससे हुए विनाश को फिर से ठीक नही किया जा सकता है। 🎆 इन सभी शक्तियों को प्राप्त करने के पश्चात वह रावण से भी अत्यधिक शक्तिशाली योद्धा बन चुका था। भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों के सबसे महान अस्त्र मेघनाथ के पास होने के कारण संपूर्ण विश्व में उससे अधिक शक्तिशाली कोई भी नही था। ब्रह्मा का वरदान :- 🎆 इसके साथ ही उसे भगवान ब्रह्मा से एक वर भी प्राप्त हुआ था जिसे भगवान ब्रह्मा ने इंद्र देव को मेघनाथ के कारावास से मुक्त करवाने के लिए दिया था। उस वर के फलस्वरूप यदि मेघनाथ किसी भी युद्ध पर जाने से पहले अपनी कुलदेवी निकुंबला का यज्ञ कर ले तो उस युद्ध में उसे कोई भी नही परास्त कर सकता है। ©N S Yadav GoldMine #Silence इंद्रजीत की शक्तियां जो उसने गुरु शुक्राचार्य की सहायता से प्राप्त की आइए जानते हैं इंद्रजीत की शक्तियों के बारे में !! 🌸🌸 {Bolo J
PARBHASH KMUAR
जब देवताओं से युद्ध करते हुए असुरों को मृत व पराजित होना पड़ा, तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने अपनी शक्तियों से उन सभी को पुनः जीवित कर दिया था। मगर जीवित होने के पश्चात तो जैसे, असुरों के अत्याचार की सारी सीमाएं अतिक्रमित होने लगी। राजा बलि ने भी शुक्राचार्य की कृपा से अपना जीवन लाभ किया था, इसलिए वह भी उनकी सेवा में लग गए। इस दौरान, राजा बलि की सेवा से प्रसन्न होकर शुक्राचार्य ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया। इधर, पौराणिक मान्यता के अनुसार, असुरों के हर दूसरे दिन देवताओं पर किए गए अत्याचारों से माता अदिति अत्यंत दुखी हो गईं थीं। उन्होंने अपनी यह व्यथा अपने स्वामी कश्यप ऋषि को सुनाते हुए कहा, “हे स्वामी! मेरे तो सभी पुत्र मारे-मारे फिरते हैं और उन्हें इस अवस्था में देखकर, मेरा हृदय क्रंदन करने लगता है।” अपनी पत्नी की यह बात सुनकर, कश्यप ऋषि ने सोचा, इस व्यथा के समाधान के लिए तो अपना सर्वस्व प्रभु नारायण के चरणों में समर्पित कर, उनकी आराधना करना आवश्यक है। उन्होंने अदिति को भी ऐसा ही करने के लिए कहा। माता अदिति ने तब नारायण का कठोर तप किया और प्रभु भी माता के तप से प्रसन्न होकर उनके पुत्र के रूप में आविर्भूत हुए। अपने गर्भ से ऐसे चतुर्भुज प्रभु के अवतार से माता अदिति तो जैसे धन्य ही हो गईं। वहीं प्रभु ने अवतरित होते ही वामन अवतार धारण कर लिया था। इसके बाद, महर्षि कश्यप ने अन्य ऋषियों के साथ मिलकर उस वामन ब्रह्मचारी का उपनयन संस्कार सम्पन्न किया। इसके बाद, वामन ने अपने पिता से शुक्राचार्य द्वारा आयोजित राजा बलि के अश्वमेध यज्ञ में जाने की आज्ञा ली। यह राजा बलि का अंतिम अश्वमेध यज्ञ था। वामन जैसे ही उस यज्ञ में पहुंचे राजा बलि ने उन्हें देखते ही उनका आदर सत्कार किया और उनसे दान मांगने का आग्रह किया। इस पर वामन ने राजा बलि से कहा, “हे राजन! आपके कुल की शूरता व उदारता जगजाहिर है। मुझे तो बस अपने पदों के समान तीन पद जमीन चाहिए।” राजा बलि उन्हें यह दान देने ही वाले थे, तभी शुक्राचार्य ने उन्हें चेताया, “यह अवश्य ही विष्णु हैं। इनके छलावे में आ गए, तो तुम्हारा सर्वस्व चला जाएगा।” परंतु राजा बलि अपनी बात पर स्थिर रहे। उन्होंने वामन को तीन पद जमीन देने का निर्णय कर लिया। राजा बलि की यह बात सुनते ही वमानवतार श्री विष्णु ने अपना शरीर बड़ा कर लिया और प्रथम दो पदों में ही उन्होंने स्वर्गलोक और धरती को अपने नाम कर लिया। वामन के चरण पड़ने से ब्रह्मांड का आवरण थोड़ा उखर सा गया था एवं इसी स्थान से, ब्रह्मद्रव बह आया था जो बाद में जाकर मां गंगा बनीं। अब वामन ने बलि से पूछा, “राजन! तीसरा पद रखने का स्थान कहां है?” कोई दूसरा ©parbhashrajbcnegmailcomm जब देवताओं से युद्ध करते हुए असुरों को मृत व पराजित होना पड़ा, तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने अपनी शक्तियों से उन सभी को पुनः जीवित कर दिया था।
Vikas Sharma Shivaaya'
कुबेर लक्ष्मी मंत्र : ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥ पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी के मानस पुत्र भृगु ऋषि का विवाह प्रजापति दक्ष की कन्या ख्याति से हुआ जिससे धाता,विधाता दो पुत्र व श्री नाम की कन्या का जन्म हुआ। भागवत पुराण के अनुसार भृगु ऋषि के कवि नाम के पुत्र भी हुए जो कालान्तर में शुक्राचार्य नाम से प्रसिद्ध हुए। शुक्र -जिसका संस्कृत भाषा में एक अर्थ है शुद्ध, स्वच्छ, भृगु ऋषि के पुत्र एवं दैत्य-गुरु शुक्राचार्य का प्रतीक शुक्र ग्रह है। भारतीय ज्योतिष में इसकी नवग्रह में भी गिनती होती है। यह सप्तवारों में शुक्रवार का स्वामी होता है। यह श्वेत वर्णी, मध्यवयः, सहमति वाली मुखाकृति के होते हैं। इनको ऊंट, घोड़े या मगरमच्छ पर सवार दिखाया जाता है। ये हाथों में दण्ड, कमल, माला और कभी-कभार धनुष-बाण भी लिये रहते हैं। उषानस एक वैदिक ऋषि हुए हैं जिनका पारिवारिक उपनाम था काव्य (कवि के वंशज, अथर्व वेद अनुसार जिन्हें बाद में उषानस शुक्र कहा गया। शुक्र एकाक्षरी बीज मंत्र- 'ॐ शुं शुक्राय नम:। ' शुक्र तांत्रिक मंत्र- 'ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:। ' सो शिंगार वा चित्र में हतो , तैसोई वस्त्र आभूषन अपने श्रीहस्त में धारण किये ! गाय ग्वाल सखा सब साथ ले के आप पधारे !! इस दोहे में रसखान जी कहते है कि चित्र में जैसा श्रृंगार था ठीक उसी प्रकार का श्रृंगार करके श्री कृष्ण पीताम्बर रूप में अपने ग्वाल बाल गोपो के साथ वे रसखान से मिलने पहुँच जाते है जहाँ रसखान बैठकर कृष्ण के प्रेम में आंसू बहा रहे थे ! 🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' कुबेर लक्ष्मी मंत्र : ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥ पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी के मानस प
आजाद हिंदुस्तानी
उठो द्रोपदी शस्त्र उठालो,नाश करो इन मानव का। मानव रूप में रूप धरे इन,भ्रष्ट निर्दयी दानव का। उठो की तुम हो दुर्गा,देवी चंडी का अवतार लो।
Vikas Sharma Shivaaya'
शुक्र जिसका संस्कृत भाषा में एक अर्थ है शुद्ध, स्वच्छ, भृगु ऋषि के पुत्र एवं असुर गुरु शुक्राचार्य का प्रतीक शुक्र ग्रह है- भारतीय ज्योतिष में इसकी नवग्रह में भी गिनती होती है- यह सप्तवारों में शुक्रवार का स्वामी होता है-यह श्वेत वर्णी, मध्यवयः, सहमति वाली मुखाकृति के होते हैं, इनको ऊंट, घोड़े या मगरमच्छ पर सवार दिखाया जाता है-ये हाथों में दण्ड, कमल, माला और कभी-कभार धनुष-बाण भी लिये रहते हैं..., शुक्र (Venus), सूर्य से दूसरा ग्रह है और प्रत्येक 224.7 पृथ्वी दिनों मे सूर्य परिक्रमा करता है-ग्रह का नामकरण प्रेम और सौंदर्य की रोमन देवी पर हुआ है,चंद्रमा के बाद यह रात्रि आकाश में सबसे चमकीली प्राकृतिक वस्तु है- इसका आभासी परिमाण -4.6 के स्तर तक पहुँच जाता है और यह छाया डालने के लिए पर्याप्त उज्जवलता है..., शुक्र के शुभ प्रभाव से जातक में रचनात्मकता आती है और उसकी रूचि कलात्मक कार्यों में होती है- शुक्र के मजबूत स्थिति में होने से जातक के प्रेम वैवाहिक जीवन सुखमय बनता है और इसी के साथ व्यक्ति की आर्थिक स्थिति भी मजबूत रहती है व उसको भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति होती है..., विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 454 से 465 नाम 454 ज्ञानमुत्तमम् जो प्रकृष्ट, अजन्य, और सबसे बड़ा साधक ज्ञान है 455 सुव्रतः जिन्होंने अशुभ व्रत लिया है 456 सुमुखः जिनका मुख सुन्दर है 457 सूक्ष्मः शब्दादि स्थूल कारणों से रहित हैं 458 सुघोषः मेघ के समान गंभीर घोष वाले हैं 459 सुखदः सदाचारियों को सुख देने वाले हैं 460 सुहृत् बिना प्रत्युपकार की इच्छा के ही उपकार करने वाले हैं 461 मनोहरः मन का हरण करने वाले हैं 462 जितक्रोधः क्रोध को जीतने वाले 463 वीरबाहुः अति विक्रमशालिनी बाहु के स्वामी 464 विदारणः अधार्मिकों को विदीर्ण करने वाले हैं 465 स्वापनः जीवों को माया से आत्मज्ञानरूप जाग्रति से रहित करने वाले हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' शुक्र जिसका संस्कृत भाषा में एक अर्थ है शुद्ध, स्वच्छ, भृगु ऋषि के पुत्र एवं असुर गुरु शुक्राचार्य का प्रतीक शुक्र ग्रह है- भारतीय ज्योतिष म
N S Yadav GoldMine
मेघनाथ ने लक्ष्मण पर चलाया ब्रह्मास्त्र, पशुपाति व नारायण अस्त्र आइए जानते हैं !! 🌍Bolo Ji Radhey Radhey}🌍 पशुपाति व नारायण अस्त्र :- 🌄 मेघनाथ एक ऐसा योद्धा था जिसने श्रीराम की वानर सेना में हाहाकार मचा दिया था। उसने अपनी पिता की आज्ञा स्वरुप शत्रुओं की सेना में भीषण तबाही मचाई थी। पहले दिन उसने श्रीराम व लक्ष्मण को नागपाश में बांध दिया था तो दूसरे दिन लक्ष्मण को शक्तिबाण की सहायता से मुर्छित कर दिया था लेकिन दोनों ही बार हनुमान की चतुराई से दोनों सुरक्षित बच निकले। तीसरे दिन वह निकुंबला देवी का यज्ञ कर रहा था जिसके समाप्त होने के पश्चात वह अजय हो जाता व किसी भी शत्रु का उसे युद्ध में हराना असंभव हो जाता किंतु लक्ष्मण ने यज्ञ के समाप्त होने से पहले पहुंचकर उस यज्ञ को ध्वस्त कर डाला। इससे क्रुद्ध होकर मेघनाथ युद्धभूमि में आया व लक्ष्मण से युद्ध करने लगा। मेघनाथ के पास थे तीन शक्तिशाली अस्त्र :- 🌄 मेघनाथ ने एक बार राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य की सहायता से सात यज्ञो का महा आयोजन किया था जिसमे उसे त्रिदेव से कई प्रकार की शक्तियां व वर प्राप्त हुए थे। उन्हीं शक्तियों में उसे भगवान ब्रह्मा के सर्वोच्च अस्त्र ब्रह्मास्त्र, भगवान विष्णु के सर्वोच्च अस्त्र नारायण अस्त्र व भगवन शिव के सर्वोच्च अस्त्र पशुपाति अस्त्र प्राप्त हुए थे। यह तीन अस्त्र अत्यंत विनाशकारी थे जिनका प्रयोग करने पर प्रलय तक आ सकती थी। लक्ष्मण थे शेषनाग का स्वरुप :- 🌄 चूँकि भगवान विष्णु ने रावण रुपी पापी का अंत करने व धर्म की पुनः स्थापना के उद्देश्य से इस धरती पर श्रीराम रूप में जन्म लिया था तो शेषनाग ने उनके छोटे भाई लक्ष्मण के रूप में। जब शेषनाग रुपी लक्ष्मण व रावण पुत्र मेघनाथ के बीच तीसरे दिन युद्ध शुरू हुआ तक मेघनाथ ने अपने सबसे बड़े अस्त्रों का प्रयोग किया था। मेघनाथ का लक्ष्मण पर आक्रमण :- मेघनाथ का लक्ष्मण पर ब्रह्मास्त्र चलाना :- 🌄 सबसे पहले मेघनाथ ने लक्ष्मण पर भगवान ब्रह्मा के सबसे बड़े अस्त्र ब्रह्मास्त्र को छोड़ा। जब लक्ष्मण ने ब्रह्मास्त्र को देखा तो वे उसके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए। लक्ष्मण को देखकर ब्रह्मास्त्र उन्हें बिना कोई हानि पहुंचाए वापस चला गया। चूँकि जब भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मास्त्र का निर्माण किया था तब उन्होंने इसे धर्म की रक्षा के उद्देश्य से बनाया था जिसका प्रयोग किसी भी युद्ध में अंतिम विकल्प के रूप में प्रयोग किया जाना था। साथ ही उन्होंने इसके निर्माण में यह ध्यान रखा था कि इससे भगवान शिव, आदिशक्ति, भगवान विष्णु व शेषनाग को कोई हानि नही पहुँच सकती। इसलिये जब मेघनाथ ने लक्ष्मण पर ब्रह्मास्त्र चलाया तो स्वयं शेषनाग के अवतार होने के कारण उन पर इसका कोई प्रभाव नही पड़ा। मेघनाथ का लक्ष्मण पर पशुपाति अस्त्र चलाना:- 🌄 ब्रह्मास्त्र के लौटकर आने के पश्चात मेघनाथ ने लक्ष्मण पर भगवान शिव के सबसे बड़े अस्त्र पशुपाति अस्त्र से प्रहार किया जो कि शिव का त्रिशूल था किंतु इसका भी कोई प्रभाव लक्ष्मण पर नही पड़ा। इसके साथ भी यही नियम था कि वह भगवान विष्णु व शेषनाग पर कोई प्रभाव नही डाल सकता था। इसलिये यह भी बिना अपना प्रभाव दिखाएँ वापस आ गया। मेघनाथ का लक्ष्मण पर नारायण अस्त्र चलाना:-🌄 इसके बाद मेघनाथ ने अपने अंतिम सबसे बड़े अस्त्र नारायण अस्त्र से लक्ष्मण पर प्रहार किया जो भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र था। चूँकि वे स्वयं भगवान व्ष्णु के शेषनाग थे इसलिये इससे उन पर क्या ही प्रभाव पड़ता क्योंकि शेषनाग तो उनके लिए पूजनीय थे। इसलिये नारायण अस्त्र लक्ष्मण के चारों ओर परिक्रमा कर व उन्हें प्रणाम कर वापस आ गया।तीनो अस्त्रों के विफल होने के कारण मेघनाथ को यह आभास हो गया था कि लक्ष्मण व श्रीराम कोई साधारण मनुष्य नही अपितु स्वयं भगवान के अवतार है। उसने यह बात जाकर अपने पिता रावण को समझायी लेकिन उसके न समझने पर वह वापस युद्धभूमि में आया तथा वीरगति को प्राप्त हुआ। ©N S Yadav GoldMine #Hanuman मेघनाथ ने लक्ष्मण पर चलाया ब्रह्मास्त्र, पशुपाति व नारायण अस्त्र आइए जानते हैं !! 🌍Bolo Ji Radhey Radhey}🌍 पशुपाति व नारायण अस्त्र