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Prakashchandra Mobarsa
जिंदगी की राह में चलता चल कर परिश्रम और बढ़ता चल... “मैं मजदूर हूँ।” किस्मत से मजबूर हूँ। सपनों के आसमान में जीता हूँ, उम्मीदों के आँगन को सींचता हूँ। दो वक्त की रोटी खानें के लिये, अपने स्वभिमान को नहीँ बेचता हूँ। तन को ढकने के लिये फटा पुराना लिबास है। कंधों पर जिम्मेदारीहै जिसका मुझे अहसास है। खुला आकाश है छत मेरा बिछौना मेरा धरती है। घास-फूस के झोपड़ी में सिमटी अपनी हस्ती है। गुजर रहा जीवन अभावों में, जो दिख रहा प्रत्यक्ष है। आत्मसंतोष ही मेरे जीवन का लक्ष्य है। गरीबी और लाचारी से जूझ जूझकर हँसना भूल चुका हूँ। अनगिनत तनावों से लदा हुआ, आँसू पीकर मजबूत बना हूँ। “मैं मजदूर हूँ।” किस्मत से मजबूर हूँ। सपनों के आसमान में जीता हूँ, उम्मीदों के आँगन को सींचता हूँ। दो वक्त की रोटी खानें के लिये, अपने स्वभ
Prakashchandra Mobarsa
जिंदगी की राह में चलता चल कर परिश्रम और बढ़ता चल... “मैं मजदूर हूँ।” किस्मत से मजबूर हूँ। सपनों के आसमान में जीता हूँ, उम्मीदों के आँगन को सींचता हूँ। दो वक्त की रोटी खानें के लिये, अपने स्वभिमान को नहीँ बेचता हूँ। तन को ढकने के लिये फटा पुराना लिबास है। कंधों पर जिम्मेदारीहै जिसका मुझे अहसास है। खुला आकाश है छत मेरा बिछौना मेरा धरती है। घास-फूस के झोपड़ी में सिमटी अपनी हस्ती है। गुजर रहा जीवन अभावों में, जो दिख रहा प्रत्यक्ष है। आत्मसंतोष ही मेरे जीवन का लक्ष्य है। गरीबी और लाचारी से जूझ जूझकर हँसना भूल चुका हूँ। अनगिनत तनावों से लदा हुआ, आँसू पीकर मजबूत बना हूँ। “मैं मजदूर हूँ।” किस्मत से मजबूर हूँ। सपनों के आसमान में जीता हूँ, उम्मीदों के आँगन को सींचता हूँ। दो वक्त की रोटी खानें के लिये, अपने स्वभ
manoj gariya
मैं मजदूर हूँ।” किस्मत से मजबूर हूँ। सपनों के आसमान में जीता हूँ, उम्मीदों के आँगन को सींचता हूँ। दो वक्त की रोटी खानें के लिये, अपने स्वभि
Divyanshu Pathak
शब्द रूप रस गंध और स्पर्श अब इनका प्रभाव चरम पर है ! चेतना का स्तर अहंकार ग्रस्त अब मन में तनाव चरम पर है ! मुझे कुछ भी पता नही अपने ठौर का मैं युवा हूँ भई इस आज के दौर का ! देश दुनिया गीत मीत संगीत सब है जब तक कि पत्थर फ़िके ना औऱ का ! 💕☕☕🍫😊🙏🍵☕☕ : मैं स्वयं से इतर कुछ देख नही पाता हूँ तर्क वितर्क की उलझनों में फंस जाता हूँ ! इनसे निकलने का रास्ता नहीं मिलता मैं स्वयं ही स्व
Kulbhushan Arora
From 66 to 6 Hello बचपन, मुझे अच्छे से याद है बचपन में जब तुम सर्दियों को छुट्टियों में शिमला से सोनीपत नानी के घर आते थे न, अक्सर तुम्हें खो जाने की आदत
Kulbhushan Arora
मेरा पत्र मेरे पहले प्यार के नाम प्रिय कुलभूषण, आज मिलवा दो सबको अपने पहले प्यार से😍 Teenage में प्यार का खुमार तो होता है...मुझे भी हुआ प्यार वो भी Love at ist sight वाला..
सुसि ग़ाफ़िल
चित्त की चिट्ठियां प्रतिक्षा बूड़ी तो नहीं होती आखिरी जवान कब तक रहती है देखते हैं अंधेरे में रहस्यों की दुकान पर कब तक रहती है आंखों के बंद होते ही रहती है आं
Surendra Bohra
किसी इंसान को लक्ष्य बनाके आप जीवन को नहीं पा सकते पर अगर लक्ष्य जीवन है तो इंसान कई मिलेंगे। जीवन का लक्ष्य
upendra Kumar maurya
खुद की पहचान बनाने में जो मजा है, वो दुसरों की परछाई बनने में नहीं। ©upendra Kumar maurya जीवन का लक्ष्य
Birmohan Ganjhu
आप की बहुत याद आ रही है,, जिंदगी में आप हीं की कमी हो जा रही है। i miss you ©Birmohan Ganjhu जीवन का लक्ष्य