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... मोलिका
ज़िंदगी के तजुर्बे वक्त देखकर नही आते उसने कम उम्र में ही देखा है अपना जहां बिखरते हुए... #जिंदगी का तजुर्बा#मौलिका#
Atal Ram Chaturvedi
नमस्कार मित्रो ©Atal Ram Chaturvedi #मौलिकता कवियों की
Kirti
जो भी हुआ ...अच्छा हुआ। वक़्त का ही तकाज़ा था।। वरना हर वक़्त उसी में ही टूटना था। और उसी में ही सिमटना था।। हमनें-उनमें झुकना क्या सिखा। उन्होंने तो मुद्दतों तक झुकाना ही सिखा लिया।। कीर्ति 29/june/2020 #Love #kavita #स्वरचित #मौलिकता
Kirti
मौन रहे तो.... मुत्यु समान है! बोलती रहे तो... कैची की कतार समझ ली जाती है।। ज़ुबान..... कीर्ति 19/july/2020 #chai #अल्फ़ाज़ #मौलिकता #हिंदीnojoto
Kirti
नज़र-नज़र की बात है। किसके नज़रिये में ख़ूबियाँ है, तो किसके नज़रिये में खामियां है।। कीर्ति 19/september/2020 #मौलिकता #शायरी #विचारधारा #allalone
Vineet Sharma
"मौलिक कर्त्तव्य" धधक रही इस आग का कोई राग तो तू चुन ले, यूँ जल मत, जला मत, हर शख्स को उकसा मत, भड़क रही इस ताप की कोई राह तो तू चुन ले, विरोध है, तो तू जता, उपद्रव मगर मचा मत| ये देश है तेरा, इसकी संपदा तेरी, जिसे तू झुलसा रहा, वो है धरा तेरी, उत्पात देख सहम रहा हमवतन तेरा, क्या तू है ये चाहता? क्या है ये रजा तेरी? तू सोच तो जरा, किस बवाल में पड़ा, जिस राह को तू चला, वहां कौन है खड़ा! फरेब में पड़ तू,अपने देश से ही फिर लड़ा, तू जिसकी सुन रहा, क्या उसने है विधेयक पढ़ा!, क्रोध को अपने निगल, अमन की डगर तू चुन ले, सवाल हैं तेरे जो कर, पहले मगर उनको तू गुन ले, विचार कर विमर्श कर, व्यवस्था ये चुन ले, मौलिक कर्तव्यों को निभा, मेरी बस इतनी सुन ले| #देशप्रेम #caaprotests #cabbill #cabisimportant #मौलिककर्त्तव्य #vineetvicky #encore_ek_khwab
Vinay Suryawanshi (Tej Vinay)
"आपके सबसे अच्छे दोस्त आप ही है,अपनी मौलिकता का ध्यान रखे और खुदको समय दे"। #Self nourishment #सच्चा दोस्त #मौलिकता #ध्यान #समय #अनुभव की कलम से
HP
आहार-विहार, रहन-सहन, वेष-भूषा, विचार तथा जीवन निर्माण में मौलिक सरलता का समावेश होना नितान्त आवश्यक है। मौलिक शरलता
HP
मौलिक सरलता इतनी सजीव होती है कि मनुष्य जब प्रत्येक वस्तु से अपना अधिकार छोड़ देता है और परिस्थितियों के साथ संयोग करता है तभी उसे अपने भीतर का खोखलापन अनुभव हो जाता है और विनम्रता, धैर्य, करुणा तथा विवेक का जागरण होने लगता है। आत्मा सरल है और उसके समर्थन के लिये तर्क की आवश्यकता नहीं। जटिलता तो केवल दुर्गुणों तथा पाप-वृत्तियों के कारण उत्पन्न होती है। अतः मनुष्य जब तक स्वयं पूर्ण जीवन अभिव्यक्त न कर लें, उन्हें अपने मनोविकारों के शोधन परिमार्जन में ही लगे रहना चाहिये। अन्तःकरण में कलुष न रह जाय और बाह्य जीवन में दम्भ न शेष बचे उसी पुरुष का जीवन निश्चयात्मक शान्त एवं दैवी प्रतिभा से ओत-प्रोत होता है। मौलिक शरलता