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Sanjay Pahuja
दिन भर जी के देख ले,मरने को सौ काम वापिस फिर ना आ सके,दीजो जितने दाम आया मेला चुनाव का,रंग बिरंगे लोग कोई बूखा रह गया ,झप्पन खाके भोग वक्त वक्त की बात है,राजा रंक फ़क़ीर जिसकी जितनी भूख है,वेसी है तकदीर अस्पताल में भीड़ है,मरीज ना माने बात जाने कैसा रोग है, दिन भी लागे रात दोहे
Sudha Singh
दोहा सुबह सिखाती है हमें,जग जाओ मत सो। अपने पैरों के तले, खुद काँटे मत बो रे बंदे, खुद काँटे मत बो....... #दोहे
जयश्री_RAM
दोहे लिखे कबीर ने, जीवन के सार थे। अर्थों को जानने को, क्या हम भी पार थे।।१ पढ़ लिया बबूल को, सेमल की आस थी। ठहरे नहीं उस राह पर, जीवन की प्यास थी।।२ नदी न संचे नीर अब, ले आती है बाढ़, निर्धन व्याकुल बह रहे, पानी से है खार।।३ पढ़ने को पढ़ लिया, ढाई आखर प्रेम का, मूल कुछ मिला नहीं, चला गया जो शेष था।।४ दूसरों के त्याग में, झोंका आप शरीर। हमसे तो होता नहीं, देखो आज कबीर।।५ गुरू शिष्य ने नाम को ऐसा दिया उभार। शिक्षा ऐसी आय हुई, मिले नहीं उधार।।६ ®राम उनिज मौर्य® बनबसा जिला-चम्पावत. #दोहे
सतीश तिवारी 'सरस'
*चंद दोहे* (1) संस्कार जैसे हुए,निज पथ से बेठाँव। बच्चे अब पड़ते नहीं,नत होकर के पाँव।। (2) जिनकी ख़ातिर ज़िन्दगी,लुटा चुका निज बाप। उसको ही सुत दे रहे,जी-भर के संताप।। (3) धनलोलुपता ने डसा,प्रेम-प्रीति को यार। धन की ख़ातिर औरतें,करतीं नित तक़रार।। (4) स्वार्थ-मोह अरु छल हुए,जीवन के पर्याय। वही ठगाये आजकल,जो स्वभाव से गाय।। (5) मातु-पिता के बाद में,रक्षक बस भगवान्। कष्टों में सब झाड़ते,हम पर अपना ज्ञान।। (6) बोल न पाते थे कभी,जो हम से इक बोल। छाती वो ही आजकल,रहे हमारी छोल।। (7) फर्ज जिन्होंने आज तक,नहीं निभाया मीत। वही आजकल गा रहे,अधिकारों के गीत।। ©सतीश तिवारी 'सरस' #दोहे
Manju kushwaha
दोहे है कलयुग का दौर ये, मिलता किसको न्याय ll पीछे से सब देखते, जाति धर्म अध्याय ll त्याग तपस्या साधना, हुई मित्र बे मोल , चाटुकारिता जो करे, उसका हल्ला बोल ll गुरुवर हो जब द्रोण सम , होगी कैसे जीत, भेदभाव की नीति फिर, सीखे कैसे प्रीत ll ©Manju kushwaha # दोहे
tripti agnihotri
तृप्ति की कलम से जीवन के आनंद का, कभी न होगा अंत। अपने भीतर झांक लो,कमियां छुपी अनंत।। तुमसे ज्यादा हैं दुखी, दुनिया ले कुछ लोग। अपना दुख तब कम लगे, लोग रहे जो भोग।। स्वरचित तृप्ति अग्निहोत्री ©tripti agnihotri दोहे