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Sudipta Mazumdar
जहां नारी का होता है वास वहां सुखों का होता है आकाश जहां नारी का होता नहीं सम्मान वहां सबका होता है बिनाश नारी जहां वहां लक्ष्मी का निवास जहां नारी नहीं वहां दुखों का है संसार ©Sudipta Mazumdar #यत्र नारी पूज्यंते तत्र रमंते देवा: यत्र तू एता: न पूज्यंते तत्र भवन्ति विनाशा: #standAlone
vippy
ज़िंदगी जोहद में है सब्र के क़ाबू में नहीं नब्ज़-ए-हस्ती का लहू कांपते आंसू में नहीं उड़ने खुलने में है निकहत ख़म-ए-गेसू में नहीं जन्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं यत्र नारियास्ते पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवता
Mohit Jain
शब्द रुपी भेट . . समोरा समोर भेट झाली नाही कधी पण शब्दांनी ओळख करून दिली . . जाणिवा , उणीवा , स्पष्टपणे सांगणारी अशी अनोखी सांगड घालून दिली . . ठाण्याचे हे स्पष्टवक्ता व्यक्तिमत्त्व प्रत्येक शब्दाला अनुसरून होतं समीक्षण. . जेव्हा वाचली जाते यांची सुस्पष्ट दाद तेव्हा वाटतं प्रत्येक शब्दाने व्हावे मनोमिलन . . हुरूप येतो लेखणीला देखील लिहिण्याचा वेग वेगळे विषय मनाला सुचत जातात . . उत्स्फूर्त प्रतिसाद जेव्हा जेव्हा मिळत जातो तेव्हा रोजचे विषय कागदावर उतरू लागतात . . जीव ओतून वाचणारे बोटावर मोजण्याइतके त्यात तुमचा पहिला क्रमांक म्हणतो मी . . अनुषंग जाणून घेतला जातो प्रत्येक ओळीचा त्यात तुम्ही अव्वल आहात हे मानतो मी . . लिहिणारा जेवढा महत्वाचा , तत्वनिष्ठ असावा वाचणारा देखील असावा मनमुराद दाद देणारा . . धन्य धन्य होतो इथे प्रत्येकजण , तुम्हाला वाचून मी आहे इथे , तुम्ही Great आहात हे सांगणारा . . ©Mohit Jain हे तुमचं बक्षीस . .
Srk writes
एक दिन अपना पत्र मुझ पे नाज़िल हो गया,, 🤎 उस को पढ़ते ही मिरी सारी ख़ताएँ मर गईं ©Srk writes #पत्र,, प्रेम पत्र
Shubhada
पुन्हा एकदा भग्न तळ्याशी पाऊल हे अवघडते एकांतीचा सूर गवसण्या शब्द विणावे म्हणते मर्मसुखाचे लेवून अत्तर उत्तर का गहिवरते अभिलाषेच्या ओंजळीतली शब्द प्रभा थरथरते चांदणंवाटा शोधत जेव्हा प्रतिमेत कला बावरते ती प्रतिमा घेऊन ऊराशी निनावी पत्र लिहावे म्हणते शुभदा© पत्र
पूर्वार्थ
पत्र प्रेम भरा जब मैने उसे लिखा, उस कागज में उनका ही चेहरा दिखा, फिर याद आया उनका फंसाना, वो भूल गए हमें याद है वो मौसम सुहाना, लिखा की तुम बिन अधूरे है हम, तुम्हारी ही याद हमें हर रोज है आती, कभी तो जागते रहते है रातों को करवटें बदलकर, कभी आंखों में ही कट जाती है रातें, कभी दिल बहुत उदास होता है, जब तुम्हारा ही अहसास होता है, लाख रहें मेरे पास हरदम खोए रहते है, ये दिल तो सिर्फ़ तुम्हारे ही पास होता है, फूल खिलते है रोज बिन तेरे क्या सुगंध, तुम्हारे लिए ही शायद है उनमें सुगंध, ऋतु बदली मौसम बदला हम खुद न बदलपाएं, ये प्रेम की रीत है चलो हम ही इसे निभाएं, खुश तो हो तुम भी हमारा है क्या, रहना नित हंसते हुए इससे अच्छा क्या, हंसी तुम्हारी रोते को हंसा देती है, दुखियों के सब दर्द मिटा देती है, आंखे तो सच में बहुत ही प्यारी है, ये सिर्फ़ प्रेम बरसाने बाली है, चेहरा दिल को बहुत शुकून देता है, शून्य को भी शिखर कर देता है, पत्र नही ये दिल के जज्बात है, इस दिल के सबसे ख़ास ही आप है,, ©पूर्वार्थ #पत्र
arvind bhanwra
हे परमार्थ, ये पत्र नही, गुजारिश है, आज आपसे करनी एक गुजारिश है, ज्यों द्वेता,त्रेता युग मे आए थे, पाप, जुल्म को किया था खत्म, कलयुग पुकारे इक बार फिर आओ, धरा पर पाप बढ़ गया, ईंसानो पर करो रहम। arvind bhanwra पत्र ।