Find the Latest Status about पूर्ववत् from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, पूर्ववत्.
AK__Alfaaz..
इश्क़ मेरा रात भर रोता रहा मेरी आँखों से.., मै बदस्तूर अपनी कलम से.., अपने दर्द को लिखता रहा कोरे कागजों पे.., Show your Collab Talent 😍 Here, (Ishq:- Love Qalam:- Pen/Quill) Make a Shayari with these two words or either with one of them 🙌 Like you
Vishw Shanti Sanatan Seva Trust
*क्या भगवान हमारा चढ़ाया भोग खाते हैं?* ************************************ यदि खाते हैं तो वह वस्तु समाप्त क्यों नहीं होती? यदि नहीं खाते तो भोग लगाने का क्या लाभ? एक लड़के ने पाठ के बीच में अपने गुरु से यह प्रश्न किया। गुरु ने तत्काल कोई उत्तर नहीं दिया। वे पूर्ववत् पाठ पढ़ाते रहे। उस दिन उन्होंने पाठ के अन्त में एक श्लोक पढ़ाया: पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।। पाठ पूरा होने के बाद गुरु ने शिष्यों से कहा कि वे पुस्तक देखकर श्लोक कंठस्थ कर लें। एक घंटे बाद गुरु ने प्रश्न करने वाले शिष्य से पूछा कि उसे श्लोक कंठस्थ हुआ कि नहीं! उस शिष्य ने पूरा श्लोक शुद्ध-शुद्ध गुरु को सुना दिया। फिर भी गुरु ने 'नहीं' में सिर हिलाया। शिष्य ने कहा कि वे चाहें तो पुस्तक में देख लें; श्लोक बिल्कुल शुद्ध है। गुरु ने पुस्तक देखते हुए कहा: श्लोक तो पुस्तक में ही है। तुम्हारे दिमाग में कैसे चला गया? शिष्य कुछ भी उत्तर नहीं दे पाया। तब गुरु ने कहा: पुस्तक में जो श्लोक है वह स्थूल रूप में है। तुमने जब श्लोक पढ़ा तो वह सूक्ष्म रूप में तुम्हारे दिमाग में प्रवेश कर गया। उसी सूक्ष्म रूप में वह तुम्हारे मस्तिष्क में रहता है। जब तुमने इसको पढ़कर कंठस्थ कर लिया तब भी पुस्तक के स्थूल रूप के श्लोक में कोई कमी नहीं आयी। इसी प्रकार पूरे विश्व में व्याप्त परमात्मा हमारे चढ़ाए गए निवेदन को सूक्ष्म रूप में ग्रहण करते हैं। इससे स्थूल रूप के वस्तु में कोई कमी नहीं होती। उसी को हम प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। शिष्य को उसके प्रश्न का उत्तर मिल गया। * ईश्वर के अस्तित्व के बारे में तर्क-वितर्क करने वाले जरूर संतुष्ट होंगे। --डॉ कृष्ण मोहन जी विश्वशांति सनातन सेवा परिवार ©Vishw Shanti Sanatan Seva Trust *क्या भगवान हमारा चढ़ाया भोग खाते हैं?* ************************************ यदि खाते हैं तो वह वस्तु समाप्त क्यों नहीं होती? यदि नहीं खाते
अरुण शुक्ल ‘अर्जुन'
प्रेमी उवाच- गुप चुप गुप चुप बैठे हो क्यों,बोलो आखिर बात है क्या? हम नैन बिछाए बैठे प्रतिपल, मत पूछों दिन-रात है क्या? इतने दिन के बाद हमारा मिलन हुआ है मुश्किल से, पहले तुम ही बोल दो प्रियतम,इसमें शह या मात है क्या? प्रेमिका उवाच- अब तो तुमने बोल दिया प्रिय, उत्तर देना बाकी है। तुम चतुराई से बात कह दिया, मर्यादा भी ढाकी है। इतनी बात समझ लो साजन मैं तेरी थी तेरी हूँ, ये छोटे-मोटे झगड़े भी तो, गहरे प्यार की झांकी है। अरुण शुक्ल अर्जुन प्रयागराज (पूर्णत:मौलिक स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित) उपर्युक्त पंक्तियों से संबंधित एक लघु कथा डिस्क्रिप्शन में पढ़ें! मित्रों! इश्क़ प्यार मोहब्ब़त जैसे शब्द कानों में पड़ते ही एक जिज्ञासा रूपी तरंग मन में दौड़ जाती है। हम सोचते हैं कि आखिर यह प्रेम है क्या?