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Ek villain
शुक्रवार के संस्करण में प्रकाशित अजय खेमरिया लिखित आलेख मेडिकल शिक्षा का कमजोर ढांचा एक प्रकार से आंखें खोलने वाला है यह दिखाता है कि स्वतंत्र के इतने दशक बीत जाने के बावजूद भारत की किस प्रकार चला गया उसमें भी देश की एक बड़ी आबादी की सहमति करने वाले उत्तर भारत के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव या अन्याय हुआ आखिर क्या कारण है कि उत्तर प्रदेश बिहार हिमाचल हरियाणा और तमाम भारतीय राज्यों के छात्रों को सुदूर देशों में शिक्षण के लिए जाना पड़ा इससे कई तरह के नुकसान नहीं है इससे जहां में हमारी पूंजी का लाभ दूसरे देशों को मिलता है वही प्रतिभा पलायन के साथ मानव संसाधन की क्षमताओं से भी देश को हाथ धोना पड़ता है ऊपर से जिस प्रकार की परिस्थितियां इस समय यूक्रेन में निर्मित हुई है उसी उससे सरकार की उर्जा और संसाधनों को भी दूसरे देशों में मोड़ दिया है साथ ही घर वालों के लिए अलग से ही चेतना और चेतावनी का कारण बन गया जिस प्रकार देश के कॉमेडी के दौरान कई वस्तुओं के उत्पादन में आत्मनिर्भर की थी उसी प्रकार की आपदा को भी स्वास्थ्य शिक्षा के ढांचे में सुधार का अवसर बना लिया है ©Ek villain #शुद्ध स्वास्थ्य शिक्षा का ढांचा #MusicLove
Ek villain
यूक्रेन में चल रहे रूसी हमले के बीच भारत में चिकित्सा शिक्षा को लेकर एक बड़ी बहस खड़ी हो गई है काट कर लाएंगे चिकित्सा शिक्षा के साथ आबादी और अगस्त सत्ता के अनुपात में एमबीबीएस की कम सीटें संख्या को लेकर यह सच है कि भारत में एमबीबीएस की डिग्री पाना बेहद कड़ी प्रतिस्पर्धा यह संपना परिवारिक पृष्ठभूमि से ही संभव है लेकिन यह भी देते हैं कि आजादी के बाद से देश की चिकित्सा शिक्षा राज्य को कभी गंभीरता से सुगठित करने के प्रयास ही नहीं हुए 1947 के बाद देश की आवादी तो 7 गुना बढ़ गए लेकिन मेडिकल कॉलेज नहीं हालांकि मोदी सरकार के आने के बाद चिकित्सा शिक्षा के ढांचे और नियम आरंभ हुआ है 1914 की अवधि तक फैलाना और मेडिकल कॉलेज देश के निर्णय 2015 मेडिकल कॉलेज चिकित्सा महाविद्यालयों की संख्या 586 sa8000 एमबीबीएस और पीजी सीटें उपलब्ध ©Ek villain #मेडिकल शिक्षा का कमजोर ढांचा #Moon
Ek villain
राजीव सचान ने सामाजिक सद्भाव को संगीत चुनौती शीर्षक से लेख में अपने आलेख में हिंदू त्योहारों पर आयोजित होने वाली शुभ यात्रा पर एक वर्ग विशेष द्वारा किए जाने वाले हिंसक आक्रमण सहित समाज में बढ़ती धार्मिक कट्टरता पर गंभीर टिप्पणी की है इसमें कोई दो राय नहीं है अधिकांश मामलों में धार्मिक जुलूस के ऊपर किए जानेवाले हमले सुरोजित होते हैं सुबह यात्राओं से पहले यह जिस तरह से पत्थर डंडे और तलवार को इकट्ठा कर कर रखे हैं जिस तरह से दंगे मोहन द्वारा मोहल्ले फैमिली उससे संबंधित कोई संदेश नहीं रह जाता करौली खरगोन और 9 और 10 जैसे क्षेत्रों में यह दंगे इतनी भयानक थी कि मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में रहने वाले सैकड़ों परिवारों के साए में जी रहे हैं अच्छी बात यह है कि दंगों में शामिल रहे लोगों के धर पकड़ हो रही है उसके विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जा रही हिंसा के आरोप लगाया गया है इसके का सवाल यह भी है कि देश भर में बढ़ रही और उनके वर्तमान किया जा सकता है ©Ek villain #बदले आई पी सी का वर्तमान ढांचा #shaadi
Jitendra Kumar Som
भगवान विष्णु का स्वप्न एक बार भगवान नारायण वैकुण्ठलोक में सोये हुए थे। उन्होंने स्वप्न में देखा कि करोड़ों चन्द्रमाओं की कांतिवाले, त्रिशूल-डमरू-धारी, स्वर्णाभरण-भूषित, सुरेन्द्र-वन्दित, सिद्धिसेवित त्रिलोचन भगवान शिव प्रेम और आनन्दातिरेक से उन्मत्त होकर उनके सामने नृत्य कर रहे हैं। उन्हें देखकर भगवान विष्णु हर्ष से गद्गद् हो उठे और अचानक उठकर बैठ गये, कुछ देर तक ध्यानस्थ बैठे रहे। उन्हें इस प्रकार बैठे देखकर श्रीलक्ष्मी जी पूछने लगीं, ``भगवन! आपके इस प्रकार अचानक निद्रा से उठकर बैठने का क्या कारण है?'' भगवान ने कुछ देर तक उनके इस प्रशन का कोई उत्तर नहीं दिया और आनंद में निमग्न हुए चुपचाप बैठे रहे, कुछ देर बाद हर्षित होते हुए बोले, ``देवि, मैंने अभी स्वप्न में भगवान श्रीमहेश्वर का दर्शन किया है। उनकी छवि ऐसी अपूर्व आनंदमय एवं मनोहर थी कि देखते ही बनती थी। मालूम होता है, शंकर ने मुझे स्मरण किया है। अहोभाग्य, चलो, कैलाश में चलकर हम लोग महादेव के दर्शन करें।'' ऐसा विचार कर दोनों कैलाश की ओर चल दिये। भगवान शिव के दर्शन के लिए कैलाश मार्ग पर आधी दूर गये होंगे कि देखते हैं भगवान शंकर स्वयं गिरिजा के साथ उनकी ओर चले आ रहे हैं। अब भगवान के आनंद का तो ठिकाना ही नहीं रहा। मानों घर बैठे निधि मिल गयी। पास आते ही दोनों परस्पर बड़े प्रेम से मिले। ऐसा लगा, मानों प्रेम और आनंद का समुद्र उमड़ पड़ा। एक-दूसरे को देखकर दोनों के नेत्रों से आनन्दाश्रु बहने लगे और शरीर पुलकायमान हो गया। दोनों ही एक-दूसरे से लिपटे हुए कुछ देर मूकवत् खड़े रहे। प्रशनोत्तर होने पर मालूम हुआ कि शंकर जी को भी रात्रि में इसी प्रकार का स्वप्न हुआ कि मानों विष्णु भगवान को वे उसी रूप में देख रहे हैं, जिस रूप में अब उनके सामने खड़े थे। दोनों के स्वप्न के वृत्तान्त से अवगत होने के बाद दोनों एक-दूसरे को अपने निवास ले जाने का आग्रह करने लगे। नारायण ने कहा कि वैकुण्ठ चलो और भोलेनाथ कहने लगे कि कैलाश की ओर प्रस्थान किया जाये। दोनों के आग्रह में इतना अलौकिक प्रेम था कि यह निर्णय करना कठिन हो गया कि कहां चला जाय? इतने में ही क्या देखते हैं कि वीणा बजाते, हरिगुण गाते नारद जी कहीं से आ निकले। बस, फिर क्या था? लगे दोनों उनसे निर्णय कराने कि कहां चला जाय? बेचारे नारदजी तो स्वयं परेशान थे, उस अलौकिक-मिलन को देखकर। वे तो स्वयं अपनी सुध-बुध भूल गये और लगे मस्त होकर दोनों का गुणगान करने। अब निर्णय कौन करे? अंत में यह तय हुआ कि भगवती उमा जो कह दें, वही ठीक है। भगवती उमा पहले तो कुछ देर चुप रहीं। अंत में वे दोनों की ओर मुख करते हुए बोलीं, ``हे नाथ, हे नारायण, आप लोगों के निश्चल, अनन्य एवं अलौकिक प्रेम को देखकर तो यही समझ में आता है कि आपके निवास अलग-अलग नहीं हैं, जो कैलाश है, वही वैकुण्ठ है और जो वैकुण्ठ है, वही कैलाश है, केवल नाम में ही भेद है। यहीं नहीं, मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि आपकी आत्मा भी एक ही है, केवल शरीर देखने में दो हैं। और तो और, मुझे तो स्पष्ट लग रहा है कि आपकी भार्याएँ भी एक ही हैं। जो मैं हूं, वही लक्ष्मी हैं और जो लक्ष्मी हैं, वही मैं हूँ। केवल इतना ही नहीं, मेरी तो अब यह दृढ़ धारणा हो गयी है कि आप लोगों में से एक के प्रति जो द्वेष करता है, वह मानों दूसरे के प्रति ही करता है। एक की जो पूजा करता है, वह मानों दूसरे की भी पूजा करता है। मैं तो तय समझती हूं कि आप दोनों में जो भेद मानता है, उसका चिरकाल तक घोर पतन होता है। मैं देखती हूं कि आप मुझे इस प्रसंग में अपना मध्यस्थ बनाकर मानो मेरी प्रवंचना कर रहे हैं, मुझे असमंजस में डाल रहे हैं, मुझे भुला रहे हैं। अब मेरी यह प्रार्थना है कि आप लोग दोनों ही अपने-अपने लोक को पधारिये। श्रीविष्णु यह समझें कि हम शिव रूप में वैकुण्ठ जा रहे हैं और महेश्वर यह मानें कि हम विष्णु रूप में कैलाश-गमन कर रहे हैं। इस उत्तर को सुनकर दोनों परम प्रसन्न हुए और भगवती उमा की प्रशंसा करते हुए, दोनों ने एक-दूसरे को प्रणाम किया और अत्यंत हर्षित होकर अपने-अपने लोक को प्रस्थान किया। लौटकर जब श्रीविष्णु वैकुण्ठ पहुंचे तो श्रीलक्ष्मी जी ने उनसे प्रशन किया, ``हे प्रभु, आपको सबसे अधिक प्रिय कौन है?'' भगवन बोले, ``प्रिये, मेरे प्रियतम केवल श्रीशंकर हैं। देहधारियों को अपने देह की भांति वे मुझे अकारण ही प्रिय हैं। एक बार मैं और श्रीशंकर दोनों पृथ्वी पर घूमने निकले। मैं अपने प्रियतम की खोज में इस आशय से निकला कि मेरी ही तरह जो अपने प्रियतम की खोज में देश-देशान्तर में भटक रहा होगा, वही मुझे अकारण प्रिय होगा। थोड़ी देर के बाद मेरी श्री शंकर जी से भेंट हो गयी। वास्तव में मैं ही जनार्दन हूं और मैं ही महादेव हूं। अलग-अलग दो घड़ों में रखे हुए जल की भांति मुझमें और उनमें कोई अंतर नहीं है। शंकरजी के अतिरिक्त शिव की चर्चा करने वाला शिवभक्त भी मुझे अत्यंत प्रिय है। इसके विपरीत जो शिव की पूजा नहीं करते, वे मुझे कदापि प्रिय नहीं हो सकते।'' इस तरह जो शिव की पूजा करता है वह वैकुंठवासी विष्णु को भी स्वीकार है और जो श्री विष्णु की वंदना करता है, वह त्रिपुरारी को भी मना लेता है। ©Jitendra Kumar Som #Health भगवान विष्णु का स्वप्न
vishnu meadical
dil tutata hai to aawaj aati hai ©vishnu meadical आप का अपना विष्णु मद्धेशिया #MereKhayaal