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guru
मैरे हर जिक्र मैं तू हैं । औऱ तुझ मैं ही तो अल्लाह औऱ राम हैं ।। तैरे मैरे बीच गिला केसीं । जब तैरे मैरे दिल मैं अल्लाह औऱ राम हैं ।। मानवता एक नजऱ..... . मानवता ,भाईचारे की और....
प्रेमदास वसु सुरेखा सद्कवि
खुले लोकतंत्र में पशु तंत्र ही सबसे बड़ा हथियार है कहने वाले कहते नही सबकी जुबान बंद है कब तक होगा ये सब नहीं शास्वत रहने वाला है आज नहीं तो कल फिर देखो शमशान का ढेर है अतिवाद ने हमेशा ही सर्वनाश मानव किया है समता का संदेश न देना अहंकार का बीज है आज हुआ है बुरा कल फिर किसका नंबर है खुले चौराहे पै आज टांक दो मानवता की हार है **प्रेमदास वसु सुरेखा** ©प्रेमदास वसु सुरेखा सद्कवि भारतीय मानवता की हार
devina raghuwanshi
हररोज़ एक नया मसला होता हैं, और रोज़ ही अफ़सोस जताकर, भुला दिया जाता हैं॥ कोई तो खुशखबर आयें, हर सुबह इंतज़ार रहता हैं, रोज अख़बार का मुँह देखकर, चाय का स्वाद बिगड़ जाता हैं॥ मानवता का कोई भी प्रतिबिंब, मानव में अब नज़र नहीं आता हैं॥ ✍🏻Devina.. on_instagram_@devina_raghuwanshi. मानवता की दयनीय स्थिति॥
Aakash Tripathi
स्वाभाविक सी बात है दोस्तों जब तक हम सामने से याद नहीं करेंगे, तब तक तुम्हे कैसे हमारी याद आयेगी। ©Aakash Tripathi आज की मानवता 😇 #Morning
अविरल अनुभूति
कट गई फिर इक रात, ये सोचते सोचते। जिंदगी में अपना वजूद, खोजते खोजते।। जन्म दिया जो मानव का, उसने कुछ सोचा होगा। आ सकू काम मैं औरौ के, सोच यही भेजा होगा।। मूक पशु भी जीवन अपना, बिन विवेक जी लेते हैं। स्वयं ही अपने श्रम बल से, पेट अपना भर लेते हैं।। फिर क्या अंतर है दोनो में, यदि हमनें ऐसा व्यवहार किया। जो नहीं किसी की सेवा की, और नहि कभी उपकार किया।। गजब है तेरी लीला प्रभु, कुछ छप्पन भोग लगाते हैं। कुछ तपडें सूखी रोटी को, और भूखे ही मर जाते हैं।। आंखो के आंसू सूख गए, है दुख का पारावार नहीं। अभावों से मरते गरीब को, क्या जीने का अधिकार नहीं।। मरती मानवता प्रतिपल है, होता जीवन का उपहास यहां। दुखी पीड़ित कोई रोता हैं, कहिं होता उत्सव उल्लास यहां।। प्रकृति-मानवता ही है ईश्वर, कुछ होता इनसे बडा नहीं। मंदिर मस्जिद क्या जाना, जब ह्दय प्रेम से भरा नहीं।। भूल के अपना राग द्वेष, आओ कर्तव्य महान करें। दीन हीन की सेवा कर, मानवता का उत्थान करें।। अविरल विपिन सजगता से मानवता की ओर
Sumit Kumar
हादसे से बड़ा ये"हादसा"हुआ, लोग फोटो लेने लगे"हादसा" देखकर.. ©Sumit Kumar मानवता की जरुरत है दोस्तों..
Rohit Kahar
इस मोल भाव के जगत में मानवता कहा खो जाती हैं कैसे कोई अग्बा कर लेता है किसी की बेटी को सोचो कैसे खाते होंगे उसके घर वाले रोटी को वहीं बेटी अग्बा हुई जब हुई तार तार थी वहीं बेटी समाज की खातिर मानवता का अवतार थी अक्सर बो बेटियां ही अग्बा होती है जिन्हे समाज ने पहनाई बेड़ियां होती है क्यों न कुछ बेड़ियां समाज के लिए बना दे और बेटियों को उन बेड़ियों से आजाद कर दे। और बता दे समाज को (x2) वो कल भी लछंमी बाई थी और आज भी लछंमी बाई है ©Rohit Kahar मानवता और मानवता