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कोमल किसलय के अंचल में, नन्हीं कलिका ज्यों छिपती-सी। गोधूली के धूमिल पट में, दीपक के स्वर में दिपती-सी। मंजुल स्वप्नों की विस्मृति में, मन का उन्माद निखरता ज्यों। सुरभित लहरों की छाया में, बुल्ले का विभव बिखरता ज्यों। वैसी ही माया में लिपटी अधरों पर उँगली धरे हुए। माधव के सरस कुतूहल का आँखों में पानी भरे हुए। नीरव निशीथ में लतिका-सी तुम कौन आ रही हो बढ़ती? कोमल बाँहे फैलाये-सी आलिगंन का जादू पढ़ती? किन इंद्रजाल के फूलों से लेकर सुहाग-कण-राग-भरे। सिर नीचा कर हो गूँथ माला जिससे मधु धार ढरे? पुलकित कदंब की माला-सी पहना देती हो अंतर में। झुक जाती है मन की डाली अपनी फल भरता के डर में। जयशंकर प्रसाद श्री जयशंकर प्रसाद जी की रचना कामायनी के लज्जा सर्ग से
Harpinder Kaur
मनु ने श्रद्धा, इड़ा का साथ पाकर ये संसार बसाया है इस प्रकृति का पहला मानव 'मनु' ही कहलाया है मनु- श्रद्धा दोनों ने मिलकर मानव वंशज को आगे बढ़ाया है जब हुआ प्राप्त 'इड़ा' का साथ तब ये संसार विकास के मार्ग पर चल पाया है | ©Harpinder Kaur # जयशंकर की "कामायनी" मनु, श्रद्धा, इड़ा का सार #SuperBloodMoon
Mohan Sardarshahari
कुछ रचनाएं पढ़ने से कुछ दूसरी देखने से तो कुछ बताने से समझ में आती हैं असल रचना वह है जो स्वयं बोल बताती है। ©Mohan Sardarshahari रचना बोलती है
Raj Purohit ji Bateshwar Dham Bah (Agra)
तेरे घर से निकलने के इंतजार में पागल से हो गए हैं,जरा बाहर निकल कर देख,तेरे चाहने बाले कब से तेरा इंतजार कर रहे हैं रचना है ? इंतजार