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सुरेश चौधरी
तन बिगाड़ा मन बिगाड़ा रे डूब डूब कर द्वेष गरल में छोड़ अहंकार जी ले प्राणी प्रेम प्रीत सा सहज सरल में पी प्राणी कुम्भ राम रस का अजी पी प्याला श्याम रस का तूने मैली की माया मोह से चदरिया आई क्यूं जिंदगानी पर काली बदरिया गुमान तू मत कर पांच तत्व के चोले पर तेरे तन की इक दिन ढह जायगी अटरिया धन दौलत के पीछे भागा पी हाला क्रोध काम रस का पी प्राणी कुम्भ राम रस का अजी पी प्याला श्याम रस का माटी के पुतले माटी में मील जायंगे महल मालिया तेरे सब यहीं रह जायंगे सांस सांस बस काम क्रोध धरे रह जायंगे संभल जा प्यारे छोड़ सब प्रभु घर जायंगे कितनी कर ली कमाई इंदु अब पी हरी नाम रस का पी प्राणी कुम्भ राम रस का अजी पी प्याला श्याम रस का ****** निर्गुण भजन
Anurag Sanskar
बन्दे चल सोच समझ के क्यों ये जनम गवाय, बार बार ये नर्तन चोला तुझे न मिलने पाय ॥ बचपन बीता आई जवानी खूब चैन से सोया, गुजर गई अनमोल घडी तो देख बुढ़ापा रोया, इस योवन पे नाज तुझे वो मिटटी मैं मिल जाये, बन्दे चल सोच समझ के...... झूठ कपट से जोड़ा तुमने अपना माल खजाना, काम क्रोध मध् लोभ मैं फास कर प्रभु को न पहचाना, मुठ्ठी बांध के आया जग में हाथ पसारे जाए, बन्दे चल सोच समझ के..... ये दुनिया है सराय है मुशाफिर छोड़ इसे है जाना, कोई किसी का नहीं जगत मैं ये तन है बेगाना, उड़जाये पिंजरे का पंछी पिंजरा साथ न जाये, बन्दे चल सोच समझ के....... निर्गुण भजन
अविरल अनुभूति
तुम्हे सिर्फ मीठा परमात्मा चाहिए, लेकिन वो मीठा और कड़वा दोनों है। निर्गुण, सगुण, परिपूर्ण⚜️🔱 ©अविरल अनुभूति निर्गुण
~आचार्य परम्~
क्यों ढूँढता है तू यूँ मुझे दर बदर आंखें बंद करो तो मैं आऊँ नज़र ।। जिसे खुली निगाहें देख नहीं सकती । यहीं कही छिपा है तेरे दिल के अंदर ।। ~*परम् भाग्यम्*~ निर्गुण..... आत्मा
Adarsh Dwivedi
पोल खोली, कुछ न बोली, डोलि जाई, का करी, ओनकी जफड़ी मा कसत इज्जत बचाई, का करी? बूँद भै जानै न हमरी जात कै औकात जे, वहि समुंदर की लहर कै गीत गाई, का करी? फूस की मड़ई मा बनि बारूद हम पैदा भए, आग देखी तौ भभकि के बरि न जाई, का करी? छाँव की खातिर पसीना खून से सींचा किहे, झोंझ से माटा झरैं तौ मुँह नोचाई, का करी? पूत जौ पूछै बमकि के बाप से तू का किह्या, ऊ बेचारा हाथ मलि के रहि न जाई, का करी आद्या प्रसाद 'उन्मत्त' (अवधि) ©Adarsh Dwivedi अवधी ग़ज़ल
Deepanshi Srivastava
सब दुःख आपन काटै कटिहैं , अइहै न कोय उलट हंस लीहें... औ कलयुग मा का चहत हौ भैया, हियां तो अपनेह अपनेक डसिहें... आवा काल बड़ा विषधारी , देखौ कऊन रही कऊन जारी... तुम गैरं ते का डरत हौ भैया , प्रथम तो अपनेह डुबइहैं नईया... औे जौ तुम हियां सत्य पथ चलीहौ, सब जन के तुम दुश्मन बनिहौ... तुम तजौ मूल्य सब भए पुराने , चलौ चाल जऊन सब मन भावे... ©Deepanshi Srivastava अवधी ❤️ #Flower