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Arora PR
न जाने अपने जीवन की कितनी अनगिनीत कहानियाँ हमने अपनी छत और छत की दीवारों के साथ साथ छत के सन्नाटो को भी सुनाई होंगी.. उनका कोई हिसाब नहीं अब भी ज़ब कभी मै छत पर जाता हूँ मेरी छत और उसकी दीवारे मुझे उत्सुकता से घूरती हैँ. मानो मै अब उन्हें अपने जीवन की बची खुची कहानियाँ उनके साथ साझा करने वाला हूँ ©Arora PR बची खुची कहानियाँ
दि कु पां
तुमसे हुई मुलाकातों की बातें तुम बेइंतिहा हो.. बेहद दिलकशी हो, मिला जो तुमसे पहली बार तो कहां होश में थे हम सरकार.. वो तुम्हीं थीं जिसने सहारा बाहों से हमें दिया, कि बची खुची होश भी.. स्पर्श से आपके हो गए फरार.. आगे की दास्तां बताने के ना थे हालात जो तुम बताओ वो ही सच है बात.. तुमसे हुई मुलाकातों की बातें तुम बेइंतिहा हो.. बेहद दिलकशी हो, मिला जो तुमसे पहली बार तो कहां होश में थे हम सरकार.. वो तुम्हीं थीं जिसने स
दि कु पां
"नोकझोक" जहां जानें अंजाने अपनी व्यथा बयां कर गई... उम्र..उम्र मैरी भी अब तुम्हारे उम्र के पास हो चली है, कि अब थकान तुम्हे ही नहीं मुझे भी लगने लगी है, बहुत समझा तुमको.. अब बारी तुम्हारी है... थोड़ा तुम भी अब समझो मुझे अब घुटनों में.. पैरों में.. मेरे भी दर्द सा रहने लगा है.. सहन शक्ति तुम्हारी ही नहीं अब मैरी भी कम होने लगी है.. कि अब तुम्हारे मुंह फुलाने का फर्क मुझ पर नहीं पड़ता है.. पर तुम्हारी खुशी के लिए थोड़ा मन मुनव्वल कर लेती हूं.. ये मैं हूं जो तुम्हारी नादानियों को इतना सा बोलकर सह लेती हो.. शुकर मनाओ जिंदा हूं जो तुम्हारे लिए इतना कर देती हूं अबकी करवा चोथ का उपवास तुम भी कर लेना जो बची खुची जिंदगी सुकून से जीना चाहते हो तो मैरी स्वस्थ और दीर्घायु की प्रार्थना प्रभु कर लेना.. शायद बची खुची ठीक से निभ जाएं वरना अब जो मैं चली गई तो कोई पानी भी ना पूछेगा मुझे क्या मुझे तो आदत सी पड़ गई है तुम्हारी तुमसे ही तो दुनिया है और ये जिंदगी हमारी... "नोकझोक" उम्र..उम्र मैरी भी अब तुम्हारे उम्र के पास हो चली है, कि अब थकान तुम्हे ही नहीं मुझे भी लगने लगी है, बहुत समझा तुमको.. अब बारी तुम्
Shaifsiddique
चलों आज फिर से उन्हें याद करते हैं, उनका नाम लेकर खुद को बर्बाद करते हैं। दिल में बची-खुची मोहब्बत फिर से उनके नाम करते हैं, बाॅकी रह गाया हैं जो कुछ भी आज वो भी चर्चे सरेआम करते हैं। चलों आज फिर से उन्हे याद करते हैं, चलों आज फिर से उन्हे याद करते हैं .... ©Shaifsiddique चलों आज फिर से उन्हें याद करते हैं, उनका नाम लेकर खुद को बर्बाद करते हैं। दिल में बची-खुची मोहब्बत फिर से उनके नाम करते हैं, बाॅकी रह गाया
Devesh Dixit
दबी कुचली कलम दबी कुचली कलम की पीड़ा, कहाँ समझे है कोई। देख स्थिति उसकी अब तो, आँखें भी तब रोईं। कितनों का था साथ दिया, अब न उसका कोई। स्याही ख़त्म तो उसको छोड़ा, फिर भी बात न कोई। हद तो हो गई थी तब देखो, जब अपनी किस्मत खोई। फेंक दिया उसको सड़क पर, थी तब अति ये होई। बिलख बिलख कर कलम है रोती, इन्साफ करो अब कोई। ऐसा भी यहाँ जालिम होगा, सोचा कभी न कोई। ऐसे मुझको फेंक गया वो, जैसे घुन हूँ कोई। गाड़ी आई सरपट दौड़ी, कुचल गई मैं रोई। बची खुची कसर पूरी हो गई, जब हस्ती भी अपनी खोई। कैसे कैसे लोग यहाँ पर, जिनमें दया धर्म न कोई। ......................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #दबी_कुचली_कलम #nojotohindi दबी कुचली कलम दबी कुचली कलम की पीड़ा, कहाँ समझे है कोई। देख स्थिति उसकी अब तो, आँखें भी तब रोईं।
Arsh
बाहर भेजा था बेटे को घर में खुशियाँ लाने को ढाँचा हीं पर दिख रहा है थकी आँखों से ममता को। हँसकर तो वह कह गया था अबकी छप्पर बन जाएगा थाली में अब होगी रोटी ले आऊँगा नयका धोती। धोती का तो पता नही पर कफन में तू लौटा है कैसे होगी मुन्नी की शादी सिर्फ बोझ नहीं , यह धोखा है। कह गया था, आऊँगा अबकी तो बनवाऊँगा आँखे आँखों से पर किसको तकना अच्छा हो रुक जाए साँसे। स्रोत : जब इराक में 39 भारतीयों (पंजाब-27, बिहार-6, हिमाचल-4, बंगाल-2) की निर्मम हत्या की पुष्टि 3 अप्रैल 2018 को कर दी गई। कंकाल रूप(सारे
AJAY NAYAK
जाने दो उन्हें, जब भी लौटे हैं आंसुओं का सैलाब ही लाये हैं! जिंदगी में जितनी खुशियां नही दिए हैं उससे ज्यादा जिंदगी में, काँटों से भरने का काम किये हैं। आज दिल खुश है मन आज़ाद है उड़ रहा है उन्मुक्त मन से गगन में न कोई आशा है न कोई निराशा न किसी का आगा है न किसी का पीछा फिर से लाकर उन्हें, बची खुची जिंदगी को फिर उसी जहन्नुम में नही पहुंचाना है। जाने दो उन्हें, जब भी लौटे हैं आंसुओं का सैलाब ही लाये हैं! –अjay नायक ‘वशिष्ठ’ ©AJAY NAYAK #जानेदो जाने दो उन्हें, जब भी लौटे हैं आंसुओं का सैलाब ही लाये हैं! जिंदगी में जितनी खुशियां नही दिए हैं उससे ज्यादा जिंदगी में, काँटों से
Shree
कुछ खत्म नहीं होता, जब तक आप चाहते नहीं, बातों की बारे बातें कब क्यों ही बनाते, समझते नही! संभालिए जरा कि नाज़ुक डोर और नवाबी तौर है.., नाहक नाक चढ़ाना पुराना अजीज, अजीब शौक़ है! अनुशीर्षक सोचा... क्या बदला??🤔 °°°°°°°°°°°°°°°°°°°° कुछ खत्म नहीं होता, जब तक आप चाहते नही, बातों की बारे बातें कब क्यों ही बनाते, समझते नहीं! संभालि
Ajay Prakash
✍अधूरा ख्वाब ✍ एक दिन वापस मुड़कर आऊंगा मैं कैसे बिताया तुम बिन जिन्दगी का हर पल आकर बताऊंगा मैं हे सहजादी क्या आज भी मुझे याद करती हो ऐसा पूछकर बार बार बतलाऊंगा मैं थोड़ी सी खामोशी हो कुछ ख्वाईश हो नुमाईश हो उन चाँद तारो तलक छाया मे उनकी बाहों मे तुम्हारी सो जाऊंगा मैं देखा था तुम्हारे साथ एक ख्वाब जो टूट कर बिखर गया टूटे ख्वाब से एक और ख्वाब देखूंगा मैं ख्वाब ही ख्वाब कब तलक देखु काश तुझको भी एक झलक देखु देख नायाब बेहद खूबसूरत चेहरे पर नूर फ़ना हो जाना चाहूंगा मैं उम्र गुजार दी तुम्हारे इंतजार मे बाकी बची खुची भी इंतजार मे गुजार देना चाहूंगा मैं मेरे दर्द पर अपनी हँसी का मरहम लगादे मेरे दिल मे मोहबत की कलम लगादे कितना और तड़फना बाकी है मेरे हमसफर मारदे मुझे या मर जाऊंगा मैं मरते मरते,,,,बरसो पहले जो सूरत देखी थी तुम्हारी दिल पर तस्वीर बना जाऊंगा मैं याद करके जो लिखता हु शायर तुम्हारे नाम के एक गजल को तुम्हारा नाम दे जाऊंगा मैं ✍Ajpatir ✍ ✍अधूरा ख्वाब ✍ एक दिन वापस मुड़कर आऊंगा मैं कैसे बिताया तुम बिन जिन्दगी का हर पल आकर बताऊंगा मैं हे सहजादी क्या आज भी मुझे याद करती हो ऐसा
Shree
'ना' बोल कर करने वाले... निभाने वाले हैं, सच तोलकर... झूठ नहीं सराहने वाले हैं, हमारे झूठ को सच समझते हो कितना, मुखौटे हमारे चेहरे पर लगा, हमें नकली कहते। ..... क्यों? आखिर क्यों, स्त्रियां अपनी अवहेलना करने से पीछे नहीं हटती है। सब कुछ कर के, सब सह कर, लूटी-पीटी, बची-खुची जिंदगी जीती है। कभी समाज के नाम, कभी वात्सल्य कभी प्रेम, कभी जिम्मेदारी में छली जाती है। क्या जाने विधाता ने अलग ढंग की मिट्टी में क्यों प्राण के साथ अस्तित्व डाले हैं? अस्तित्व ही क्यों! ........................ 'ना' बोल कर करने वाले... निभाने वाले हैं, सच तोलकर... झूठ नहीं सराहने वाले हैं,