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Usha Yadav
कोरोना और प्रवासी मजदूर सचमुच दिल दहल सा जा रहा है प्रतिदिन मजदूरों की ऐसी तस्वीरों को देखकर। भारत में जब से करोना वायरस ने अपना पैर पसार है।तब से संपूर्ण भारत लाक डाउन हो गया। परंतु उन मजदूरों का क्या? जो रोज कमाते थे रोज खाते थे उन बेचारों को तो अब हर चीजों के लिए मोहताज होना पड़ रहा है। बेशक सरकार अपनी तरफ से रियायतें दे रही है परंतु क्या इन थोड़े से राशन और ₹500 से अपना और अपने परिवार का पेट कब तक पाल सकेगा। बेचारा मजबूत किराए का मकान प्रतिदिन उपयोग की वस्तुएं हर चीजों के लिए तो पैसा चाहिए। कहां से लाएगा यह मजदूर। इसलिए उन लोगों ने अपने गांव की तरफ पलायन करना शुरू कर दिया। सरकार ने ट्रेन तो शुरू कर दी है क्या इन ट्रेनों का किराया यह मजदूर उठा पाएगा? इतना किराया जिसके पास खाने के लिए पैसे तक नहीं वह किराया कहां से दे पाएगा। आखिर बेचारे! क्या करें अपने पैरों को ही रास्ता तय करने के लिए मजबूत बना लिया। अपने गांव तक के रास्ते को तय करके अपने पैरों को ही वाहन बना अपने बच्चों समेत चल दिए। बस चलते ही रहे मंजिल तक का कोई ठिकाना नहीं किसी के बच्चे भूखे किसी के बच्चे प्यासे रो रहे हैं। ऐसी हालत हो चुकी है बेचारों की यदि पैरों की चप्पल टूट भी गई तो नंगे पैरों इतनी कड़कड़ाती धूप में भी निकल चले हैं। कोई साइकिल से कोई पैदल अपनी जान की परवाह किए बिना बस चल पड़े। उन्हें नहीं पता कि वह घर पहुंचेंगे भी या नहीं। रोजाना सोशल मीडिया के द्वारा पता चलता है कि मजदूरों की सड़क दुर्घटना में इतने मजदूर मारे गए। कोई ट्रेन की चपेट में आ गए कोई मां भूखे प्यासे थक कर के अपने बच्चों को कंधों पर बिठाकर बस चलती जा रही है। खुद को नहीं पता मंजिल उसे मिलेगी या नहीं बस दिलासा देती जा रही है बस थोड़ी दूर और बस थोड़ी दूर और चलना है बेटा ! यह बेचारे कोरोना से तो बाद में मरेंगे भूख प्यास से पहले मर जाएंगे। जब हमारी प्रजा ही नहीं बचेगी तो हम इस अर्थव्यवस्था और आत्म निर्भरता का क्या करेंगे ? लिखने को तो बहुत कुछ है परंतु यह सब लिखते वक्त दिल जैसे रो पड़ा है हम लोग लाक डाउन में अपने घरों में तो है। परंतु उन मजदूरों का क्या जो निकल पड़े हैं भूख से बेहाल होकर! धन्यवाद😔😔 प्रवासी मजदूर
Pavan Sharma
देख ये मंज़र, कैसे जी रहा इंसान.. एक हाथ में बच्चा, एक में जान कुछ तो रहम कर, कुछ तो बता रास्ता सिर्फ इनकी अकेले की तो नहीं कोई खता...। #प्रवासी मजदूर @pavan #प्रवासी मजदूर
Sudhakar Singh
।।।जो सूट बूट मे आया था ।डालर और पाऊंड लाया था।दिरहम दीनारी थैलों मे बीमारी वही छुपाया था।वो कुलीन अभिजात्य वर्ग जिनको विदेश ही प्यारा था। जो भागे थे इस माटी से इसमें क्या दोष हमारा था। जिनके उदरो का खालीपन ये देश नही भर पाया था। उसको तुमने क्यों नही धरा जो इस विषधर को लाया था। अपने जीवन का लक्ष्य महज दो रोटी पर ही घूम रहा । हम जैसो के खून पसीनो पर जो पिये बार झूम रहा। उसका इतना महिमामंडन जो दबे पांव घुस आया था। मिट्टी गारे मे सन सन करके हमने जो शहर बनाया था। जब वक्त पड़ा तो पता चला वो अपना नही पराया था। हम मलिन लोग गंधाते थे तुमको कब कंहा सुहाते थे। लंबी दीवारों के पीछे तुमने ही हमे छुपाया था।अब शहर शहर और नगर नगर हर तरफ भीड़ का रेला है। मुफलिसी गरीबी का जमघट भूखे नंगो का मेला है।कितना इसको ढक पाओगे ।इन सबको कंहा छुपाओगे। हमने इस मिट्टी को चाहा शहरों को आबाद किया। अपने खून पसीने से इस देश को जिंदा बाद किया। मेरा सपना बस रोटी थी मैं वही कमाने आया था। पर ये जो पीड़ा मुझे मिली उसका हकदार पराया था।।जिनके थे उदर बहुत गहरे जो यंहा नही भर पाया था। उससे भी सवाल जरूर करना जो इस महा प्रलय को लाया था।। प्रवासी मजदूर#
AMIT
ये बोझिल कदमों की आहट.. ये उखड़ी सांसे..ये घबराहट, ये सूखे गले..ये उघड़े बदन.. ये जलती धरती..ये तीखी तपन, है सर के बोझ में पूरा घर.. आंखें पत्थर हैं.. दिल पत्थर, बहते आंसू.. रोती माएं.. भूखे बच्चे.. उनकी आहें, निर्धन होकर क्या जुल्म किया, हमही जाने.. जो हमने सहा, यहां पीछे क्या-क्या छूट गया, सालों का रिश्ता टूट गया, ये गांव का रास्ता पूछ रहा, क्यूं घर लौटे.. क्या सूझ रहा, ना काम यहां.. ना पैसा है, यहां जीना.. मरने जैसा है, किसकी नाकामी.. लाचारी है, हम किसकी जिम्मेदारी है..? -------अमित प्रवासी मजदूर..