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MANJUL DWIVEDI "MAD"

तूने धागा चुरा लिया #शायरी

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तूने मुझे अपने ख़्वाबों का दीवाना बना दिया,
जो चले हम उन्हें बुनने तूने धागा चुरा लिया। तूने धागा चुरा लिया

Abhishek Shrivastava

तूने चुरा ली। जय जय #StoryOfSuspense

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B.L Parihar

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          #_____बाँसुरी 

बाँसुरी बनाने वाले बताते हैं कि, इसके लिए आवश्यक बाँस को तिथि के अनुसार तोड़ा जाता है।
पंचमी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी इन तिथियों पर अगर बाँस तोड़ा गया तो उसमें कीड़े लग जाते हैं। 
      इसका कारण ये है कि, इन तिथियों का अंतिम अक्षर " मी " है जो " मैं " अथवा अहंकार का परिचायक है और अहंकार से कार्यनाश होकर बाँसुरी अधिक समय तक नहीं चलती, ऐंसी मान्यता है।

कृष्ण भगवान का पसंदीदा वाद्य बाँसुरी है।
एक बार कृष्ण के सभी सखा और गोपियों ने बाँसुरी से कहा कि, हम कृष्ण के इतने करीबी हैं, उनकी भक्ति करते, उनका गुणगान करते हैं, उनके आसपास घूमते रहते हैं, लेकिन वे हमें उतना भाव नहीं देते और तुम इतनी साधारण, ना रूप ना और कुछ, फिर भी भगवान तुम्हें होंठों से लगाए रहते हैं। आखिर तुमने ऐंसा कौनसा जादू किया है उनपर ??

बाँसुरी ने हँसकर कहा---" तुम मेरी तरह बनो फिर कृष्ण तुम्हें भी अपने करीब रखेंगे। मैं एकदम सीधी हूँ, ना कोई गाँठ और ना ही कोई मोड़ या घुमाव। मैं अंदर से पोली हूँ और उसी पोलेपन से मेरा सारा अहंकार निकल गया है।
मेरे शरीर के 6 छिद्रों द्वारा काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, अहंकार सब मैंने बाहर फेंक दिए हैं।
मेरी खुद की कोई आवाज नहीं है। मुझमें फूँक मारने पर ही मैं बोलती हूँ।
जो जैंसी फूँक मारता है, मैं वैसा ही बोलती हूँ। "

बाँसुरी का प्यारा उत्तर सुन सखा और गोपियाँ सभी निरुत्तर हो गए।

#अहंकार_रहित_शरीर_ही, 

              #श्री_हरी_की_बाँसुरी_है

जय श्री कृष्ण🙏🏻 #NojotoQuote #कृष्णा कि बांसुरी 
#बांसुरी

ऋचा

बांसुरी #कविता

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बांसुरी
मैं भला कैसे कहूँ इतने निकट मेरे रहो
श्वास जो मेरी रहीं हैं उनका स्वर बनके बहो
मैं कहाँ से ढ़ूढ लाऊं साहसों की सीढ़ियां
जिन पे चढ़ के जान पाऊँ सुर बसे तुम में कहाँ
ईष्ट के तुम मुंहलगी हो मुझसे कैसे साम्य हो
तुम अधर की शान ठहरीं मैं चरनरज भी कहाँ
बांसुरी तुम कृष्ण की हर श्वास का निः श्वास हो
मैं बड़ी अदना सी राधा तुमसी कैसे खास हूँ?
ऋचा खरे
स्वरचित बांसुरी

Babita Buch

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ऋचा

मैं भला कैसे कहूँ इतने निकट मेरे रहो
श्वास जो मेरी रहीं हैं उनका स्वर बनके बहो
मैं कहाँ से ढ़ूढ लाऊं साहसों की सीढ़ियां
जिन पे चढ़ के जान पाऊँ सुर बसे तुम में कहाँ
ईष्ट के तुम मुंहलगी हो मुझसे कैसे साम्य हो
तुम अधर की शान ठहरीं
 मैं चरनरज भी कहाँ
बांसुरी तुम कृष्ण की हर श्वास का निः श्वास हो
मैं बड़ी अदना सी राधा तुमसी कैसे खास हूँ?
ऋचा खरे
स्वरचित #बांसुरी
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