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Author Harsh Ranjan

तथाकथित कलियुगी सीतायें

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तथाकथित कलियुगी सीताओं ने माना है,
हर युग के राम का व्यक्तित्व व अस्तित्व
सिर्फ चूड़ियों की खनक से निभाना है,
उन सबको सदैव किसी सीता के
स्पर्श के आगे/के लिए/के बाद
बेमोल बेजुबान गिरवी हो जाना है।
बहुत सबला व आकर्षक थी वो
समाज की नजरों में पहली बार,
वर्ष, स्पर्श और घर्ष से पहले,
वो स्वामिनी थी सड़क से स्वम्बर तक
योनि मथे व ग्रसे जाने से पहले।
उन्हें कुंठा मिश्रित अचरज है त्याग से,
वो खुद स्वछंदता चाहती हैं आवेगहीन,
दूध के उबाल के बीच ध्यान धरे
पूछती हैं उसका अस्तित्व विराग से।
तथाकथित कलियुगी सीतायें मानती है कि
उनकी काया में सारी सृष्टि है
और रोग देने वाले सकल स्त्री-भोग,
योग व लोक-कल्याण की वृष्टि है।
वो खुद को स्वर्ग के समकक्ष रखती हैं,
पर क्या वो सरल समावेशी हृदय भी, 
या सिर्फ आकर्षक स्थूल वक्ष रखती हैं।
उन्होंने यत्नपूर्वक सिर्फ महल देखे,
जग ने सिर्फ उनके स्वार्थ, प्रतिशोध,
कामना व संतानों हेतु पहल देखे।
ये वो कलियुग की तथा-कथित सीतायें हैं,
जो मानती हैं कि उनकी एक इच्छा से सस्ती
पूरे शहर की जलती चिताएं हैं। तथाकथित कलियुगी सीतायें

Author Harsh Ranjan

तथाकथित कलियुगी सीतायें

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तथाकथित कलियुगी सीताओं ने माना है,
हर युग के राम का व्यक्तित्व व अस्तित्व
सिर्फ चूड़ियों की खनक से निभाना है,
उन सबको सदैव किसी सीता के
स्पर्श के आगे/के लिए/के बाद
बेमोल बेजुबान गिरवी हो जाना है।
बहुत सबला व आकर्षक थी वो
समाज की नजरों में पहली बार,
वर्ष, स्पर्श और घर्ष से पहले,
वो स्वामिनी थी सड़क से स्वम्बर तक
योनि मथे व ग्रसे जाने से पहले।
उन्हें कुंठा मिश्रित अचरज है त्याग से,
वो खुद स्वछंदता चाहती हैं आवेगहीन,
दूध के उबाल के बीच ध्यान धरे
पूछती हैं उसका अस्तित्व विराग से।
तथाकथित कलियुगी सीतायें मानती है कि
उनकी काया में सारी सृष्टि है
और रोग देने वाले सकल स्त्री-भोग,
योग व लोक-कल्याण की वृष्टि है।
वो खुद को स्वर्ग के समकक्ष रखती हैं,
पर क्या वो सरल समावेशी हृदय भी, 
या सिर्फ आकर्षक स्थूल वक्ष रखती हैं।
उन्होंने यत्नपूर्वक सिर्फ महल देखे,
जग ने सिर्फ उनके स्वार्थ, प्रतिशोध,
कामना व संतानों हेतु पहल देखे।
ये वो कलियुग की तथा-कथित सीतायें हैं,
जो मानती हैं कि उनकी एक इच्छा से सस्ती
पूरे शहर की जलती चिताएं हैं। तथाकथित कलियुगी सीतायें

Haqeeqat 💯

द्यूत, मद्यपान, परस्त्रीगमन और हिंसा इन चार स्थानों में असत्य, मद, काम और क्रोध का निवास होता है। इन चार स्थानों में निवास करने की मैं तुझे छूट देता हूँ।" इस पर कलियुग बोला - "हे उत्तरानन्दन! ये चार स्थान मेरे निवास के लिये अपर्याप्त हैं। दया करके कोई और भी स्थान मुझे दीजिये।" कलियुग के इस प्रकार माँगने पर राजा परीक्षित ने उसे पाँचवा स्थान 'स्वर्ण' दिया।
! So as per Hindu mythology , "हम कलियुग में नही-कलियुग हम में है"।
#DeepThought
But
#Fact
💯 #कलियुग

Tara Chandra

किश्तों (EMI) की बारिश,
ही कलियुग है भाई,
जन्म ले इच्छाएँ,
'माया' ही दाई।।



👍

©Tara Chandra Kandpal #कलियुग

ADITYA GAURAW

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Pratiksha Surwade

कलियुग

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कलियुग.....

कलियुगाच्या या काळात,
माणूस अडकलाय जाळ्यात...

सर्व नाती तोडायला पाहतोय,
    गाठ फक्त स्वतःशी बांधतोय....

शब्दांचे शस्र बनवलेय,
ज्ञान गुडघ्याशी टांगलेय....

पैशांची पोती भरतोय,
माणुसकी रिकामी करतोय....

विज्ञान बनवितेय नवनवीन अस्त्र,
निरर्थक करतोय अध्यात्मिक शास्त्र....

विकसीत करतोय तंत्र,
कामक्रोधाला केलय मित्र...

प्रयत्न करयोय प्रसिद्धीच्या झोताचे,
घर मोडतोय भावनेचे-मनाचे...

जीवनाचा शोधतोय सार ,
पावलोपावली खातोय मार..
      
          --प्रतिक्षा सुरवाडे कलियुग
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