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Poet Shivam Singh Sisodiya

SrimadBhagwadgeeta 4.9 जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः | त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोSर्जुन || ९ || जन्म – जन्म; 

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जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः |
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोSर्जुन || ९ ||
{SrimadBhagwadgeeta 4.9}

 



भावार्थ


हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है | SrimadBhagwadgeeta 4.9

जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः |
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोSर्जुन || ९ ||



जन्म – जन्म; 

pandeysatyam999

यस्य स्नेहो भयं तस्य स्नेहो दुःखस्य भाजनम्। स्नेहमूलानि दुःखानि तानि त्यक्तवा वसेत्सुखम्॥ जिसे किसी के प्रति प्रेम होता है उसे उसी से भय भी #nojotophoto

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 यस्य स्नेहो भयं तस्य स्नेहो दुःखस्य भाजनम्। स्नेहमूलानि दुःखानि तानि त्यक्तवा वसेत्सुखम्॥ जिसे किसी के प्रति प्रेम होता है उसे उसी से भय भी

Shaarang Deepak

ShrimadBhagwadGeeta Chapter (01) Shlok (09) || श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानार्जन श्रृंखला अध्याय (01) श्लोक (09) Namaskar. This verse/ shlok is #Krishna #Mahabharat #Arjuna #parth #geeta #जानकारी

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Shivam Mishra

मां हिन्दी को हिन्दी दिवस पे समर्पित जय हिन्दी मां मां हिन्दी तेरी क्या बात कहूँ मां को मां जाना सबसे पहले तुझसे अब इस से ज्य़ादा क्या

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मां हिन्दी को हिन्दी दिवस पे समर्पित 

जय हिन्दी मां 

मां हिन्दी तेरी क्या बात कहूँ 
मां को मां जाना सबसे पहले तुझसे अब इस से ज्य़ादा क्या  जज़्बात कहूँ 

जब भी हुआ प्रेंम य़ा करनी हुई कोई पूजा 
मां हिन्दी तुझसा माध्यम रास ना आया मुझको दूजा l

हिन्दी जैसी भावनायें  किसी और भाषा मे व्यक्त नहीं होती 
मां हिन्दी तू तो बचपन से दिल से जुड़ी है सीख जायें हम कितना भी हिन्दी हमारी श्वासों मे बसती है वो त्यक्त नहीं होती 

मां हिन्दी तेरे कम शब्दों मे इतना होता है इतना अर्थ 
क्यूंकी महल कितने भी बना लो विदेशी भाषाओं के भूमि हिन्दी की ना हो तो सब है व्यर्थ l

ऐ मां हिंन्दी तुमको नमन है ऐसे ही हमारे जीवन को अर्थ दो 
अपने बच्चों को ऐसे ही सामर्थ्य दो l

शिवम मिश्र 
हिन्दी पुत्र l मां हिन्दी को हिन्दी दिवस पे समर्पित 

जय हिन्दी मां 

मां हिन्दी तेरी क्या बात कहूँ 
मां को मां जाना सबसे पहले तुझसे अब इस से ज्य़ादा क्या

रजनीश "स्वच्छंद"

मैं ज्ञान-सार हूँ।। मैं शब्द विलक्षण तीक्ष्ण हूँ, अर्जुन भी मैं मैं कृष्ण हूँ। मैं समय की हूँ गति, पुरुषार्थ की मैं हूँ मति। मैं सार हूँ म #Poetry #kavita #tourgurugram #tourdelhi

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मैं ज्ञान-सार हूँ।।

मैं शब्द विलक्षण तीक्ष्ण हूँ,
अर्जुन भी मैं मैं कृष्ण हूँ।

मैं समय की हूँ गति,
पुरुषार्थ की मैं हूँ मति।
मैं सार हूँ मैं ब्रह्म हूँ,
मैं सत्य का स्तम्भ हूँ।
माथे मुकुट मोती जड़ित,
मैं हूँ प्रत्यंचा एक तनित।
मैं हूँ धरा अम्बर भी मैं,
एकाकी हूँ मैं अंतर भी मैं।
संशय रहित, कभी द्वन्द्व हूँ,
श्लोक मन्त्र और छंद हूँ।
रावण कभी हूँ मैं प्रपंचित,
ज्ञान संचित ज्ञान वंचित।
यज्ञ हूँ मैं अश्वमेधी,
मैँ बली पूजा की बेदी।
मैं प्यास और मैं ही क्षुधा,
मैं ही गरल मैं ही सुधा।
मथ के सागर मैं हूँ निकला,
अमृत हूँ मैं विष मैं हूँ पिघला।
भाव उदित मैं काव्य जनित,
शत्रु सखा मैं हूँ अमित।
मैं कालजयी नश्वर भी मैं,
दानव भी मैं ईश्वर भी मैं।
मैं परम् और मैं हूँ खण्डित,
मैं स्वछंद और मैं ही बन्दित।
युधिष्ठिर मुख का सत्य भी,
मैं ही स्वीकार्य और त्यक्त भी।
जिह्वा-ध्वनित वाणी भी मैं,
दान-रहित पाणी भी मैं।
कर्ण भी मैं मैं कुंती हूँ,
कभी सार्थक किंवदन्ति हूँ।
स्तोत्र जटिल तुलसी सरल,
पाषाण वज्र जल सा तरल।
आदि अनन्त मैं रोध हूँ,
स्नेह मैं और क्रोध हूँ।
दुर्बुद्धि भी कभी बोध हूँ,
मानवजनित कभी शोध हूँ।
यम भी मैँ और तम भी मैं,
खुशियों की लड़ी मातम भी मैं।
मैं हक हूँ और हुंकार हूँ,
आर्तनाद और पुकार हूँ।
आजन्मा और मैं अमर्त्य हूँ,
मैं ही परम एक सत्य हूँ।
मैं जीत की हूँ गर्जना,
मैं शंखनाद हूँ अर्चना।
मैं तो ज्वलित अंगार हूँ,
मैं जीव-मृत्यु हार हूँ।
व्याधी भी मैं उपचार हूँ,
मैं ही तो जीवन सार हूँ।

©रजनीश "स्वछंद" मैं ज्ञान-सार हूँ।।

मैं शब्द विलक्षण तीक्ष्ण हूँ,
अर्जुन भी मैं मैं कृष्ण हूँ।

मैं समय की हूँ गति,
पुरुषार्थ की मैं हूँ मति।
मैं सार हूँ म

Divyanshu Pathak

:💕🐒👨Good morning ji☕☕☕☕☕🍫🍫🍫🍨🍨☕🍧🍉🍉🍉☘ : पतंजलि ने योगसूत्र में कहा है-योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:। अर्थात् योग सांसारिक जीवन का मार्ग नहीं है। जहां

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संयुक्त राष्ट्र प्रमुख “बान की मून” ने
योग को सबके लिए जरूरी बताया है।
वह कहते हैं-“योग का ताल्लुक धर्म से नहीं है।
यह निष्पक्ष है।
धर्मो के बीच भेदभाव नहीं करता।
जो योग करेगा, उसे इसका फायदा होगा।
” स्वामी विवेकानन्द तो यहां तक कह गए थे कि
जाति, धर्म, राष्ट्र, भाषा, परम्परा आदि सब
देश-काल के साथ बदल जाते हैं।
इनमें समन्वय के लिए परिपूरकता लानी पड़ेगी।
“शरीर इस्लाम का हो, आत्मा वेदान्त की।” :💕🐒👨Good morning ji☕☕☕☕☕🍫🍫🍫🍨🍨☕🍧🍉🍉🍉☘
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पतंजलि ने योगसूत्र में कहा है-योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:। अर्थात् योग सांसारिक जीवन का मार्ग नहीं है। जहां
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