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hidayat Ali khan

इस्लाम के इन पांच स्तंभों को समझना अतिआवश्यक है। जिसने इसे समझ लिया वही सही मायनों में मुसलमान कहलवाने के लायक है।

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Life in 5 Words  इस्लाम के पांच स्तम्भ 


अब मैं आपको इस्लाम के इन पांच स्तम्भों के बारे में एक एक करके बताना

चाहूंगा जिसे हर मुसलमान मानता तो है पर उस पर सही

तरीके से अमल नही करता। मेरा दावा है अगर हर

मुसलमान इसपर सही तरीके से अमल करना शूरु

कर दे तो इस्लाम अपनी बुलंदीयों फिर से छूने लगेगा

और दुनिया का कोई भी शख्स उस उंगली

नही उठा पाएगा।...


इन पांच स्तंभों में सबसे उपर है कलमाये शहादायह। लाईलाहा इलल्लाह

मुहम्मदूर रसूल अल्लाह। अल्लाह एक है और मुहम्मद ही

अल्लाह के रसूल हैं। ये पहला स्तम्भ बड़ा महत्वपूर्ण है। क्योंकि

अगर आप को इस पहले स्तम्भ पर यकीन नही

तो बाकि सारे स्तम्भ आपके लिये बेकार है। सारे इस्लामिक मान्यताएं

इसी यकीन के चारों तरफ घूमती हैं।

और श्रृष्टी के सारे नियम भी इसी

की थ्योरी पर ही चलते हैं। यहां तक

कि दुनिया के सारे धर्मों पर आस्था भी इसी

थ्योरी पर ही टिकी हूई है। दुनिया के

सारे कानून भी इसी थ्योरी पर बनाये

गये हैं। वो है एक केन्द्र बिन्दु जिसको मद्देनजर रख कर ही

सारी क्रियायें की जाती है। वो बिन्दु

नही होगा तो हम भटकते रह जाएंगे । चारों तरफ अव्यवस्था

फैल जाएगी। जो कि आज फैली हूई है क्योंकि हम

उस केन्द्र बिन्दु को भुला चुके है और खुद केन्द्र बिंदु बना कर अपने चारों

तरफ अपने क्रियाओं को क्रियान्वित करते चले जा रहे हैं। बाकि

जारी रहेगा........................


दुसरा स्तम्भ है सलात यानी नमाज। अगर पहला स्तंभ

कमजोर हो तो दुसरा बेमानी बन जाता है। दुसरे स्तम्भ का

सारा दारोमदार पहले स्तम्भ के यकीन पर टिका है। जिसमें

हर मुसलमान को दिन में पांच बार अल्लाह के सामने मुहम्मद

के सदके से अपनी सारी दिनचर्या का हिसाब देना पड़ता

है। और अगर दिनचर्या में कोई गलती हो गयी हो तो यही

वो वक्त है जब अल्लाह के सामने अपनी गलती स्वीकार

करके माफी मांगी जाती है और दोबारा उसे नहीं दोहराने

का वादा किया जाता है। जिसे गलतियों से तौबा करना

भी कहते हैं। कहा जाता है कि नमाज के वक्त अल्लाह और

उसके नन्दों के बीच सीधी बातचीत होती है तीसरा और

कोई भी सरीक नही होता। अब जरा सोच कर देखिये

नमाज कि कितनी अहमियत है इस्लाम में। सिर्फ नमाज

को ही मुकम्मल तरीके से अदा कर लिया जाए तो दुनियां

से सारी बुराइयों का खात्मा हो जाए। पर आजकल ऐसा

होता नहीं है। नमाज बस मुसलमान कहलवाने की एक रस्म

भर बन कर रह गयी है। इसी लिये आज इस्लाम और मुसलमानों

को दुर्गति का सामना करना पड़ रहा है। आगे भी जारी

रहेगा......................


तीसरा स्तंभ है जकात यानी दान। दान की राशि भी मुकर्रर की गयी है। अपनी कुल बचत का 2.5% यानी अगर आप साल भर में एक लाख रूपये बचाते हैं तो उसमें से 2500 रूपये गरीबों को दान कर दीजिए । उसमें भी एक सहूलियत दी गयी है कि साल में इतना कमा लेने पर आप दान के हकदार हैं वरन् नहीं। मुझे अभी राशि की जानकारी नहीं जानकारी निकाल कर आपको दे दूंगा। यानी गरीबों की गरीबी दुर करके उन्हें अपने बराबर ले आने का जिम्मा भी दिया गया है। ताकि किसी को आपके माल से रस्क ना हो और कोई बैर भाव ना पैदा हो। अफसोस की आजकल इसका भी सही तरीके से ईस्तेमाल नही होता। जिसकी वजह आपस में बैर भाव पैदा हो गये हैं।


चौथा स्तंभ है रमजान । रमजान का महीना अल्लाह के हुक्म के अनुसार अपनी बुराइयों से दूर रहने का अभ्यास मात्र है। रमजान के महीने में पूरे ३० दिन इंसान का रोम रोम पाबंद हो जाता है। शरीर के किसी भी अंग को गलत काम करने की इजाजत नहीं होती। शहरी से ले कर इफ्तार तक भूखा प्यासा रहने को कहा गया है। यानी अपनी भूख और प्यास पर काबू पाने को कहा गया है। रोजा जुबान का होता है ताकि हम किसी को कुछ ऐसा ना कहदें कि उसको दुःख पहुंचे । कान का रोजा है ताकि हम किसी के द्वारा बरगलाए ना जाएं। कहने का मतलब है कि एक तरह से खुद पर संयम पाने का अभ्यास है। तीस दिन छोटी अवधी नहीं होती ये लंबी अवधी होती है किसी काम के अभ्यास के लिए। अगर किसी को इन ३० दिनों में खुद पर पुरी तरह से संयम बरतना नही आया तो जीतना आया है उसे बाकि दिनों में भी जारी रखे। कहने का मतलब है कि संयम बरतने के जिस काम में उसे कामयाबी मिली हो उसे वो बाकि दिनों बरकरार रखे। और जिन पर संयम रखने में वो असफल हूआ हो उसे अगले साल पूरा करने की कोशिश करे। इस तरह इंसानों को अपनी बुराइयों पर जीत हासिल करने मौका मिलता है। नमाज भी इसमें सहायक होने का अहम जोरदार निभाती है। और जो अपनी बुराइयों से लड़ने के पक्के इरादे के साथ रोजा रखता है वो ईद उल फितर को मनाने का सच्चा हकदार होता है।


अब आखिर में बचता है पांचवां स्तंभ यानी वह। पर पांचवें स्तंभ की जानकारी देने से पहले इस्लाम के दो महत्वपूर्ण उसूलों का जिक्र करना बहूत जरूरी है क्योंकि पांचवे स्तंभ का इन दोंनों उसूलों से सीधा नाता है। ये उसूल हैं हकूक उल अल्लाह और हकूक उल इबाद।

 हकूक उल इबाद यानी हमारे वो काम जो दूसरे लोगों से जुड़े हैं। मिसाल के तौर पर अगर हमने किसी बंदे का दिल दुखाया, उसका हक़ अदा नहीं किया, उसके साथ बेईमानी की, मां बाप की देखभाल नहीं की , पत्नी को सताया, बच्चो का ठीक से पालनपोषण नहीं किया, उनके खाने पीने का इंतज़ाम नहीं किया, पढ़ाया लिखाया नहीं या आवारा और अपराधी बनने दिया, पड़ौसी का हक़ अदा नहीं किया, देश से वफादारी नहीं की,भाई का ख़याल नहीं रखा, बिजली या टैक्स चोरी किया, कानून तोड़ा, झूठ बोला, धोखा दिया, हराम रोज़ी कमाई, बहनों का हिस्सा रख लिया, चुगली की, गरीबों को दी जाने वाली ज़कात नहीं दी, सामर्थवान और सक्षम होते हुए ज़रूरतमंदों की मदद नहीं की, बलवान और योग्य होते हुए बुराई को नहीं रोका कुछ ऐसी बाते हैं जिनको हकूक उल इबाद यानी दुनिया के प्रति एक मुसलमान की ज़िम्मेदारी मानी गयी हैं।

इस्लाम के पांचों स्तंभ हकूक उल अल्लाह है

खास बात यह है कि अगर आपने इनमें से कोई भी काम अधूरा छोड़ दिया या गल्ती की तो अल्लाह मरने के बाद आपको तब तक माफ नहीं करेगा

जब आपके इस तरह के काम से पीड़ित और प्रभावित बंदा आपको माफ नहीं करता। जहां तक हकूक अल्लाह का सवाल है तो उसमें यह गुंजायश मानी गयी है कि क्योेंकि अल्लाह रहम करने वाला और माफ करने वाला है इसलिये वो जानबूझकर किये गये गुनाह तो नहीं लेकिन अनजाने या भूलचूक से किये गये ऐसे गुनाह जिनसे नमाज़, रोज़ा, हज, ज़कात और इबादत में कोई कोताही रह गयी हो तो उनको माफ कर सकता है। इससे सोचने की बात यह है कि हकूक अल्लाह से भी बड़ा काम हकूक उल इबाद को पूरा करना हो जाता है, लेकिन देखने में यह आता है कि लोग हकूक अल्लाह को ही सारा धर्म मान बैठे हैं। विडंबना यह है कि समाज भी उसी दिखावे और ढोंग को धर्म मानकर ऐसे लोगों को धार्मिक होने का तमगा दे देता है।


पांचवां स्तंभ हज है । कहा जाता है कि जब कोई मुसलमान हकूक उल इबाद का फर्ज पूरी तरह अदा कर देता है उसे सबसे आखिर में हज पर जाना होता है जिसका सारा खर्च उसकी अपनी हलाल की कमाई का होना चाहिए या उसकी औलाद की हलाल और हक की कमाई हो ।अगर उसने हकूक उल इबाद का सारा फर्ज अदा कर दिया हो और उसके हज करने के पैसे ना हों कोई दुसरा मुसलमान अभी हज के लिये तैयार ना हो या इतना मजबूर हो कि वो हज करने में असमर्थ हो वो अपनी मर्जी से पहले आदमी को हज करा सकता है जिसका उसे भी बराबर का सबाब मिलता है। हज पर गया मुसलमान अल्लाह की बारगाह में सजदे में जा कर अल्लाह के सामने ये इकरार करता है कि हे अल्लाह आपने मुझ पर हकूक उल इबाद की जो जिम्मेदारी सौंपी थी उसका मैने पूरे ईमान से निर्वाहन किया। अगर मुझसे कहीं अनजाने में कोई भूल चूक हो गयी हो तो मुझे माफ कर मेरी हज कबूल करें। मैं वादा करता हूं कि आज के बाद मेरी हर सांस तेरे हक को पूरा करने के लिये होगी । आज के बाद मैं तेरी राह से भटके हुए लोगों को राह पर लाने की पूरी कोशिश करुंगा। दुनियादारी से दूर रहूंगा। मरते दम तक तेरे ही दीन को फैलाने का काम करुंगा। इस तरह से वो अल्लाह के हक पूरा करने में लग जाता है। और हम ऐसे लोगों को पीर मुर्शीद के नाम से जाते हैं।

लेकिन क्या आजकल ऐसा होता है। जरा सोचियेगा जरूर। खुदा आप सबको सलामत रखे। जज्जाख अल्लाह । इस्लाम के इन पांच स्तंभों को समझना अतिआवश्यक है। जिसने इसे समझ लिया वही सही मायनों में मुसलमान कहलवाने के लायक है।

HintsOfHeart.

#त्रिलोचन_शास्त्री #यूँ_ही_कुछ_मुस्काकर_तुमने 1.वह आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के तीन स्तंभों में से एक थे। इस त्रयी के अन्य

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Divyanshu Pathak

सम्मान करें! : पिछले कुछ वर्षो में भारत में भी नर-नारी के आपसी व्यवहार, जीवन शैली और दृष्टि में अनेक परिवर्तन आए हैं। कुछ परिवर्तन शिक्षा के

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विरोधाभास तो अब दूर नहीं किया जा सकता।
अब हमारे नए कानून सांस्कृतिक धरातल पर बनते ही नहीं।
उन सारी गतिविधियों को प्रोत्साहित करते हैं
जिनका हमारे निषेध हैं या सुख छीनने वाले हैं।
स्त्रयों को पीहर की सम्पत्ति में हिस्सा मिलना चाहिए।
तब ससुराल में वह मालकिन कैसे बन पाएगी।
न पीहर में उसका कोई स्वागत करेगा,
न ही ननदें उसे छोड़ेंगी।
होना तो यह चाहिए कि
कोई भी नया कानूनी प्रारूप यदि हमारी संस्कृति को प्रभावित करता है
तो बिना सामाजिक बहस के निर्णय नहीं होना चाहिए। सम्मान करें!
:
पिछले कुछ वर्षो में भारत में भी नर-नारी के आपसी व्यवहार, जीवन शैली और दृष्टि में अनेक परिवर्तन आए हैं। कुछ परिवर्तन शिक्षा के

Purohit Nishant

कलम को समर्पित फनकारों की याद में... पद्मभूषण सुमित्रानंदन पंत जी हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक इस युग को #Knowledge #कवि #जन्मदिन_विशेष #सुमित्रानंदन_पंत #हिंदवी #हिन्दी_युग

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!! जन्मदिन मुबारक !!

©Purohit Nishant कलम को समर्पित फनकारों की याद में...

पद्मभूषण सुमित्रानंदन पंत जी 
हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक
इस युग को

Shadab

चलो तुम को आज सुनाऊँ हाल अपने देश की लोग जिसके झेल रहे मार यहाँ ग़रीबी की। मुट्ठी भर हैं लोग यहाँ अरबपति व करोड़पति ख़ून जो चूस रहे बाक़ी बच #नारी #भारत #भाईचारा #युवा #लोकतंत्र #मीडिया #संविधान #नया_भारत #नारीवाद

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भारत को बचा लो यारों!

(कविता अनुशीर्षक में पढ़ें) चलो तुम को आज सुनाऊँ
हाल अपने देश की
लोग जिसके झेल रहे
मार यहाँ ग़रीबी की।
मुट्ठी भर हैं लोग यहाँ अरबपति व करोड़पति
ख़ून जो चूस रहे बाक़ी बच

विरला'P@वन'

जाग जा भारतवासी..... जाग जा भारतवासी देख तेरा देश सो रहा, विकास-विकास करके देख कैसा ये मंद हो रहा, गर्त में जाकर कैसा अंधकार में खो रहा, #gandhijayanti #shastriji

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Bharat ke laal जाग जा भारतवासी.....
जाग जा भारतवासी देख तेरा देश सो रहा, 
विकास-विकास करके देख कैसा ये मंद हो रहा, 
गर्त में जाकर कैसा अंधकार में खो रहा, 
जाग जा भारतवासी देख तेरा देश सो रहा। 

सीमा पर क्यों है आजकल इतना तनाव बढ़ रहा, 
लगता है दोनों ओर चुनाव का डंका बज रहा, 
राजनेताओं के खोखले वादों पर कैसे तुझे विश्वास हो रहा, 
या फिर चंद रुपयों, पउओं पर तू अपना ईमान है बेच रहा, 
जाग जा भारतवासी देख तेरा देश सो रहा।
 
क्यूँ अपनी अपरिमित कीमत को तू इतना गिरा रहा, 
चुनाव के समय क्यूँ तू अपना विवेक खो रहा, 
हर बार मंदिर-मस्जिद, धर्म-जाति का ही मुद्दा क्यूँ छा रहा, 
रोजगार,गरीबी,भुखमरी,शिक्षा,स्वास्थ्य,पर्यावरण,अर्थव्यवस्था पर क्यूँ नहीं ध्यान आकर्षित कर रहा, 
जाग जा भारतवासी देख तेरा देश सो रहा। 

देख तेरा प्रतिनिधि कैसे तुझ पर थूंक रहा, 
रोड के किनारे नंगा-भूखा तू कैसे सो रहा, 
जय जवान-जय किसान वाला भारत तुझसे पूँछ रहा, 
जवान शहीद और किसान क्यूँ आत्महत्या कर रहा, 
जाग जा भारतवासी देख तेरा देश सो रहा। 

विश्व गुरु का दर्जा क्यूँ तेरे देश से छिन गया, 
क्या अपने ग्रंथों,आदर्शों, संस्कृति से है भारतवासी विलग हो गया,
सोने की चिड़िया कहलाने वाला भारत लगता कहीं खो गया, 
क्या कोई काला अंग्रेज भारत का धन चुराकर भाग गया, 
जाग जा भारतवासी देख तेरा देश सो रहा। 

राजनीति, पत्रकारिता, मीडिया अपनी शुचिता, स्वतंत्रता और प्रासंगिकता खो गया, 
क्या लोकतंत्र के इन स्तंभों को कोई लकवा है मार गया,
जन-कल्याण पर स्व-कल्याण क्यूँ हावी हो गया, 
क्या कोई अपराधी, भ्रष्टाचारी संसद में चुनकर आ गया, 
जाग जा भारतवासी देख तेरा देश सो रहा। 

अहिंसा- हिंसा में, असत्य- सत्य में, भ्रष्टाचार- शिष्टाचार में है बदल रहा, 
गाँधी, शास्त्री को फिर क्यूँ तू आज याद कर रहा, 
ऐ! भारतवासी तू मूक दर्शक बना क्या देख रहा, 
सवाल- जवाब, तू कोई इंकलाब क्यूँ नहीं कर रहा, 
क्या तू भगत, सुखदेव, राजगुरु, आज़ाद का इंतज़ार कर रहा, 
जाग जा भारतवासी देख तेरा देश सो रहा। 
जाग जा भारतवासी देख तेरा देश अंधकार में खो रहा। 🙏



#gandhijayanti #shastriji जाग जा भारतवासी.....
जाग जा भारतवासी देख तेरा देश सो रहा, 
विकास-विकास करके देख कैसा ये मंद हो रहा, 
गर्त में जाकर कैसा अंधकार में खो रहा,

Divyanshu Pathak

कोई सोचकर देखे कि “ट्विंकल” की मां क्या सोच रही होगी- कि लड़की उसके पेट से पैदा ही क्यों हुई। उसे कौनसे कर्म की सजा मिली है। आज देश में रोजान

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कायर और कपूतों की ना अब हमको दरकार रही
उठो हमारे वीर सपूतो अब दुष्टों का संहार करो
जो घर में छुपकर बैठे अपनी इज्जत लुटती देख रहे
डूब मरो चुल्लू भर पानी में या अब कोई अवतार धरो 
माँ दुर्गा और भवानी रोती भारत माँ की छाती टूटी 
कब तक तुम निष्प्राण रहोगे अब तरकस में बाण भरो
ट्विंकल और दामिनी देखी लक्ष्मी और कामिनी देखी 
आंखों में खून नहीं लाये तुम कुए में जाकर कूद मरो
धरने देकर शमां जलाकर अब वक्त न तुम बर्वाद करो 
कहदो सरकारों से अपनी या संविधान को ताक धरो
उठो धरा के वीर पहरुओं अब कर में तलवार भरो  कोई सोचकर देखे कि “ट्विंकल” की मां क्या सोच रही होगी- कि लड़की उसके पेट से पैदा ही क्यों हुई। उसे कौनसे कर्म की सजा मिली है। आज देश में रोजान

Tushar Jangid

कुछ दिनों पहले एक शख्स से मुलाकात हो गई जो बातों बातों में यह कह गए कि जयपुर में ऐसा है ही क्या है फिर क्या था। एक जयपुर प्रेमी के बदन में च #Jaipur #yqdidi #Rio #longform #jaipurdiaries #aestheticthoughts #yqaestheticthoughts

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"पधारो म्हारो प्यारो निरालो जयपुर" कुछ दिनों पहले एक शख्स से मुलाकात हो गई जो बातों बातों में यह कह गए कि जयपुर में ऐसा है ही क्या है
फिर क्या था। एक जयपुर प्रेमी के बदन में च
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