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अपनी कलम से
विषयहीन/Subjectless अपनी कल्पनाओं को जब -जब समेटू, शांत सा चित्त लिए, तुम्हें हीं सोचूं, तुम्हें हीं देखूं, तू कभी सादेपन से भरी तो कभी विचित्र नज़र आती है, कभी -कभी खो जाऊं इस तलब, बैठ जाऊं जब लिखने कुछ भी, एक सादे लिबास में भी रंगीन नज़र आती है। लिखना चाहूं, पर लिख न पाऊं, अपने मन में हीं तुम्हारी चित्र बनाऊं, कोई शब्द न मिले, तारीफ़ में तेरी, कभी -कभी शब्दहीन नज़र आती है। ढूंढू अक्सर लिखूं मैं किसपर? मेरी कल्पना है तू, अक्सर तू मुझे विषयहीन नज़र आती है। @dashing_raaz ©dashing raaz विषयहीन/Subjectless अपनी कल्पनाओं को जब -जब समेटू, शांत सा चित्त लिए, तुम्हें हीं सोचूं, तुम्हें हीं देखूं, तू कभी सादेपन से भरी तो कभी विच
यशवंत कुमार
कौन सुनेगा अकड़ में? बिखरा है हिंदुस्तान वहाँ, बँटे हैं भगवान जहाँ, एकता,सद्भाव की बातें, आती अब किसे रास यहाँ? लोकतंत्र हमारे देश का ; आज है जाति, धर्म का दास बना। सादे लिबास की आस्तीनों में है, नफ़रत का खंजर खून सना। सोने, चाँदी हो गए महँगे, और सस्ती हो गई जान यहाँ, मरघट जाने को आतुर दिखता है, सड़कों पर हिंदुस्तान यहाँ। लोकतंत्र को राजतंत्र, बनाने का चल रहा है खेल, फतवे पर फतवे होते हैं, नहीं होती है किसी को जेल,! इंसानों की मति मारी गई है; मंदिर, मस्जिद के चक्कर में , कोरोना ने बता दी है सच्चाई, पर कब कौन सुनेगा अकड़ में? कितने आए कितने चले गए, और आगे भी आना-जाना है, जब दिखता नहीं खुली आँखों से, व्यर्थ अलख जगाना है। अभी भी समय है गर चेते हम, भविष्य भी सुधर भी जाएगा, और जो ज्यादा अकल दिखाई, सब चला अधर में जाएगा। सियासतदान करें सियासत, उनकी नब्ज़ टटोलें हम, उनकी कथनी और करनी में, मिलकर अंतर तोलें हम। एक कुर्सी और थोड़ी-सी शान ,और उनका क्या जाएगा? समझ सके न हम जो खेल, कहीं इंसान नजर ना आएगा। छोटी- सी हमारी जिंदगी है, लड़-मरकर हासिल होगा क्या? अपनी खुद की खैर नहीं है, तू पुश्तों का करने चला भला,!! #dilkibaat #dilkikalamse #hindustan #communalharmony #dirtypolitics #leadersofindia #democracy कौन सुनेगा अकड़ में? बिखरा है हिंदुस्तान
Mukul Sharma
ताकती रहीं निगाहें हसरतों की राहें, खुशियों के सादे पल बगल से निकलते रहे। मुकुल #सादे पल
Deep Patel
नही बदल सकते हम खुद को औरो के हिसाब से, एक लिबास हमे भी दिया हे खुदा ने अपने हिसाब से. @लिबास
ViJay Pawar
मैं समुंदर का लिबास हूं अभी इस नदी को पता नहीं। यह सब मुझमें आके मिल गई में किसी में जाके मिला नहीं।। लिबास
Anuj thakur "बेख़बर"
झूठी मोहब्बत के लिए खूब की जाती है अल्फाजों की हेराफेरी! और सच्ची मोहब्बत के लिए मैंने लिबास तक नहीं बदला!! ©Anuj thakur "बेख़बर" लिबास