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Pradyumn awsthi

#चुटकुला पप्पू का #कॉमेडी

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पप्पू सालों बाद विदेश में अपनी पढ़ाई पूरी करके अपने गांव
 वापस आया । पप्पू गांव आकर पहली बार चुनाव में खड़ा
 हुआ पप्पू लोगों से वोट मांगने के लिए पड़ोसी के गांव में गया
वहां गांव में पप्पू को एक बूढ़ी दादी दिखाई दीं
पप्पू दादी से बोला : अम्मा में चुनाव लड़ रहा हूं आप मुझको
 ही अपना वोट देना अगर आपके गांव में कोई समस्या हो तो 
मुझे बताइए चुनाव जीतने के बाद में उस समस्या को दूर कर दूंगा..
दादी बोलीं : बेटा हमारे गांव है वैसे तो किसी बात की कमी नहीं 
है लेकिन अभी तक हमारे गांव में एक भी शमशान घाट नहीं
बना है अगर तुम एक शमशान घाट बनवा दोगे तो अच्छा रहेगा
पप्पू दादी से बोला : अरे अम्मा बस इतनी छोटी सी बात है..
चिंता मत कीजिए मैं जीतने के बाद आपके गांव के हर घर में
एक एक श्मशान घाट बनवा दूंगा 
दादी चिल्लाकर गुस्से में अपने पोते से बोली : बेटा जरा जल्दी
मेरी लाठी लाना...
पप्पू : गायब.....

©"pradyuman awasthi" #चुटकुला पप्पू का

Uttam Bajpai

पप्पू का पता #कॉमेडी

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Veer

यार का जन्मदिन #कविता

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Akarsh Mishra

भाई का जन्मदिन #कविता

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नखरे सब उठाता है.... हर बात वो मेरी मानता है,
इसलिए नहीं... कि छोटा है,
बल्कि इसलिए... क्योंकि मुझे जहाँ से ज्यादा मानता है।

उम्र में छोटा है.... लेकिन बातों में हमेशा पुरखों का अंदाज होता है,
वो हर एक पल को बारीकी से जीना जानता है।

नहीं रखता मैं उम्मीद कोई.... दुनिया वालों से,
ये जो मेरा भाई है ना..... मेरी हर खुशी का राज़ जानता है।
यूं तो दोस्त यार ...मेरे हैं हज़ार,
लेकिन मुश्किल जब आती है द्वार पर मेरे....अकेला ही सब पर भारी पड़ता है।
छोटा है........पर काम हमेशा पुरखों वाले करता है।
मेरा भाई है.... मुझे जान से ज्यादा प्यार करता है।
                                         
जन्मदिन मुबारक अर्पित 🪔❣️
तुम्हारा भाई

©Akarsh Mishra भाई का जन्मदिन

राहुल जाटू

कर्ण का जन्मदिन

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शिव झा

26 जुलाई/जन्म-दिवस
*कन्नड़ साहित्य के साधक    : डा. भैरप्पा*

अपने उपन्यासों की विशिष्ट शैली एवं कथानक के कारण बहुचर्चित कन्नड़ साहित्यकार डा. एस.एल. भैरप्पा का जन्म 26 जुलाई, 1931 को कर्नाटक के हासन जिले के सन्तेशिवर ग्राम के एक अत्यन्त निर्धन परिवार में हुआ। आठ वर्ष की अवस्था में एक घण्टे के अन्तराल में ही इनकी बहिन एवं बड़े भाई की प्लेग से मृत्यु हो गयी। कुछ वर्ष बाद ममतामयी माँ तथा छोटा भाई भी चल बसा। इस प्रकार भैरप्पा का कई बार मृत्यु से साक्षात्कार हुआ। इनके पिता कुछ नहीं करते थे। अतः इन्हें प्रायः भूखा सोना पड़ता था।

अब इनकी देखभाल का जिम्मा इनके मामा पर था; पर वे अत्यन्त क्रूर एवं स्वार्थी थे। अध्ययन में रुचि के कारण भैरप्पा ने कभी अगरबत्ती बेचकर, कभी सिनेमा में द्वारपाल का काम कर, तो कभी दुकानों में हिसाब लिखकर पढ़ाई की। एक बार उन्होंने मुम्बई जाने का निर्णय लिया; पर पैसे न होने के कारण वे पैदल ही पटरी के किनारे-किनारे चल दिये। रास्ते में भीख माँग कर पेट भरा। कभी नाटक कम्पनी में तो कभी द्वारपाल, बग्घी चालक, रसोइया आदि बनकर मुम्बई में टिकने का प्रयास किया; पर भाग्य ने साथ नहीं दिया। अतः एक साधु के साथ गाँव लौट आये और फिर से पढ़ाई चालू कर दी।

चन्नरायपट्टण में प्राथमिक शिक्षा के बाद भैरप्पा ने मैसूर से एम.ए. किया। जीवन के थपेड़ों ने इन्हें दर्शन शास्त्र की ओर आकृष्ट किया। मित्रों ने इन्हें कहा कि इससे रोटी नहीं मिलेगी; पर इन्होंने बी.ए एवं एम.ए दर्शन शास्त्र में स्वर्ण पदक लेकर किया। इसके बाद ‘सत्य और सौन्दर्य’ विषय पर बड़ोदरा के सयाजीराव विश्वविद्यालय से इन्हें पी-एच.डी की उपाधि मिली।

1958 में इनकी अध्यापन यात्रा कर्नाटक, गुजरात, दिल्ली होती हुई मैसूर में पूरी हुई। 1991 में डा. भैरप्पा अवकाश लेकर पूर्णतः लेखन के प्रति समर्पित हो गये। इनका पहला उपन्यास ‘धर्मश्री’ 1961 में प्रकाशित हुआ था। इसके बाद यह क्रम चल पड़ा। सार्थ, पर्व, वंशवृक्ष, तन्तु आदि के बाद2007 में इनका 21वाँ उपन्यास ‘आवरण’ छपा। ‘उल्लंघन’ और ‘गृहभंग’ का अंग्रेजी एवं भारत की14 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

डा. भैरप्पा के उपन्यासों के कथानक से पाठक का मन अपने धर्म एवं संस्कृति की ओर आकृष्ट होता है। इनके अनेक उपन्यासों पर नाटक और फिल्में भी बनी हैं। इनकी सेवाओं को देखते हुए कर्नाटक साहित्य अकादमी, केन्द्रीय साहित्य अकादमी तथा भारतीय भाषा परिषद, कुमार सभा पुस्तकालय जैसी संस्थाओं ने इन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया।

डा. भैरप्पा अखिल भारतीय कन्नड़ साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष रहे तथा उन्होंने अमरीका में आयोजित कन्नड़ साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता भी की। कला एवं शास्त्रीय संगीत में रुचि के कारण उन्होंने अनेक अन्तरराष्ट्रीय संग्रहालयों का भ्रमण कर उन्हें महत्वपूर्ण सुझाव दिये। डा. भैरप्पा ने यूरोप,अमरीका, कनाडा, चीन, जापान, मध्य पूर्व तथा दक्षिण एशियाई देशों की यात्रा की है। प्रकृति प्रेमी होने के कारण उन्होंने हिमालय के साथ-साथ अण्टार्कटिका, आल्प्स (स्विटरजरलैण्ड), राकीज (अमरीका) तथा फूजीयामा (जापान) जैसी दुर्गम पर्वतमालाओं का व्यापक भ्रमण किया।

ईश्वर से प्रार्थना है कि वह डा. भैरप्पा को स्वस्थ रखे, जिससे वे साहित्य के माध्यम से देश और धर्म की सेवा करते रहें। 

(संदर्भ : कुमारसभा पुस्तकालय पत्रक) #जीवनी #जन्मदिन #जन्मदिवस #इतिहास #भारत 

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