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Mohmad Tanveer
संग संग चलना अधूरा रह गया इंतज़ार की आरज़ू अब खो गयी है, खामोशियो की आदत हो गयी है, न सीकवा रहा न शिकायत किसी से, अगर है तो एक मोहब्बत, जो इन तन्हाइयों से हो गई है..! संग संग
Navdeep Rawat पार्थ
जो लिखी थी गज़ल आधी अब पूरी हो गयी है साथ रहना भी जैसे अब दूरी हो गयी है वो सपनों का मकान अरमानों का महल हकीकत में ढह गया संग-संग चलना अधूरा रह गया ©Navdeep Rawat पार्थ #संग #संग
Nirankar Trivedi
इस जिंदगी के कारोबार में, कुछ दूर निकल आया हूँ | मुझे आदत नहीं है भूलने की, तेरी यादों को भी संग लाया हू | तेरी यादों को भी संग लाया हू #
Raja Ajay JI
अगर तू चाहती है कि मैं तेरा पीछा ना करूं..... तो प्लीज तू मेरे आगे आगे चल..... R☆AJAY तेरे संग संग
DR. LAVKESH GANDHI
हे प्रभु ! ईश्वर मेरी भी सुन ले... साथ चलें हैं अब तक साथ ही चलाते रहना प्रभु हमारी भी जोड़ी सदा ऐसी बनाये रखना #संग # #संग संग चलते रहेंगे # #yqhamsafar#yqsang#
dil ke alfaaz
संग संग चलना अधूरा रह गया संग संग चलना अधूरा रह गया, जीवन का वह सफर पूरा ही रह गया, कारवां यू ही गुजरता रहा, अकेला था अकेला ही रह गया, क्या बताऊं मैं तुमसे बिछड़ कर, तन्हा था तन्हा ही रह गया, सारे रिश्ते टूटे मेरे प्यार के आकाश, आंखों में बस अंधेरा ही रह गया, चाहत थी जीवन साथी बनाने की तुम को वह सपना अपना था सपना ही रह गया। संग संग चल ना
TAHIR CHAUHAN
संग संग चलना अधूरा रह गया मेरा ख्वाब था। तेरे संग जीने का। जो रेत की तरह । समय की धारा में बह गया। दो पल मिल कर दूर हो गए हम। तेरे संग संग चलना अधूरा रह गया। ताहिर।।। #तेरे संग संग चलना
Ramanuj Tiwari
पुरानी बहुत बात है कहानी की दिल से शुरुआत है।। देखी थी मैंने एक तस्वीर चांद सी दिखती थी तारों की जागीर।। गज़ गामिन सी चाल थी ओठ गुलाबी सी लाल थी।। केशवों के भी अपने अंदाज़ थे दरिया की लहरों से आगाज़ थे।। पतली कमर बड़ी लचकदार थी गोया सावन झूले की पेंग हर बार थी।। वज़न जवानी का था बढ़ रहा सूंदर काया का रंग था चढ़ रहा।। कौमार्यता की खुमारी थी छायी मानो घटाओं ने सूरज को है छुपायी।। तन - बदन था महक रहा जिसे पाने को दिल था तरस रहा।। संदेह एक ही दिल में समायी थी चाँद धरा पे कैसे उतर आयी थी।। सफर जिंदगानी का यूं ही कटता नहीं हमसफर हो कोई, असर पड़ता नहीं।। नज़रे टिक गयी थी सूरत में जो बदल रही थी प्यारी मूरत में।। प्यार पटरी पर थी आ गयी सूरत दिल में थी समा गयी।। दिन में रूप का नज़ारा था रात में ख्वाबों का सहारा था।। मोहब्बत -ए-जिंदगी थी चलने लगी उनकी यादों में थी शाम ढलने लगी।। तभी वहां ज़हर भरी गाज़ एक आ गिरी टूट गये सपने सभी तार-तार हुयी जिंदगी।। महकती थी कलियां जिसके प्यार में सूख गयी धरती, पानी के अभाव में।। चाहा था मैंने जिसको टूट के अब टूट जाऊंगा उनसे रूठ के।। हर वक्त सताये ये गम क्यूं टूट के चाहे थे हम।। इन होंठों पे न मुस्कान आएगी दवा न ही कोई दुवा काम आएगी।। जो मचल उठती थीं नदियां बारिश के फुहार में सूख गयीं है अब उनकी इन्तज़ार में।। दिल को तड़पाती है असफल प्यार की तीखी चुभन चांदनी में कैसे निहारते थे चाँद तारों का गगन।। यादों के संग-संग