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Dr. Partibha 'Mahi'
(विद्रोही जी).!!
निर्बल बकरों से बाघ लड़े,भिड़ गये सिंह मृग-छौनों से घोड़े गिर पड़े गिरे हाथी,पैदल बिछ गये बिछौनों से हाथी से हाथी जूझ पड़े ,भिड़ गये सवार सवारों से घोड़ों पर घोड़े टूट पड़े,तलवार लड़ी तलवारों से हय-रूण्ड गिरे¸गज-मुण्ड गिरे,कट-कट अवनी पर शुण्ड गिरे लड़ते-लड़ते अरि झुण्ड गिरे,भू पर हय विकल बितुण्ड गिरे क्षण महाप्रलय की बिजली सी,तलवार हाथ की तड़प–तड़प हय–गज–रथ–पैदल भगा भगा,लेती थी बैरी वीर हड़प क्षण पेट फट गया घोड़े का,हो गया पतन कर कोड़े का भू पर सातंक सवार गिरा,क्षण पता न था हय–जोड़े का चिंग्घाड़ भगा भय से हाथी,लेकर अंकुश पिलवान गिरा झटका लग गया,फटी झालर,हौदा गिर गया¸निशान गिरा कोई नत–मुख बेजान गिरा,करवट कोई उत्तान गिरा रण–बीच अमित भीषणता से,लड़ते–लड़ते बलवान गिरा मेवाड़–केसरी देख रहा,केवल रण का न तमाशा था वह दौड़–दौड़ करता था रण,वह मान–रक्त का प्यासा था चढ़कर चेतक पर घूम–घूम,करता सेना–रखवाली था ले महा मृत्यु को साथ–साथ,मानो प्रत्यक्ष कपाली था रण–बीच चौकड़ी भर–भरकर,चेतक बन गया निराला था राणा प्रताप के घोड़े से,पड़ गया हवा को पाला था गिरता न कभी चेतक–तन पर,राणा प्रताप का कोड़ा था वह दोड़ रहा अरि–मस्तक पर,या आसमान पर घोड़ा था जो तनिक हवा से बाग हिली,लेकर सवार उड़ जाता था राणा की पुतली फिरी नहीं,तब तक चेतक मुड़ जाता था सेना–नायक राणा के भी,रण देख–देखकर चाह भरे मेवाड़–सिपाही लड़ते थे,दूने–तिगुने उत्साह भरे क्षण मार दिया कर कोड़े से,रण किया उतर कर घोड़े से। राणा रण–कौशल दिखा दिया,चढ़ गया उतर कर घोड़े से क्षण भीषण हलचल मचा–मचा,राणा–कर की तलवार बढ़ी था शोर रक्त पीने को यह,रण–चण्डी जीभ पसार बढ़ी वह हाथी–दल पर टूट पड़ा,मानो उस पर पवि छूट पड़ा कट गई वेग से भू ऐसा,शोणित का नाला फूट पड़ा ऐसा रण राणा करता था,पर उसको था संतोष नहीं क्षण–क्षण आगे बढ़ता था वह,पर कम होता था रोष नहीं कहता था लड़ता मान कहां,मैं कर लूं रक्त–स्नान कहां जिस पर तय विजय हमारी है,वह मुगलों का अभिमान कहां भाला कहता था मान कहां¸,घोड़ा कहता था मान कहां? राणा की लोहित आंखों से,रव निकल रहा था मान कहां ,,,श्याम नारायण पाण्डेय ©ब्राह्मणवंशी जीतू मिश्रा (विद्रोही जी) @हल्दीघाटी का युद्ध 'चेतक'
Arora PR
तुम्हारी ये लम्बी चुप्पी मौन सन्देश दें रही कि तुम्हे मेरी बात मान लेने मे कोई एतराज़ नहीं हैँ फिर भी मै चाहुँगा कि तुम्हारे इस मौन का भावार्थ समझने की चेष्टा अवश्य करके देखु कि कही तुम इस धैर्य धारण के कवच से अपने ह्रदय को आहत तो नहीं कर रहे हो? ©Arora PR मौन का भावार्थ
Parasram Arora
मेरे मौन शब्दों का अर्थ जानना निरर्थक सिद्ध हो सकता है यधपि उनका भावार्थ समझा जा सकता है.... क्योंकि भाव की कोई भाषा नहीं होती वहा तो केवल अनुभूति का अस्तित्व होता है वो तो वैसा ही है जैसे चन्द्रमा की मौन चांदनी की स्निग्धता का सुखद अहसास जैसे वक्ष की ऊँची शाखाओं पर हवाओं क़ि हलचल से उपजि..हुई खड़खड़ाहट और सरसराहट पत्तों की ©Parasram Arora मौन शब्दों का भावार्थ.......
आलोक कुमार
हमलोग को आजादी किन-किन चीजों से मिली थी और क्या हमलोग आज भी उन सभी चीजों से आजाद हुए हैं. अरे सबसे बड़ी और कीमती आजादी तो आपसी समान विचारधारा की आजादी होती है, जो आजतक सम्भव नहीं हो पायी है. इसके पीछे सबसे बड़ा और प्रभावी कारण है "जाति आधारित आरक्षण". इससे जिस दिन देश को मुक्ति मिल जाएगी, तब ही यह समझना उचित होगा कि अब हमलोग को आज़ादी प्राप्त हो गयी है. आजादी का सही और सटीक भावार्थ...