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Ganesh Din Pal
💘💘💘💘💘💘💘💘💘 जब मोहब्बत की आग लगी हो, तब उपदेश का छौंका काम नहीं करता है। 🌹🌹🌹❤️❤️🌹🌹🌹 जी डी पाल 🌹❤️💘🌹 ©Ganesh Din Pal ❤️छौंका
Deep Thapliyal
दुनिया का दस्तूर यही, साथ वहां तक, मतलब जहां तक !! रिश्तों में पैसों का छौंक लगाते रहो, रिश्तेदार आस-पास महकते रहेंगे...😊 शुभ रात्रि 🙏🙏🌹
Mayank Sharma
आज फ़िर वो हौले से दिल को मेरे धड़का गयी है पता नहीं, किस तरह बिना छौंके के तड़का लगा गयी है मुझको कच्चा खा गयी वो ना छौंका है ना तड़का है ❣️😉❤️ #yqbaba #yqdidi #yqdada #yopowrimo #malang #yqhindi #yqwriters
OMG INDIA WORLD
*अब केवल नाक में लाल मिर्च घुसा कर छौंका देना बाकी रह गया है।* *बाकी लौंग, अजवाईन, सौंठ, पुदीना,निम्बू का रस , काला नमक और सरसों का तेल इत्यादी सब कुछ नाक मुँह में डाल चुके हैं ।* *गर्म पानी पीते पीते अब तो अंतड़ियां भी पूछने लगी कि मालिक क्या गले में गीजर ही लगवा लिए हो का ⁉️⁉️*😜 ©OMG INDIA WORLD *अब केवल नाक में लाल मिर्च घुसा कर छौंका देना बाकी रह गया है।* *बाकी लौंग, अजवाईन, सौंठ, पुदीना,निम्बू का रस , काला नमक और सरसों का तेल इत्
Manish Rohit Garai
सूखी रोटी और बिना छौंकी दालों का किस्सा अधूरे मन से अधूरे निवालों का किस्सा भरी गरमी में भला इससे गरम क्या होगा गरम पानी से भरी गरम प्यालों का किस्सा दुख मेरा ये कि सुनाऊँ तो शर्म आती है भरी यौवन में टूटते बालों का किस्सा मेरा "कल" सबसे कहेगा, ये चीख़ चिल्लाकर नर्म नाजुक से हाथ के छालों का किस्सा मेरा अंधियारा अकेले में अब सुनाता है पुरानी ज़िंदगी के सब उजालों का किस्सा लौट आता है बिन जवाब तुम्हारे दर से तुम्हें कैसे बताएं मेरे सवालों का किस्सा सूखी रोटी और बिना छौंकी दालों का किस्सा अधूरे मन से अधूरे निवालों का किस्सा भरी गरमी में भला इससे गरम क्या होगा गरम पानी से
Nilmani
Arsh
दिख रही हो रूबरू पर फासले तो हैं उलझे पड़े हैं धागे मगर हमें जोड़ते तो हैं लिपटकर रो नहीं सकते ये जानता हूँ मैं कायदे जन रहे हैं फासिले मानता हूँ मैं दिख रही हो नूर सी रुसवाइयों के छत तले टपककर गिरती है जफ़ा रात के तकिये तले चल रहे हैं रूह पर चाँदनी के नश्तर रात भर बिक रही है बोटियाँ छौंकी में रखकर बाट पर आह से बुझते नहीं है तन्हाइयों के वो चराग जल रही है मेरी वफ़ा मेरी मोहब्बत मेरे हीं साथ दर्द देकर ले गई मेरी वफ़ा और नेकियाँ बन आवारा फिर रहा हूँ हाय! तेरी सरगोशियां दिख रही हो रूबरू पर फासले तो हैं उलझे पड़े हैं धागे मगर हमें जोड़ते तो हैं लिपटकर रो नहीं सकते ये जानता हूँ मैं कायदे जन रहे हैं फासिले मानता
MohiniGupta
तेरी अँगूठी तेरी सगाई बन जाऊँगा, आँसुओ की हमेशा की विदाई बन जाऊँगा, उस रात के दुग्ध की मलाई बन जाऊंगा, मेरी प्रिये मैं तेरे जीवन की गहराई बन जाऊँगा, उस पहली रसोई की चाशनी की कढ़ाई बन जाऊंगा, तेरे छौंके की हींग हल्दी राई बन जाऊँगा, तेरे नींबू के आचार की खटाई बन जाऊँगा मैं तेरे जीवन की गहराई बन जाऊँगा, गर्मी में कुल्फ़ी रसमलाई बन जाऊँगा, सर्दी में तेरा कम्बल रज़ाई बन जाऊंगा, तेरा AC कूलर चारपाई बना जाऊंगा मैं तेरे जीवन की गहराई बन जाऊँगा, मयके की याद में बाबा तेरी आई बन जाऊंगा, तेरा ही खर्च तेरी ही कमाई बन जाऊँगा, तेरी सलाइयों की बुनाई बन जाऊंगा मैं तेरे जीवन की गहराई बन जाऊँगा, एक कोशिश तुम मेरे जीवन का सार बन जाना (female) के बाद now male version😊 तेरी अँगूठी तेरी सगाई बन जाऊँगा, आँसुओ की हमेशा की विदाई बन जाऊँगा,
WORDS OF VIVEK KUMAR SHUKLA
चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... ढूंढ़ते हैं... दुबक कर बैठे, फ़ूलों के गोद में तितलियों को....., चुनते हैं... जिनका नाम नहीं जानते, क्यारी से, पसंदीदा उन कलियों को। चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... चखते हैं... बिन छौंके -बघारे , माँ के हाथों के बने सुगंधित दलियों को....., खाते हैं... जले हाथों संग बने, तवें पर ही जले, फूले उन जीवनवृत्तियों को। चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... झूलते हैं... झूले से लटके, बरगद के मोटी तनों से झूले सोरियों को....., कूदते हैं... घुटनों के समानांतर, जमीन पर मिले, आमों के टहनियों को। चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... घूमते हैं... खलिहानों से आते, गाँव की ओर, सांपीया घुमावदार पगडंडियों को....., खेलते हैं... वही पुराने खेलों को और, मिलते हैं, बचपन के उन सारे साथियों को। चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... भरते हैं... औंधे मुह रखे, पनघट से, खाली हुए सुराहीयों को....., सुनते हैं... जीवन को जीने, कि कला सिखाते, दादी-नानी की कहानियों को। चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... ✍️विवेक कुमार शुक्ला ✍️ चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... ढूंढ़ते हैं... दुबक कर बैठे, फ़ूलों के गोद में तितलियों को....., चुनते हैं... जिनका ना
Pramod Kumar