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Jalaj Dewda
जून में बरसते हो तो ही इश्क़ से लगते हो , ये अप्रैल में तुम्हे देखना बर्बादी सा लगता है । खिड़की से ताकते रहते हो आदत में बिगड़े से लगते हो , ऐसा छुप कर देखना तुम्हारा पहरेदारी सा लगता है। जाने का वक़्त तय ना हो तो ही अपने से लगते हो , ये थोड़ा थोड़ा तुमसे मिलना हिस्सेदारी सा लगता है। बिजली की तरह चमकते हो तो ही अच्छे लगते हो , ये बुझता हुआ तुम्हे देख बोहोत भारी सा लगता है । बादल ठहरा हुआ है तो ही इश्क़ में लगते हो , ऐसे बारिश में भीगना किसे समझदारी सा लगता है । जो कुछ कहना हो तो कह दो यू चुप चुप सदमे में लगते हो , ऐसे जाना तुम्हारा मौसम बदलने की तैयारी सा लगता है । जून में बरसते हो तो ही इश्क़ से लगते हो , ये अप्रैल में तुम्हे देखना बर्बादी सा लगता है । - Jalaj dewda जून ।
Amit Singhal "Aseemit"
धूप लू से बचते और पसीने से तर बतर हो जाते, ताज़े रसदार फल आइसक्रीम खाकर राहत पाते। घर में इनडोर गेम्स खेलकर मिलता बहुत सुकून, हँसते मुस्कुराते गुज़रता, जब आता हर्षमयी जून। ©Amit Singhal "Aseemit" #जून
YASHVARDHAN
उनसे बिना मिले ये जून गुज़र गया, कोई हमसे आकर पूछो इंतज़ार की हद क्या होती है, बेहद खूबसूरत होता अगर वो कोई मिलने की तारीख़ मुकम्मल कर देते. --YASHVARDHAN #जून 💞
गोरक्ष अशोक उंबरकर
सुख दुःखाच्या सहवासात हे वर्ष ही संपून गेलं... काही जुनी काही नवी माणसं 2023 वर्ष देऊन गेलं... जीवनाच्या प्रवासात आयुष्य सार वाहून गेलं.. दिवसा मागून दिवसांचे हे वर्ष ही संपून गेलं.. दिवसांच्या प्रत्येक वर्षात आपण बरच काही केलं.. कटू गोड आठवणींना जपून आपलंसं केलं.. नववर्षाला पुन्हा नव्याने आता सजवायचं आहे.. सुकलेल्या स्वप्नांना नव्याने पुन्हा फुलवायच आहे .. सुकलेल्या स्वप्नांना नव्याने पुन्हा फुलवायचं आहे .. ©गोरक्ष अशोक उंबरकर जून वर्ष
satish gupta
जिंदगी की सोच में न डूबो बो खुद का खुद डूबना और तैरना सिखा देगी🤔🤔 ☝सतीश गुप्ता☝ ©satish gupta 9 जून 2021
satish gupta
अर्जी अपनी हो लेकिन मर्जी उसकी होगी 🤔🤔 ☝सतीश गुप्ता☝ ©satish gupta 9 जून 2020
Author Harsh Ranjan
एक अकेला आदमी उम्मीद के साथ खड़ा है मैं आदतन उसके पीछे खड़ा हो रहा हूँ। न! ये उसकी, मेरी या हमारी मजबूरी नहीं है। एक अकेली आस को जिंदा और किसी के लिए चुनिंदा बने रहने के लिए कहीं ज्यादा ताक़त चाहिए! हो सकता है गलतफहमी हो टूटे मेरी बला से, किसे फिक्र है! पर मेरी साँसों के बाद! मुझे दाता से बस इतनी राहत चाहिए! जून सेशन 2012
Author Harsh Ranjan
एक अकेला आदमी उम्मीद के साथ खड़ा है मैं आदतन उसके पीछे खड़ा हो रहा हूँ। न! ये उसकी, मेरी या हमारी मजबूरी नहीं है। एक अकेली आस को जिंदा और किसी के लिए चुनिंदा बने रहने के लिए कहीं ज्यादा ताक़त चाहिए! हो सकता है गलतफहमी हो टूटे मेरी बला से, किसे फिक्र है! पर मेरी साँसों के बाद! मुझे दाता से बस इतनी राहत चाहिए! जून सेशन 2012