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Author kunal
खात्मा _ए_याद मुमकिन नहीं है पाक चाहत में खुद को पाषाण बनते देखा पर फिर भी जिंदगी का मतलब समझ नहीं आया हमें मालूम होता है अपने ही जिस्म में पल पल दम तौर रहा हूं "मैं" मत पूछो उनसे रिश्तों की कीमत जो बता खुद को इंसान और दिनदहाड़े विश्वास का बलात्कार किया करते रिश्तों की कीमत तो वो जानते जो खुद को खामोशी की अनंत अग्नि में झोंक किसी की उम्मीद और जिंदगी को रोशन कर जाते । अंदाजा ही नहीं था कि जिस्मानी तरजीह_ए_शख्स से ईश्क फरमा रहे है गर मालूम होता तो कभी रुखसत भी ना होते शहर_ए_मोहब्बत से अब छोड़ दी है निगाह उल्फत_ए_अक्श देखना ,भला जिसे जज्बातों की कद्र ना हो उसे दुआओं में क्या मांगना अजीब मसला है इस बेदर्द दिल की सुलझ ही नहीं रही उससे बड़ी शिद्दत से नफरत कर भी रहा हूं और कतरा कतरा अश्क छलक भी रहा उसकी याद में एक तरफ यादों का सैलाब और दूसरी तरफ मेरा भविष्य ,अब तु ही बता ऐ जिंदगानी ! तेरा कर्ज किस तरह अदा किया जाए । #बेदर्दइश्क़ #काल्पनिक_पोस्ट #कुछ शब्द छापा हूं किसी की शायरी से #yqdidi #kunu
Aarv;
ये इपिस्टिक-लिपस्टिक, एकप-मेकप वाली तो बस यूँही भौकाल बनाती हैं दिल तो...हकीकत मे 😊 चश्मे वाली लड़कियां ही चुराती हैं ! 😁😁😁 #🙃🙃🙃#इन चश्मे वाली लड़कियों के घर पे छापा मारो रे... 🤓🤓
अल्पेश सोलकर
हा काय निघालोच होतो,साखरझोपेने घोळ घातला.. हा काय उतरणारच होतो, पायऱ्यांनी संप केला.. कधी नव्हे तर..! नशीब छापायचे काम लागले होते हे काय नवीन ऐकतोय ' साडेसाती ' चा काळ आला.. हा काय निघालोच होतो,साखरझोपेने घोळ घातला.. हा काय उतरणारच होतो, पायऱ्यांनी संप केला.. कधी नव्हे तर..! नशीब छापायचे काम लागले होते हे काय नवी
immitalishrivastava
मेरे दर्द में ही मेरा मर्ज छिपा था.. उन मजबूरियों में मेरा फर्ज़ छिपा था.. हालातों का छापा हमपर कुछ यूँ पड़ा था.. कि जब देखा खुद में तो एक नया शख्स खड़ा था।। मेरे दर्द में ही मेरा मर्ज छिपा था.. उन मजबूरियों में मेरा फर्ज़ छिपा था.. हालातों का छापा हमपर कुछ यूँ पड़ा था.. कि जब देखा खुद में तो एक नया
yogesh atmaram ambawale
स्वप्न वगैरे नाही,पण एक इच्छा होती, काही खास कवितांची एक पुस्तिका छापायची. मनी वसे ते स्वप्नी दिसे,माझे ही तसेच झाले होते, माझ्या कवितांचे छापील पुस्तक मी स्वप्नात पाहिले होते. मग काय केला विचार, ह्या वर्षी छापावे पुस्तक पूर्ण करावे स्वप्न, पण कामाच्या व्यापात वर्ष तर सरलेच पण गेले राहुनी अपुरे एक स्वप्न. सुप्रभात माझ्या मित्र आणि मैत्रिणीनों कसे आहात? तुम्ही सुद्धा सज्ज आहात ना नववर्षाच्या स्वागतासाठी, चला तर मग आज लिहुया नव्या विषयावर. विषय
CA Vinit Jaluka
#FourLinePoetry ........... ©Vinit Jaluka (Soch) शक सभी को था यहाँ, हुनर लिखने का, ये है मेरा, या फिर, चिपकाई किसी और की मैंने गाथा है, हाल चाल तक ना पूछा, जिसने मुझसे कभी, पूछा उसने भी, भ
SURAJ आफताबी
क्यों जालिमा खिलाफ मेरे ऐसी संग्राम-ओ-रार करती हो ग्रहण लगा "आफताब" को कहती हो प्यार करती हो! काकुल की जंजीर से बाँधी रखी है मेरी आँखों की जोड़ी नैनों से अपने दिल पर मेरे छापामार वार करती हो कटार बना "शबाब" को कहती हो प्यार करती हो! स्याह अंजन की कोठरी में आजीवन कारावासी बनाया "आफताबी" समुद्री अम्बकों के तट पर मेरी धड़कनों का कारोबार करती हो चिलमन में छुपा "महताब" को कहती हो प्यार करती हो! काकुल...झुल्फ की लट छापामार वार - एक प्रकार का युद्ध करने का तरीका जिसमें छुप के वार किया जाता है इसका उदभव चीन में हुआ फिर भारत में राजस्था
Ravendra
जिला कारागार मेंडीएम का छापा ©Ravendra जिला कारागार में डीआईजी का छापा, हुई तलाशी बैरक में रह रहे अति संवेदनशील बंदियों की हुई जांच जिला कारागार में गुरुवार को डीआईजी जेल ने छ
रजनीश "स्वच्छंद"
हीरा लुटे, कोयले पर छापा।। गर दिल पे बात लगी होती तो बोलो यहां क्या ऐसा होता, ईमान बिके बाज़ारों में, उसकी कीमत भी क्या पैसा होता। छोटी बात लगे दिल पर, हीरा लुटे, पर कोयले पर छापा, देश रहा लुटता, पर हम खोते रहे हर छोटी बात पर आपा। क्यूँ हम सालों गुलाम रहे, क्यूँ हमले भी हम पे हज़ार हुए, कैसे हर हमलावर ने पहले हमारी कमजोरी को था भांपा। स्वर्णयुग का कालखण्ड था, आज कहो क्या ऐसा होता। गर दिल पे बात लगी होती तो बोलो यहां क्या ऐसा होता। मेरी ऊंची मीनारें हों, फिर चाहे अपने भी सूली चढ़ जाएं, सर पर पांव रखें या छीने रोटी, कैसे भी आगे बढ़ जाएं। इतिहासों में जवाब कहाँ मिलते हैं, ये तो एक कहानी है, जो बली रहे जो सबल रहे, इतिहास वो अपना गढ़ जाएं। अक्ल कोने में बैठ है रोती, क्या राज कर रहा भैंसा होता, गर दिल पे बात लगी होती तो बोलो यहां क्या ऐसा होता। ओछी चाल मैं चलता रहता हूँ, अपनो से जलता रहता हूँ, थोथी सफलता का तमगा लिए निज को छलता रहता हूँ। मैं मनुज कहाँ मैं सफल कहाँ जो है अपनो का साथ नहीं, साये को ही मान मैं अपना संग उसके ही चलता रहता हूँ। बैठ अकेले फिर मैं सोचूं ये ऐसा होता तो क्या वैसा होता। गर दिल पे बात लगी होती तो बोलो यहां क्या ऐसा होता। ©रजनीश "स्वछंद" हीरा लुटे, कोयले पर छापा।। गर दिल पे बात लगी होती तो बोलो यहां क्या ऐसा होता, ईमान बिके बाज़ारों में, उसकी कीमत भी क्या पैसा होता। छोटी बात
Astha
हम जल्द ही अपनी दूसरी पुस्तक प्रकाशित करने जा रहें हैं जिसमें आप भी भाग ले सकते हैं। पुस्तक का नाम है- Ignited souls🔥 पुस्तक में आपको आपकी