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शिव झा

17 जुलाई/जन्म दिवस  
*भारतीयता के सेतुबंध बालेश्वर अग्रवाल*

भारतीय पत्र जगत में नये युग के प्रवर्तक श्री बालेश्वर अग्रवाल का जन्म 17 जुलाई, 1921 को उड़ीसा के बालासोर (बालेश्वर) में जेल अधीक्षक श्री नारायण प्रसाद अग्रवाल एवं श्रीमती प्रभादेवी के घर में हुआ था।  

बिहार में हजारीबाग से इंटर उत्तीर्ण कर उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से बी.एस-सी. (इंजिनियरिंग) की उपाधि ली तथा डालमिया नगर की रोहतास  इंडस्ट्री में काम करने लगे। यद्यपि छात्र जीवन में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आकर वे अविवाहित रहकर देशसेवा का व्रत अपना चुके थे।

1948 में संघ पर प्रतिबंध लगने पर उन्हें गिरफ्तार कर पहले आरा और फिर हजारीबाग जेल में रखा गया। छह महीने बाद रिहा होकर वे काम पर गये ही थे कि सत्याग्रह प्रारम्भ हो गया। अतः वे भूमिगत होकर संघर्ष करने लगे। उन्हें पटना से प्रकाशित ‘प्रवर्तक पत्र’ के सम्पादन का काम दिया गया।

बालेश्वर जी की रुचि पत्रकारिता में थी। स्वाधीनता के बाद भी इस क्षेत्र में अंग्रेजी के हावी होने से वे बहुत दुखी थे। भारतीय भाषाओं के पत्र अंग्रेजी समाचारों का अनुवाद कर उन्हें ही छाप देते थे। ऐसे में संघ के प्रयास से 1951 में भारतीय भाषाओं में समाचार देने वाली ‘हिन्दुस्थान समाचार’ नामक संवाद संस्था का जन्म हुआ। दादा साहब आप्टे और नारायण राव तर्टे जैसे वरिष्ठ प्रचारकों के साथ बालेश्वर जी भी प्रारम्भ से ही उससे जुड़ गये।

इससे भारतीय पत्रों में केवल अनुवाद कार्य तक सीमित संवाददाता अब मौलिक लेखन, सम्पादन तथा समाचार संकलन में समय लगाने लगे। इस प्रकार हर भाषा में काम करने वाली पत्रकारों की नयी पीढ़ी तैयार हुई। ‘हिन्दुस्थान समाचार’ को व्यापारिक संस्था की बजाय ‘सहकारी संस्था’ बनाया गया, जिससे यह देशी या विदेशी पूंजी के दबाव से मुक्त होकर काम कर सके। 

उन दिनों सभी पत्रों के कार्यालयों में अंग्रेजी के ही दूरमुद्रक (टेलीप्रिंटर) होते थे। बालेश्वर जी के प्रयास से नागरी लिपि के दूरमुद्रक का प्रयोग प्रारम्भ हुआ। तत्कालीन संचार मंत्री श्री जगजीवन राम ने दिल्ली में तथा राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन ने पटना में इसका एक साथ उद्घाटन किया। भारतीय समाचार जगत में यह एक क्रांतिकारी कदम था, जिसके दूरगामी परिणाम हुए। 

आपातकाल में इंदिरा गांधी ने ‘हिन्दुस्थान समाचार’ पर ताले डलवा दिये; पर बालेश्वर जी शान्त नहीं बैठे। भारत-नेपाल मैत्री संघ, अन्तरराष्ट्रीय सहयोग परिषद तथा अन्तरराष्ट्रीय सहयोग न्यास आदि के माध्यम से वे विदेशस्थ भारतीयों से सम्पर्क में लग गये। कालान्तर में बालेश्वर जी तथा ये सभी संस्थाएं प्रवासी भारतीयों और भारत के बीच एक मजबूत सेतु बन गयी।

वर्ष 1998 में उन्होंने विदेशों में बसे भारतवंशी सांसदों का तथा 2000 में ‘प्रवासी भारतीय सम्मेलन’ किया। प्रतिवर्ष नौ जनवरी को मनाये जाने वाले ‘प्रवासी दिवस’ की कल्पना भी उनकी ही ही थी। प्रवासियों की सुविधा के लिए उन्होंने दिल्ली में ‘प्रवासी भवन’ बनवाया। वे विदेशस्थ भारतवंशियों के संगठन और कल्याण में सक्रिय लोगों को सम्मानित भी करते थे। जिन देशों में भारतीय मूल के लोगों की बहुलता है, वहां उन्हें भारतीय राजदूत से भी अधिक सम्मान मिलता था। कई राज्याध्यक्ष उन्हें अपने परिवार का ही सदस्य मानते थे। 

‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के प्रतिरूप बालेश्वर जी का न निजी परिवार था और न घर। अनुशासन और समयपालन के प्रति वे सदा सजग रहते थे। देश और विदेश की अनेक संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया था। जीवन का अधिकांश समय प्रवास में बिताने के बाद वृद्धावस्था में वे ‘प्रवासी भवन’ में ही रहते हुए विदेशस्थ भारतीयों के हितचिंतन में लगे रहे। 23 मई, 2013 को 92 वर्ष की आयु में भारतीयता के सेतुबंध का यह महत्वपूर्ण स्तम्भ टूट गया। 

(संदर्भ : हिन्दू चेतना 16.8.10/प्रलयंकर 24.5.13/पांचजन्य 2.6.13) #जीवन #जीवनी #साहित्य #भारतीय #इतिहास #राष्ट्रीय #राष्ट्रीय_स्वयंसेवक_संघ 

#IndiaLoveNojoto

Dhun 🎶

 #चन्द्र्यान 2# भारतीय #देश्प्रेम #साहित्य #

शून्य(ब्राह्मण)

हिंदुत्व हिन्दू ही नहीं मुस्लिम का भी तो खून है...
ये एक सबके ही लिए यहां एक ही कानून है!
यहां कर्म पहले धर्म बाद में यही तो हमने था पढ़ा...
भारत हमारा गर्व है भारत हमारा जुनून है!

जय हिन्द... जय हिंदुत्व(मजहब नहीं ये प्यार है) #भारत #भारतीय #एक_पहचान

अनुराग यादव

यह भारत देश हमारा है ,
 यह भारत देश हमारा है।।
 यहां गद्दारों की जगह नहीं।।
 गद्दार यहां पर आएंगे ,
 तो लात हमारी खाएंगे।।
 यह भारत देश हमारा है ,
 यह भारत देश हमारा है।।

©अनुराग यादव #भारत #भारतीय #देशप्रेम #देशभक्ति #हिंदुस्तान 

#raindrops #भारत #भारतीय #देशप्रेम #देशभक्ति

जीtendra

हरी चादरों, हरे झण्डों को अपनी पहचान कहते हो,
ये घर कल मेरे थे, जिन्हें अपना मकान कहते हो,
सैकड़ों खूनों से लथपथ हैं तेरे घर की चौखट तक,
क्या इसी हुनर को तुम मुसलमान कहते हो ?? #मुसलमान #भारत_माता_की_जय #भारतीय #भारत

Praveen

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Rashmi singh raghuvanshi "रश्मिमते"

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Sheetal Shekhar

इतने हिस्सो में बंट गया हूं मैं!
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं!!
- कृष्ण बिहारी नूर

©Sheetal Shekhar #साहित्य

मनीष कुमार पाटीदार

'साहित्य जीवन में वह रौशनी लाता है जिससे वैराग्य का संचार हो जाता है। रचनात्मक साहित्य की सुखद अनुभूति से साधारण-सा जीवन कब, कैसे बीत जाता है पता नही चलता। साथ ही साहित्य से जुड़े रहना ईश्वर के हृदय में वास करने जैसा अनुपम सौभाग्य है।'

©मनीष कुमार पाटीदार #साहित्य
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