यह भोर की अंगड़ाई
पंछियों का चहचहाना
यह मुंढेर पर पंछियों का बैठ जाना
और इक उम्मीद से देखना
बंद किसी मुट्ठी का खुलना
और चावल के दानों का
#कविता
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NEERAJ SIINGH
ओ री चिरइया कैसी री चिरइया , रोज रोज काहें ना आती ,तेरी चिप चिप वाली धुनि काहें ना रमाती ,
ओ री चिरइया तू काहें ना
अब कुछ बतियाती वो
चावल #neerajwrites