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Arora PR
हालाकि इस भुतहा एतिहासिक खंडहर मे कोई रहता नहीं फिर भी रातो मे वो चाँद अक्सर आता हैँ न जाने किसको देखने ©Arora PR खंडहर
sarika
स्वार्थी रिश्ते और मकड़ी के जाले , अगर जिंदगी और मकान में लग जाये तो ..!! उसे खंडहर बना देते हैं, इसलिए उसे समय रहते हटा दीजिए..!! खंडहर
Shiva hooda
लगता नहीं है मन मेरा इस बेजान हुए जहां में उठो लो ना अब मुझे इस खंडहर हुए मकान से। ना यहां रुह को सकुन है ना दिल में आराम है, धर्म और जातियों में बटा संसार है, मैं बड़ा मै बड़ा करके हो रहा नरसंहार है। लगता नहीं मन मेंरा इस जलते हुए मशान में, उठा लो ना अब मुझे इस खंडहर हुऐ मकान से। मुहब्बत की बात करते हैं, और परमाणु हथियारों निर्माण करते हैं। एक दूसरे को सिने से लगाकर पीठ पर वार करते हैं। लगता नहीं मन मेरा गिर रहे मानव प्रवेश में, उठा लो ना अब मुझे इस खंडहर हुए मकान से। जगंलौ की वो दुनिया तबाह कर दी हमने अपने अहम धरती को जागिर बना लिया अपनी पता नहीं किस वहम में, स्वर्ग से नरक बन गया जहां मानव के कहर में। लगता नहीं मन मेंरा इस तपते हुए रेगिस्तान में, उठा लो ना अब मुझे ईस खंडहर हुए मकान से। ©Shiva hooda खंडहर
Nilam Agarwalla
वहां जो भी जाता है लौटकर नहीं आता। वहां भूतों का डेरा है,बुरी आत्माओं का बसेरा है। तुम भूलकर भी उधर का रूख मत करना, वरना बेमौत मारे जाओगे। ©Nilam Agarwalla #खंडहर
DANVEER SINGH DUNIYA
उस खंडहर में कोई नही जाता क्योंकि वहां मेरे दिल के सिवा कुछ भी नहीं है हामारा पुराने जमाने में मिलन होता था उन यादों के सिवा और कुछ भी नहीं है ©DANVEER SINGH DUNIYA यादों का खंडर
untoldstoryy1
हर रोज आधी रात एक बुरी आत्मा उस खंडहर में नृत्य करती है और फिर अचानक पायल कि झनकार बंद होते हि जोर जोर से कभी रोने की आवाज आती है तो कभी हंसने की आवाज और कभी कभी जोर जोर से चीखने की आवाज आती है ऐसा लगता हो जैसे वो दर्द में हो या फिर उसकी कोई खास चिज़ खो गई हो। और फिर चीखते चीखते अचानक उस आत्मा की आवाज शांत हो जाती है। ©untoldstoryy1 #एक_आत्मा #खंडहर
Jai Singh
मैं चाहतों का खंडहर हूं चाहतों की दौड़ में मेरी चाहतें मुझे निगल गयीं आर्ज़ुओं को क्या कहूँ नासूर की तरह फैल कर चाहतें,चाहतों को ही छल गयीं आकांक्षा बढ़ उच्चाकांक्षा हुईं उच्चाकांक्षा बढ़कर महत्वाकांक्षा फिर सुरसा बन, खुशियां निगल गयीं इक प्रेम की तमन्ना थी एक साथ कि थी अभिलाषा ये कागजों के बोझ तले सारी रूमानियत कुचल गयी मैं चाहतों का खंडहर हूं चाहतों की दौड़ में मेरी चाहतें मुझे निगल गयीं #खंडहर #चाहतें #ख्वाहिशें
Alok Verma "" Rajvansh "Rasik" ""
हाल भी कैसे अब उसको बयां करूं, दर्द मुझसे ज्यादा उसके पास है। मैं तो उस चांदनी के समान हूं, खंडहर के शिवा कुछ न पास है। रूह भी जिसे सोचकर काप जाए, ऐसी जिंदगी हमारे ही पास है। लगता है कहीं जमी में जिस्म दबाए बैठा हूं, ख्वाहिशें मांगने को जमीं से हाथ फैलाए बैठा हूं, अब इससे ज्यादा मैं "रसिक" क्या बताऊं, खंडहर के शिवा कुछ न पास है......! खंडहर के शिवा...........!