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Anjali Jain
भारत तो है ही गाँवों का देश शहर तो विदेशों से आए हैं! गाँव की सहज बुद्धि सम्मान पाती है शहर के लोग तो शिक्षा को लजाए हैं! कैसा अजीब है कि लोगों को अपना ही घर नहीं भाता इन्हें जीना कहाँ आता है ये तो नाटक करने आए हैं! शांति से रहना उनकी आदत ही नहीं अशांति व झगड़े ही उन्हें खुशी दिलाए हैं!! #लॉकडाउन की अवहेलना 11.04.20
Ashutosh Mishra
मैं पढी लिखी, संस्कृति और संस्कारों से है प्रेम मुझे। कोई मेरे रूप की प्रशंसा करे,भाता है मुझे। कोई मेरे अधिकारों और कार्यों की अवहेलना करे, मां दुर्गा की कसम,,, छठी का दूध याद करा दूंगी। अल्फ़ाज़ मेरे ✍️🙏🏻🙏🏻 ©Ashutosh Mishra #अवहेलना #nojotohindi #npjotothurght#npjoto
ताजदार
तेरी बेरुखी और यह अवहेलना। मेरी जान ना ले ले तो कहना। यह उपेक्षा और यह नजरअंदाजी। हुए हैं मेरी मोहब्बत पर हावी।। यह जुदाई और यह रुखापन। हो रहा बैचैन यह मेरा मन।। तन्हा यह जीवन यह लंबी उदासी। बहुत जानलेवा है तेरी खामोशी।। #बेरुखी #अवहेलना #उपेक्षा #नजरअंदाजी #जुदाई #रुखापन #उदासी #aprichit
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी पर्वत पहाड़ काट दिये टूरिज्म पैदा करके अवस्था हमारी शोर गुल पैदा कर रही है तप और शांति के वातावरण में जहर घोल रही है चेतन मन की आवाज अवसाद में गुम हो रही है भगवत इच्छाये लुप्पत लीलाये भोग विलास की हो रही है देवालय देव भूमि व्यवसाय के अधीन चमत्कारों के बल पर तीर्थो पर उगाही चल रही है नर से नारायण बनने की सम्भावनाये इस कलिकाल में भर्मित हो रही है दुराचार दुव्यसन भगवा चोले पहनकर मूल धर्म की अवहेलना हो रही है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #NightRoad मूल धर्म की अवहेलना हो रही है #nojotohindi
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी चौखटे मंदिर मंदिर की घायल अपवित्र शाश्वत तीर्थ धाम है नूर तप त्याग का खो दिया अमर्यादित होता व्यवहार है वर्चस्व की लड़ाई में, ईश्वर होता बदनाम है सत्य संयम और साधना भूल मांस मंदिरा का हो रहा व्यवहार है सदाचार की अवहेलना कर पापो का आया भूचाल है बैर विरोधी गतिविधियाँ कर घायल जैनों के तीर्थ स्थान है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" सदाचार की अवहेलना कर,पापो का आया भूचाल है
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी पर्वत पहाड़ काट दिये टूरिज्म पैदा करके अवस्था हमारी शोर गुल पैदा कर रही है तप और शांति के वातावरण में जहर घोल रही है चेतन मन की आवाज अवसाद में गुम हो रही है भगवत इच्छाये लुप्पत लीलाये भोग विलास की हो रही है देवालय देव भूमि व्यवसाय के अधीन चमत्कारों के बल पर तीर्थो पर उगाही चल रही है नर से नारायण बनने की सम्भावनाये इस कलिकाल में भर्मित हो रही है दुराचार दुव्यसन भगवा चोले पहनकर मूल धर्म की अवहेलना हो रही है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #NightRoad मूल धर्म की अवहेलना हो रही है #nojotohindi
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी लड़ खड़ाते हम सब समापन नैतिकता का कर रहे है राजनीति के आंगन में, शोषण बड़ा कर रहे है सर्वोदय की परिकल्पना गांधी की आज के राज नेता बौना कर रहे है त्याग और सेवा के पदों पर पहुँचकर जनसेवा के कार्यो को कलंकित कर रहे है भारत के युग पुरुष की अवहेलना कर बापू के सपनो के भारत का सत्या नाश कर रहे है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #gandhijayanti भारत के युग पुरुष की अवहेलना कर रहे है #gandhijayanti
Usha Dravid Bhatt
परिदृश्य ऊंचे ऊंचे वृक्षों को देख उठते हैं प्रश्न मन में क्या मानव की इच्छाएं इनसे भी ऊंची हैं। शायद हां ! हरे भरे वनों की जगह सर्वत्र कंक्रीट के जंगल उग आए, हवा दूषित हो गई, कभी स्वच्छंद घूमने वाले गगनचुंबी इमारतों में कैद होगए। स्वप्न खेत, खलिहान,आंगन चौबारों, मकानों से गुजरते हुए फ्लैटों में सिमट कर रह गए। स्वच्छ हवा ,पानी का अधिकार खुद खोते गए। नहीं बालपन खेलता गलियों में ना जवानी उमंग उत्साह से उड़ रही, बुढा़पा घुटन और मायूसी का दोष आंखों को दे रहा, इमारतों के सघन वन को दृष्टि बाध्यता कह रहा। ये सब मानव की ऊंची उड़ान का परिणाम है। कौन जिम्मेदार है बिकते खेत खलिहान का, पश्चिमी सभ्यता से बेजार महत्वाकांक्षा ने माफियाओं का दास बना दिया। गुलाम बने फिर रहे हैं माफियाओं के दिखाए सब्जबागों में, छले जा रहे हैं निरुद्देश्य अर्थ की कामनाओं में । भूले अपनी संस्कृति दिशाहीन हो गये, प्राकृतिक सुख साधन लुप्तप्राय हो गये, ठगे रह गए हैं , तरसते स्वप्न पुकारते हैं, ए खूबसूरत खोये ख्वाब लौट आ इस धरा पर ! प्रकृति आज भी वही है, इन्तजार है छोड़कर जाने वालों का, मानव विहीन धरती बंजर ही कहलाती है । ©Usha Dravid Bhatt परिदृश्य पलायन ,मानव मूल्यों की अवहेलना, अपनी संस्कृति की विमुखता से उपजते परिणाम।