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कवि मनोज कुमार मंजू
आ जाओ 'उर' में मिट जाये काली अंधियारी ये रात तेरी महिमा से बन जाये बिगड़ी हुई मेरी हर बात ©कवि मनोज कुमार मंजू #सीताराम #अंधियारी #रात #महिमा #बात #मनोज_कुमार_मंजू #मँजू #ramsita
INDER RAFATPURIYA
K Singh
इन काली अंधियारी रातों में मैं कहाँ सो पाती हूँ, मेरे लिए तो एक तरह का परदा हैं ये जिनके पीछे मैं रोज़ छिपकर रो पाती हूँ। इन काली अंधियारी रातों में मैं कहाँ सो पाती हूँ, मेरे लिए तो एक तरह का परदा हैं ये जिनके पीछे मैं रोज़ छिपकर रो पाती हूँ। #Star #Night
Nisheeth pandey
Rishi K
एक अंधियारी रात थी, अस्मा मे बादलों की घटाए छायी थी, समन्दर मे सन्नाटा था, धरती पे मायूसी छायी थी, ना परिंदों मे उड़ने की ख्वाहिश, पशुओं मे भी खामोशी छायी थी, जंगल भी सुनसान था, रास्ते मे भी ना कोई हलचल देखने मे आयी थी, एक अंधियारी रात थी, अस्मा मे बादलों की घटाए छायी थी, बादलों को बरसना था, बिजलियाँ कड़कने वाली थी, समन्दर मे उठी लहरें और धरती मे कम्पन आई थी, परिंदों कि उड़ान अब रुकने नहीं वाली थी, पशुओं की आवाज़ अब ना दबने वाली थी, हवाओं ने बदला रुख ऐसा, कि जंगल मे मची तबाही थी, रास्तों ने सुना शोर, एक तूफ़ान के आने की गुंजाइश थी, उस अंधियारी रात मे, शैतान के जागने की चेतावनी थी! एक अंधियारी रात थी, अस्मा मे बादलों की घटाए छायी थी, समन्दर मे सन्नाटा था, धरती पे मायूसी छायी थी, ना परिंदों मे उड़ने की ख्वाहिश, पशुओं मे
Rishi K
दिल बहुत उदास है, ना जाने किस सुकून कि तलाश है, चाँद भी छिपा बादलों मे, चांदनी भी हताश है, सूर्य की किरणें भी है खोयी, उसे भी मौसम के बदलने का इंतज़ार है, बावरा मन ना जाने क्या ढूंढ रहा, ना जाने किस चीज़ को बेकरार है, ना दोस्त ना दुश्मन कि आवाज़ है, ना साथी ना राही के मिलने का आगाज है, समंदर भी शांत है रस्ते भी सुनसान है, असमान मे छायी अंधियारी रात है, होगी सुबह सुनहरि, चेहरे पे उस सोच से मुस्कान है, दिल बहुत उदास है, ना जाने किस सुकून कि तलाश है!! दिल बहुत उदास है, ना जाने किस सुकून कि तलाश है, चाँद भी छिपा बादलों मे, चांदनी भी हताश है, सूर्य की किरणें भी है खोयी, उसे भी मौसम के बदलन
Sudha Sisodiya
Poonam Suyal
समय यात्रा (अनुशीर्षक में पढ़ें) समय यात्रा यात्रा ये समय की, क्या करना चाहती हूँ मैं? क्या वो दुखदायी लम्हे, फिर से जीना चाहती हूँ मैं? जब तिल तिल कर मरी थी मैं
Shivam
पंदरह बाद के कृष्ण पक्ष के दिवस घूम के जब आएं पंदरह अंधियारी रातों में चाँद रहे पर गुम जाए निशा *पञ्चदश चाँद पे वो कितनी भारी होती होंगी पंदरह ही होती हैं पर कितनी सारी होती होंगी पंदरह उजली रातों में भी वो कितना खुश रहता है, सबने खुद से सोच लिया ना किसी ने उससे पूछा है माना चमक, चाँदनी, कई आकार का वो हो सकता है पर चमक, चाँदनी, शोहरत से कोई कितना खुश हो सकता है ? (पूरी कविता कैप्शन में।) #RDV19 पंदरह दिन पंदरह दिन जब चाँद विश्व में खूब चमकता भ्रमण करे, पंदरह दिन जब चाँद चांदनी पे निज अपनी घमंड करे पंदरह दिन जब अपनी कलाओं मे
Sandeep Awadhiya
होता है मालूम कि रात चिराग जला निकलती है। की, अक्सर अंधेरों मे ही सितारों की नुमाइश हुआ करती है वरना उजालों मे तो कालिख़ भी कोरी जान पड़ती है।। #NojotoQuote #अंधियारी