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Tarakeshwar Dubey
श्रृंगार कैसे गढ़ सकता हूँ? -------------------------------- मन करता है कुमकुम बिंदिया, रोली की बस गीत लिखूँ, पायल झूमके कंगन से, बजती रुनझुन संगीत लिखूँ। पर कानों में बच्चों की जब, चीखें सुनाई देती हैं, आखों में माताओं की बस, तड़पन दिखाई देती हैं। ऐसे में मैं हास्य प्रेम की, बातें कैसे कर सकता हूँ? भारत माता बिलख रही, श्रृंगार कैसे गढ़ सकता हूँ? हाथ थे उसके रक्तरंजित, लड़ कर आजादी आई थी, शहीदों ने दे शीश आहुति, बारात उसकी सजाई थी। माताओं ने अर्पण किया, अपने जिगर के लाल को, बहनों ने न्योछावर किया, अपने रक्षक महाकाल को। रक्तरंजित पांवो की लाली, महावर कैसे कह सकता हूँ? भारत माता बिलख रही, श्रृंगार कैसे गढ़ सकता हूँ? रातों में भी सरपट दौड़े, जब दुनिया सो जाती हैं, कहीं बिहड़ में किसी बहन की, आबरु उतर जाती है। जब बेटी चीख चीख कर, मदद की गुहार लगाती है, किसी बेटे की सूरत तब, नजर नहीं क्यों आती है? मां की हाहाकार को, अट्टहास कैसे कह सकता हूँ? भारत माता बिलख रही, श्रृंगार कैसे गढ़ सकता हूँ? रो रहे किसी के वृद्ध पिता, बैठे कहीं वृद्धाश्रम में, लाज नहीं आती उन्हें, जो छोड़ आते हैं निर्जन में। सुन उनकी करुण व्यथा, सूरज गति रुक गई होगी, मुरझा गया होगा पुष्प, सागर लहरें झूक गई होगी। जन की आह क्रंदन पर, हर्षित कैसे हो सकता हूँ? भारत माता बिलख रही, श्रृंगार कैसे गढ़ सकता हूँ? ©Tarakeshwar Dubey श्रृंगार कैसे गढ़ सकता हूँ #RepublicDay
Om Shivam Upadhyay
"ख्वाब गिरवी रखें हैं पलकों में मढ़ मढ़ के, तेरे सपनों की खातिर कहानियाँ गढ़ गढ़ के...!! " #ओम 'मलंग' "ख्वाब गिरवी रखें हैं पलकों में मढ़ मढ़ के, तेरे सपनों की खातिर कहानियाँ गढ़ गढ़ के...!! " #ओम 'मलंग'
हरिसिंह राठौड़
घर-घर #सतिया मिले, घर-घर जुंझाता मिले #जुंझार ! गढ़ गढ़ #जौहर री ज्वाला, गढ़ गढ़ शाखा की #हुंकार !! आज ही के दिन 4 सितंबर 1987 को सती हु
अशोक कुमावत ,अशोक कुमावत
श्री सांवरिया कटलरी स्टोर्स ,मंडफिया, सांवरिया जी ,जिला- चित्तौड़ गढ़, (राज.)
Harsh Srivastava "Chanchal"
माटी से गढ़ गढ़ कर दिलबर, कितना तुझे सजाया होगा।। वह भी खुद होगा चक्कर में, जिसने तुझे बनाया होगा। By Harsh Srivastava "Chanchal" माटी से गढ़ गढ़ कर तुझको कितना तुझे सजाया होगा।। वह भी खुद होगा चक्कर में जिसने तुझे बनाया होगा। लिखित द्वारा-हर्ष श्रीवास्तव "चंचल"