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अदनासा-

विडियो सौजन्य एवं हार्दिक आभार 💐🌹🙏😊🇮🇳🇮🇳https://www.instagram.com/reel/C2REJFxvMva/?igsh=dHE3OWI2ZnBscmtz #हिंदी #मोबाइल #टेक्नोलॉजी #भौतिक # #Instagram #Facebook #जानकारी #विज्ञान #आधुनिक #जिजीविषा #अदनासा

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काव्याभिषेक

⏺ ये बचपन इतनी जल्दी क्यों बीत जाता है - सबके जीवन में ख़ुशी का एक पल ज़रूर आता है, वो पल ऐसा होता की उम्र भर के लिए ठहर जाता है।

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सबके जीवन में ख़ुशी का एक पल ज़रूर आता है,
वो पल ऐसा होता की उम्र भर के लिए ठहर जाता है।
में ज़िन्दगी में वो पल बचपन का था यारों ,
पर ये बचपन इतनी जल्दी क्यूँ बीत जाता है ।
बचपन की हर बात निराली होती है ,
हर दिन होली तो हर रात दिवाली होती है ।
आज ये दिन दूर दूर तक नज़र नहीं आता है,
ये बचपन इतनी जल्दी क्यूँ बीत जाता है ।
बो बारिश का आना ,कीचड़ में नहाना,
फिर घर पर आकर मम्मी की डांट खाना,
टीचर का आना ,बोरिंग चैप्टर पढ़ाना,क्लास में न जाने के बहाने बनाना।
आज ये पल याद आकार गालों को नहला जाते हैं,
ये बचपन के दिन इतनी जल्दी क़्यो बीत जाते है ।
काका के पेड़ से अमरुद चुराना, पकडे जाने पर दौड़ लगाना ।
बाग में जाकर माली को सताना,दोस्तों के साथ ठहाके लगाना ,
आज तो ये दिन टीवी और किताबों में ही नज़र आते हैं,
ये बचपन के दिन इतनी जल्दी क्यों बीत जाते हैं। ⏺ ये बचपन इतनी जल्दी क्यों बीत जाता है -



सबके जीवन में ख़ुशी का एक पल ज़रूर आता है,

वो पल ऐसा होता की उम्र भर के लिए ठहर जाता है।

Umesh Kumar

मोबाईल चलीसा मोबाइल चालीसा #कॉमेडी

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Prince Gupta

"काश ये तकनीक न होती तो 
हम भी आज बेजुबान
जानवरों की तरह अपने ही
जज्बातों में कैद न होते ।"

@ehsaasinquotes

©Prince Gupta #addiction #मोबाइल#मोबाइल #MOBILE

Atal Ram Chaturvedi

नमस्कार मित्रो

©Atal Ram Chaturvedi #मोबाइल

ntnrathore

मोबाइल

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अकड़ते थे जो कभी, जरा जरा सी बात पर,
गरदन झुकाये घूमते हैं।
सर उठा के मिलते थे कभी,
मिरे शहर के लोग।
अब मोबाइल में आँखे गड़ाए दिखते हैं।

ओये, अबे , भिया सुन के नज़रे घुमाते थे,
अब महज नोटिफिकेशन की आहट सुनते हैं
अब बस मोबाइल में आंखे गड़ाए दिखते हैं।

अखबारों, किताबो, लायब्ररी वाचनालयों में ,
सुबह शाम टकरा जाते थे कभी।

अनंत सी दुनिया का इल्म,अब हथेली में ढूंढते हैं।
अब मोबाइल में आंख गढ़ाए दिखते हैं।

शिकायत करें क्या, शिकवा करें किससे,
अपनी भी फितरत कहाँ रही पहले जैसी
डायरी में दर्ज करते थे,सारे अहसास कभी
अब नोटपैड के टच में डूबे रहते  हैं।

लफ़्ज़ों में तो कोई फर्क नही होता मगर,
पन्ने में जो मिलता था लम्स,
वो टच में ढूंढते हैं।
अजीब हो चुके हैं हम,
कभी हाथ की लकीरों में,
तो कभी हथेली में, दुनिया ढूंढते हैं।

......बस मोबाइल में आँखे गड़ाए दिखते हैं।

नवाब"सैम" मोबाइल
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