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Dr Jayanti Pandey
विरोधाभास........ गर्वित अट्टालिकाओं के बीच देखो सिमटी धारावी चाल है, इस चकाचौंध और रोशनी की आड़ में कितनी गुरबत छुपा ली है। (पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें) विरोधाभास: समाज और राजनीति देश और जनता की सेहत पर धन-पतियों की लालच भारी है, अपने हित के लिए राजनीति को साधने की नीयत काली है। गर्वित अट
A NEW DAWN
दंश (In Caption) Part - I Ch - 11&12 "मैं ने उसको नहीं उठाया साहेब... हां मैं तीन दिन तक उसका पीछा किया था... और चौथे दिन जब मैं उधर उसको उठाने के वास्ते गया तो मेरे को सुनने मे
Rabiya Nizam
दंश (In Caption) Part - I Ch - 11&12 "मैं ने उसको नहीं उठाया साहेब... हां मैं तीन दिन तक उसका पीछा किया था... और चौथे दिन जब मैं उधर उसको उठाने के वास्ते गया तो मेरे को सुनने मे
आयुष पंचोली
सन्तान का जीवन पूर्ण रूप से माता-पिता पर निर्भर करता हैं। उसके जन्म से लेकर उसके द्वारा माता-पिता की उपाधि पाने तक। ©आयुष पंचोली ©ayush_tanharaahi #kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan #mereprashnmerisoch सन्तान का जीवन पूर्ण रूप से माता-पिता पर निर्भर करता हैं। उसके जन्म से लेकर उसके द्वारा माता-पिता की उपाधि पाने तक। जन्म से सन्तान के प्रथम
Kajal
अँधेरी रात, ठंडी हवाओं की झंकार, दरिंदगी के शैतानों की आवाज की धमाकार। काली घटाओं के बीच उलझे हुए साये, चुपके से हिलती उनकी सिलवटों की आहट से डर लगता है। बिछड़े अपनों की याद आती है, कुछ अजनबी नजर आते हैं, खोए हुए वक़्त की तस्वीर बन जाते हैं। एक तरफ रात के नीचे आँखें मुँदते हुए जीवन के सपने सजाते हैं, दूसरी तरफ डर उनकी जान लेने का इंतज़ार करता है।😫😫😫😫😱😱😱 ©Kajal #डारावनी
poonam atrey
सब कुछ पाकर भी ,ये उदासी क्यूँ ,नम आँखों में ये नाराज़ी क्यूँ, दर्द से कुछ नही हासिल होता ,तो ख़ुशी से जंगबाज़ी क्यूँ, पलक से क्यूँ बिखर रहा है ,हर एक ख़्वाब तेरा, खुद अपने ही वजूद से , ये नजरअंदाजी क्यूँ, क्यूँ हुई कैद बोतल में ख़ुशी, ये सवाल ज़रा ख़ुद से कर, किया हर फ़ैसला तूने ही तेरा ,फ़िर ये बयानबाज़ी क्यूँ, ये ज़िन्दगी एक संगम है ,जिसमे दुख और सुखों का मेला है, आज अगर भीड़ ,कल तन्हाई है ,फ़िर पग पग पे जालसाज़ी क्यूँ, निकलना खुद ही होगा तुझको , तेरे इस तंग दायरे से, आँख में आसूं क्यों रखना , और पँखो में बेपरवाज़ी क्यूँ ।। ©poonam atrey #नाराज़ी
Babli BhatiBaisla
मेरी दिवानगी के किस्से कुछ ऐसे हो गए हैं दूसरे करीबी रिश्ते अब दूर के हो गए हैं इस कदर परेशान हूं ख्यालों से तेरे मेरी नींद मेरा चैन मुझ से दूर हो गए हैं दौर वफाओं का नया नया गुजरता है बहुत रंगीन जरूरतों की आंधी में सौ बुराइयों के इल्ज़ाम लगाते है टूट जाते हैं वो ख्वाब जो होते हैं कोरे मायावी हकीकत की जमीन पर जिनका वजूद ही नहीं है बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla मायावी