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Shravan Goud
सपने अपने होते हैं जब हम उनके साथ जीना सीख लेते हैं। इन्द्र धनुष सा था जीवन हमारा न जाने सब रंग कहाँ धुल गए था हिमालय सा हौसला,सतरंगी थे सपने अश्कों के बरसात में सब धूल-धूसरित हो रहे Pic s
Nasamajh
आज हम सब ने भारत की 72 वीं गणतंत्र दिवस मनाईं आज हमने बड़ी गर्व से फिर उन शहदी योद्धा को याद किया आज फिर से हम सब ने भारत की गरिमा और गौरव की गधा देशभक्ति से ओतप्रोत होकर बार बार सुनी और गाई ।। आप सभी मित्रों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई 🎉🇨🇮🇨🇮💐💐🌺🌺 आप सभी से अनुरोध है और सविनय निवेदन करता हूँ कि कहीं भी तिंरगा अगर ज़मीं पर गिरा हुआ दिखें और मिलें तो उसे अपने हाथों से उठाकर किसी ऐसे
राजेश गुप्ता'बादल'
हर किसी में यहां एक ना एक हुनर होता है, चमकता है कोई बन के सितारा कोई धूल धूसरित ही रहता है। कभी समंदर भी आश्रित नदियों पर , तो कभी महाबली हाथी अदना सी चींटी से हारा है। जुटा लेती शहद मधुमक्खियां, ज्यूं अमावस की रात में मिलता जुगनू से सहारा है। जल थल या नभ में जितने भी जीव जगत में, सबकी हैं क्षमता अपनी सबका किरदार निराला है। फिर मानव तो है खुद ही क़िस्मत का धनी, केवल इसको बुद्धी का वर दान मिला, हर इक बंदा ही तो यहां एक अलग हुनर वाला है। सत् रज तम सबके अंदर , सब में ही कोई एक हुनर आला है। हर किसी में यहां एक ना एक हुनर होता है, चमकता है कोई बन के सितारा कोई धूल धूसरित ही रहता है। कभी समंदर भी
Anjali Raj
संताप को मिटाने की मशाल को जलाने की धूल धूसरित बाग़ में पुष्प फिर उगाने की पथ में कांटे हो भले घावों से ना डरिये कोशिश करते रहिये पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें कोशिश करते रहिये संताप को मिटाने की मशाल को जलाने की धूल धूसरित बाग़ में पुष्प फिर उगाने की पथ में कांटे हो भले घावों से ना डरिये कोशिश करते
अशेष_शून्य
"शेष स्मृतियां .... हमारी" मेरी और तुम्हारी -Anjali Rai (शेष अनुशीर्षक में ....) तुमको देने के लिए मेरे पास मेरे अलावा और कुछ भी नहीं ....!! ख़ुद तुम्हारा दिया हुआ जीवन भी शून्य हो रहा हो मानो ....। पर जब तक लौटोगे
Sunita D Prasad
हे!लक्ष्मण तुम्हारा झुका शीश नैनों में नीर, बता गए थे तुम्हारे ह्रदय की पीर। पूछना चाहती थी कई सवाल.. पर जानती थी तुम नहीं दे पाओगे किसी एक का भी जवाब...। अतः ..मैं.. चुप ही रही। ............. ............ हाँ,तुम ही हो 'राम'..।। ---सुनीता डी प्रसाद💐 #yqdidi #yqpowrim #yqpowrimo # मेरी पीड़ा.... हे!लक्ष्मण तुम्हारा झुका शीश नैनों में नीर, बता गए थे
Vicky_Singh_Rajput
*जिसपर था सर्वस्व लुटाया,* *मेरा वो अरमान कहां है?* *बोलो नेहरू बोलो गांधी,* *मेरा हिन्दुस्तान कहां है?* *सैंतालीस में भारत बांटा,* *'उनको' पाकिस्तान दे दिया;* *"दो गालों पे थप्पड़ खा लो"* *मुझे फालतू ज्ञान दे दिया;* *मुझे बताओ यही ज्ञान तुम,* *'उनको' भी तो दे सकते थे;* *नहीं बंटेगी भारत माता,* *ये निर्णय तुम ले सकते थे;* *मगर देश को छिन्न-भिन्न कर,* *दुनिया भर की सीख दे गए,* *हिन्दू को दो-फाड़ कर दिया,* *आरक्षण की भीख दे गए!* *एक अरब हिन्दू लावारिस,* *कहो हमारा मान कहां है?* *बोलो नेहरू बोलो गांधी,* *मेरा हिन्दुस्तान कहां है?* *'सेकुलर' राष्ट्र बनाना था तो,* *बिन बंटवारे भी संभव था;* *छद्म-धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र,* *बिन भारत हारे भी संभव था;* *'उन्हें' पालना ही था तो,* *क्यों टुकड़े भारत के कर डाले?* *मुझे बताओ किस की ख़ातिर,* *डाके अपने ही घर डाले?* *एक चीन क्या कम दुश्मन था,* *बाजू पाकिस्तान बिठाया;_* *कदम-कदम पर इसी पाक से,* *हम सब ने फिर धोखा खाया;* *जितनी सस्ती जान हमारी,* *उतनी सस्ती जान कहां है?* *बोलो नेहरू बोलो गांधी,* *भूले सावरकर की पीड़ा,* *और बोस का प्यार भुलाया;* *धूल-धूसरित, जग में लज्जित,* *भारत का सम्मान कर दिया;* *दो लोगों की पदलोलुपता,* *पे भारत बलिदान कर दिया !* *उधम सिंह को पागल बोला,* *मरने दिया भगत को तुमने;* *चापलूस के हैं पौ-बारह,* *दिखला दिया जगत को तुमने;* *जो जीते उनको हरवाया,* *'वल्लभ' का सम्मान कहाँ है?* *बोलो नेहरू बोलो गांधी,* *मेरा हिन्दुस्तान कहां है?* *टूटा -फूटा जैसा भी था,* *सैंतालिस में भारत पाया;* *पर मुझको भी हक़ मिल जाये,* *ये तुमको हरगिज़ ना भाया;* *ना पुराण ना वेद पढ़ाये,* *जाने क्या बकवास पढ़ाया;* *शिक्षा में घोटाला कर के,* *अधकचरा इतिहास पढ़ाया;* *पूछे गौरव इस भारत में,* *हिन्दू की पहचान कहां है?* *बोलो नेहरू बोलो गांधी,* *मेरा हिन्दुस्तान कहां है? ©Vicky Rajput ✍️ #Read_The_Caption
AK__Alfaaz..
जीवन का अभिज्ञ लिए, अनभिज्ञ रही मै, स्मृतियों की स्थिरता, तय करती रही, काल के प्रहार से विघटित, विस्मृत उम्र मेरी, रूढ़ियों के पौरुष से चिरप्रसूतिका मै, कभी कोई, अभिलाषा नही करूँगी गर्भित, ना जन्मूंगी श्वाँस मात्र लिप्सा अपनी, पालने की रिक्तता, पुकारेगी मेरी ममता, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #रेहन_ईप्सा जीवन का अभिज्ञ लिए, अनभिज्ञ रही मै, स्मृतियों की स्थिरता, तय करती रही,
AK__Alfaaz..
जब नदियों ने, पर्वतों से बिछड़ कर, रेत के मैंदानों में, अज्ञात वास ले लिया, और.., बादलों ने, बरसना भूलकर, हवाओं से संधि कर ली, सागरों ने, अपनी हृदय की गहराइयों में, अनेकों प्रश्न गर्भित कर लिये, व.., अपनी अंक सीमाओं को समेट, प्रतीक्षारत हो, क्षितिज पर अपने मिलन को, चिर मौन धारण कर लिया, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #अश्रु_वीथिका जब नदियों ने, पर्वतों से बिछड़ कर, रेत के मैंदानों में, अज्ञात वास ले लिया,
N S Yadav GoldMine
(शिव पुराण):- एक बार सुमेरु पर्वत पर बैठे हुए ब्रम्हाजी के पास जाकर देवताओं ने उनसे अविनाशी तत्व बताने का अनुरोध किया, शिवजी की माया से मोहित ब्रह्माजी उस तत्व को न जानते हुए भी इस प्रकार कहने लगे - मैं ही इस संसार को उत्पन्न करने वाला स्वयंभू, अजन्मा, एक मात्र ईश्वर , अनादी भक्ति, ब्रह्म घोर निरंजन आत्मा हूँ| {Bolo Ji Radhey Radhey} मैं ही प्रवृति उर निवृति का मूलाधार , सर्वलीन पूर्ण ब्रह्म हूँ | ब्रह्मा जी ऐसा की पर मुनि मंडली में विद्यमान विष्णु जी ने उन्हें समझाते हुए कहा की मेरी आज्ञा से तो तुम सृष्टी के रचियता बने हो, मेरा अनादर करके तुम अपने प्रभुत्व की बात कैसे कर रहे हो ? इस प्रकार ब्रह्मा और विष्णु अपना-अपना प्रभुत्व स्थापित करने लगे और अपने पक्ष के समर्थन में शास्त्र वाक्य उद्घृत करने लगे| अंततः वेदों से पूछने का निर्णय हुआ तो स्वरुप धारण करके आये चारों वेदों ने क्रमशः अपना मत६ इस प्रकार प्रकट किया - ऋग्वेद- जिसके भीतर समस्त भूत निहित हैं तथा जिससे सब कुछ प्रवत्त होता है और जिसे परमात्व कहा जाता है, वह एक रूद्र रूप ही है | यजुर्वेद- जिसके द्वारा हम वेद भी प्रमाणित होते हैं तथा जो ईश्वर के संपूर्ण यज्ञों तथा योगों से भजन किया जाता है, सबका दृष्टा वह एक शिव ही हैं| सामवेद- जो समस्त संसारी जनों को भरमाता है, जिसे योगी जन ढूँढ़ते हैं, और जिसकी भांति से सारा संसार प्रकाशित होता है, वे एक त्र्यम्बक शिवजी ही हैं | अथर्ववेद- जिसकी भक्ति से साक्षात्कार होता है और जो सब या सुख - दुःख अतीत अनादी ब्रम्ह हैं, वे केवल एक शंकर जी ही हैं| विष्णु ने वेदों के इस कथन को प्रताप बताते हुए नित्य शिवा से रमण करने वाले, दिगंबर पीतवर्ण धूलि धूसरित प्रेम नाथ, कुवेटा धारी, सर्वा वेष्टित, वृपन वाही, निःसंग,शिवजी को पर ब्रम्ह मानने से इनकार कर दिया| ब्रम्हा-विष्णु विवाद को सुनकर ओंकार ने शिवजी की ज्योति, नित्य और सनातन परब्रम्ह बताया परन्तु फिर भी शिव माया से मोहित ब्रम्हा विष्णु की बुद्धि नहीं बदली | उस समय उन दोनों के मध्य आदि अंत रहित एक ऐसी विशाल ज्योति प्रकट हुई की उससे ब्रम्हा का पंचम सिर जलने लगा| इतने में त्रिशूलधारी नील-लोहित शिव वहां प्रकट हुए तो अज्ञानतावश ब्रम्हा उन्हें अपना पुत्र समझकर अपनी शरण में आने को कहने लगे| ब्रम्हा की संपूर्ण बातें सुनकर शिवजी अत्यंत क्रुद्ध हुए और उन्होंने तत्काल भैरव को प्रकट कर उससे ब्रम्हा पर शासन करने का आदेश दिया| आज्ञा का पालन करते हुए भैरव ने अपनी बायीं ऊँगली के नखाग्र से ब्रम्हाजी का पंचम सिर काट डाला| भयभीत ब्रम्हा शत रुद्री का पाठ करते हुए शिवजी के शरण हुए|ब्रम्हा और विष्णु दोनों को सत्य की प्रतीति हो गयी और वे दोनों शिवजी की महिमा का गान करने लगे| यह देखकर शिवजी शांत हुए और उन दोनों को अभयदान दिया| इसके उपरान्त शिवजी ने उसके भीषण होने के कारण भैरव और काल को भी भयभीत करने वाला होने के कारण काल भैरव तथा भक्तों के पापों को तत्काल नष्ट करने वाला होने के कारण पाप भक्षक नाम देकर उसे काशीपुरी का अधिपति बना दिया | फिर कहा की भैरव तुम इन ब्रम्हा विष्णु को मानते हुए ब्रम्हा के कपाल को धारण करके इसी के आश्रय से भिक्षा वृति करते हुए वाराणसी में चले जाओ | वहां उस नगरी के प्रभाव से तुम ब्रम्ह हत्या के पाप से मुक्त हो जाओगे | शिवजी की आज्ञा से भैरव जी हाथ में कपाल लेकर ज्योंही काशी की ओर चले, ब्रम्ह हत्या उनके पीछे पीछे हो चली| विष्णु जी ने उनकी स्तुति करते हुए उनसे अपने को उनकी माया से मोहित न होने का वरदान माँगा | विष्णु जी ने ब्रम्ह हत्या के भैरव जी के पीछा करने की माया पूछना चाही तो ब्रम्ह हत्या ने बताया की वह तो अपने आप को पवित्र और मुक्त होने के लिए भैरव का अनुसरण कर रही है | भैरव जी ज्यों ही काशी पहुंचे त्यों ही उनके हाथ से चिमटा और कपाल छूटकर पृथ्वी पर गिर गया और तब से उस स्थान का नाम कपालमोचन तीर्थ पड़ गया | इस तीर्थ मैं जाकर सविधि पिंडदान और देव-पितृ-तर्पण करने से मनुष्य ब्रम्ह हत्या के पाप से निवृत हो जाता है.. By N S Yadav ... ©N S Yadav GoldMine #Dhanteras (शिव पुराण):- एक बार सुमेरु पर्वत पर बैठे हुए ब्रम्हाजी के पास जाकर देवताओं ने उनसे अविनाशी तत्व बताने का अनुरोध किया, शिवजी की म