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Ansh Rajora
ढूंढते थे जिसको बाहर वो ही अंदर मिल गया क्यों हो ख़्वाहिश दरिया की फिर जब समंदर मिल गया जी में आया जीत लूँ इस सारी दुनिया को ही अब ख़ाक ओढ़े अगले पल ही इक सिकंदर मिल गया मुझको अपना कहते थे वो देखो कितनी शान से और अपनी पीठ में ही फिर वो ख़ंजर मिल गया उनके हाथों में कलम देखी तो मानो यूँ लगा कहती हो बन्दूक मुझको एक बन्दर मिल गया मेरे वालिद से मिला जो उसने बस इतना कहा बादशाहों के जहाँ में इक कलन्दर मिल गया #कलन्दर - सूफी,संत #fakeera_series #ghazalgo_fakeera #yqbaba #yqdidi #ghazal
Juhi Grover
इस ख़ामोशी का कारण क्या समझूँ, जिस ख़ामोशी में भी तूफान का बवंडर है। जीते जागते शमशान बने फिरते हो, ज़िन्दगी भी बन चुकी अब एक समन्दर है। बहुत ज़िन्दगी के तजुर्बे तुम कर चुके, मग़र न खत्म होने वाला शोर तुम्हारे अन्दर है। अन्दर के शोर को खत्म करोगे कैंसे, तुम पे कब्ज़ा जमाने वाला इतना धुरन्धर है। कैंसे बचोगे जब तक नहीं जानोगे, भीतर सब के मन में हमेशा एक कलन्दर है। ख़ामोश शोर तुम शान्त कर पाओगे तभी, जब जानोगे तुम्हारा प्रीतम रूह के अन्दर है। यहीं तो तुम जानना नहीं चाह रहे, आैर खोजते फिर रहे बाहर,अन्दर जो जन्तर मन्तर है। #बवंडर #कलन्दर = दरवेश #प्रीतम = भगवान् #जन्तरमन्तर= जादू-टोना #yqdidi #yqhindi #yqquotes #bestyqhindiquotes
anamika
Ashraf Fani【असर】
घोंघा एक सन्त फ़कीरा अपनी झोली अपना घर लिये फिरता है दर-दर जहाँ जो मिला खाया सोया अपने ही घर में वो खोया पीठ पे लादे गठरी जैसा अपना दर अपना घर मस्त मौला मस्त कलन्दर भटके तन्हा इधर उधर ©Ashraf Fani【असर】 घोंघा एक सन्त फ़कीरा अपनी झोली अपना घर लिये फिरता है दर-दर जहाँ जो मिला खाया सोया अपने ही घर में वो खोया पीठ पे लादे गठरी जैसा अपना दर अपना
Jai Gupta
बहर/वज़्न - २१२२-२१२२-२१२२-२१२ इश्क़ की गलियों में आशिक़ सब मुक़र्रर हो गए पा लिया जिसने भी अपना वो मुज़फ़्फ़र हो गए।।१ चोट ऐसी खायी है हमने भी इस दिल पर मियाँ दर्द के महफ़िल में हम फिर से सुख़न वर हो गए।।२ अश्क़ जो आँखों से निकले तकिए से पूछो ज़रा आंसुओं में वो लिपटकर के समंदर हो गए।।३ उन अमीरों की अमीरी को बयाँ क्या ही करूँ मुफ़लिसों पर जो सितम करके तवंगर हो गए।।४ हिज़्र में पल पल कुछ ऐसे तड़पे हैं आशिक़ सभी तीरगी ए शब में मानो सब बवंडर हो गए।।५ ये ख़लिश जो पड़ गयी है दिल में उसके नाम की ख़ाक में यादें दफ़न कर हम कलंदर हो गए।।६ ग़ज़ल आप सभी की नज़्र में मुक़र्रर - अवश्य, यक़ीनी, ज़रूर, निश्चित रूप से मुजफ़्फ़र - जीतने वाला व्यक्ति; विजेता; विजयी सुख़न वर - कवि, शायर मुफलिस
Pro ARUN KUMAR
💠💠💠 गुलाब ख़्वाब दवा ज़हर जाम क्या-क्या है मैं आ गया हूँ बता इन्तज़ाम क्या-क्या है फक़ीर शेख कलन्दर इमाम क्या-क्या है तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या है अमीर-ए-शहर के कुछ कारोबार याद आए मैँ रात सोच रहा था हराम क्या-क्या है 💠💠💠 ©Arun Morya 💠💠💠 गुलाब ख़्वाब दवा ज़हर जाम क्या-क्या है मैं आ गया हूँ बता इन्तज़ाम क्या-क्या है फक़ीर शेख कलन्दर इमाम क्या-क्या है तुझे पता नहीं तेरा ग
Dil galti kr baitha h
💠💠💠 गुलाब ख़्वाब दवा ज़हर जाम क्या-क्या है मैं आ गया हूँ बता इन्तज़ाम क्या-क्या है फक़ीर शेख कलन्दर इमाम क्या-क्या है तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या है अमीर-ए-शहर के कुछ कारोबार याद आए मैँ रात सोच रहा था हराम क्या-क्या है 💠💠💠 ©Dil galti kr baitha h #forbiddenlove 💠💠💠 गुलाब ख़्वाब दवा ज़हर जाम क्या-क्या है मैं आ गया हूँ बता इन्तज़ाम क्या-क्या है फक़ीर शेख कलन्दर इमाम क्या-क्या है तुझे
Rohit Thapliyal (Badhai Ho Chutti Ki प्यारी मुक्की 👊😇की 🙏)
सवाल- ख़ुशियों का ठिकाना कहाँ है? जवाब- ख़ुशियों का ठिकाना छुट्टी में है! और छुट्टी हमारे अंदर है हम सब छुट्टी के मस्त-कलन्दर हैं, ये समझ लो कि- कोई छुट्टी की बन्दरिया है तो कोई छुट्टी का बंदर है... 🐒🐵❤💎👂🤛🔔😭😠😡😁😂 @बधाई हो छुट्टी की प्यारी मुक्की👊😇की🙏 #Happiness #BadhaiHoChuttiKi सवाल- ख़ुशियों का ठिकाना कहाँ है? जवाब- ख़ुशियों का ठिकाना छुट्टी में है! और छुट्टी हमारे अंदर है हम सब छुट्टी क
तुषार"आदित्य"
कुछ वक्त पहले मिली थी एक लड़की चुलबुली लगती थी वो जैसे गुलाब की पंखुड़ी उसकी आँखों की गहराई जैसे कोई समंदर हो बातें उसकी ऐसी थी जैसे कि मस्त कलन्दर हो होंठो में उसके मुस्कान के रंग की लाली थी आंखों में काजल था और कानों में शायद बाली थी जब पहली बार उसकी आवाज़ आई लगा किसी ने धुन मीठी सी सुनाई हालांकि अरसा गुज़र गया इस बात को पर मैं भूल नही पाऊंगा उस पहली मुलाकात को कुछ वक्त पहले मिली थी एक लड़की चुलबुली लगती थी वो जैसे गुलाब की पंखुड़ी उसकी आँखों की गहराई जैसे कोई समंदर हो बातें उसकी ऐसी थी जैसे कि मस्त क
Mohammad Arif (WordsOfArif)
बेवक्त यादों का अब समन्दर देखा नहीं जाता बिला वज़ह किसी का मुकद्दर देखा नहीं जाता गिला शिकवा अगर है हमसे तो आकर कहें बिना मतलब वक्त का सिकन्दर देखा नहीं जाता अपनी रहनुमाई पर उनको गुरुर बहुत ज्यादा है हमें ऐसे यहां बिल्कुल कलन्दर देखा नहीं जाता जितना जोर जुल्म कर सकते हो कर लो तुम हमें अब नफ़रत का सित्मगर देखा नहीं जाता बात अब दूर तलक जाएगी तुम्हारा गुरुर टुटेगा किसके भरोसे हो तुम्हारा गुरुर देखा नहीं जाता शर्तें सारी मान लो तो ही अब अच्छा है आरिफ कड़कती ठंड में सड़कों पर जाकर देखा नहीं जाता ©Mohammad Arif (WordsOfArif) बेवक्त यादों का अब समन्दर देखा नहीं जाता बिला वज़ह किसी का मुकद्दर देखा नहीं जाता गिला शिकवा अगर है हमसे तो आकर कहें बिना मतलब वक्त का सिकन