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Mo k sh K an

जो तुमने कहा
मैंने सुना और समझा 

तुम्हारी बात सही है
सोलह आने सही 
ज़िन्दगी ना जी सके तो ज़िंदा ही क्या रहे 

मगर,मैं गलत भी नहीं 
कि जब पैर ही सफर से आशना नही 
तो मंज़िलें की आज़माइश क्यों हो 

तो चलो यूँ करते हैं
कि तुम मेरा पता बन जाओ 
मैं तुम्हारा सफ़र
और निकल चलते हैं
दोनों एक नदी बन कर
उफ़क़ के पार 
आफ़ताब से बातें करने 
.....
मुझे मालूम है
कि सही गलत की ना जाने कितनी दहलीजें है
जो सोच पर हावी हो जाती हैं 
और कभी जवाबों पर सवाल उठाती हैं
कभी फैसलों पर उँगलियाँ
जो कभी सलीब बन जाती हैं 
तो कभी बेड़ियाँ 

रोज़ों के बाद ही ईद मुक़म्मल होती है 
जो तुम को कुबूल हो
तो मैं फिर मोमिन बन जाऊँ 

कुछ शाइस्ता बातें @ एक सवाल मेरा , एक जवाब तेरा

©Mo k sh K an #शाइस्ता 
#Shaishta 
#mokshkan

Mo k sh K an

तुम और मैं
दो छोर हैं
शायद 
जो जुड़ भी नहीं सकते 
और मुड़ भी नहीं सकते 
वक़्त की तरह 

तुम और मैं 
नदिया के किनारे हैं
शायद 
जो बह भी नहीं सकते
और रह भी नहीं सकते 
जिनके दरम्यान बस रवानी है 

तुम और मैं
हाशियों मैं कैद हर्फ़ हैं 
शायद
जो लिखते भी नहीं है 
दिखते भी नहीं हैं 
बेबाक़ मगर बेमानी 

शाइस्ता @ तुम और मैं

©Mo k sh K an #Nojoto 
#Hindi 
#हिंदी 
#शाइस्ता

Mo k sh K an

उम्मीद का मुसाफ़िर
तन्हा चला 
पशेमाँ 

ना राह है मयस्सर
ना मंज़िल कोई मुक़म्मल 

मुसलसल 
चला जा रहा है 
मुसलसल 
चला जा रहा है 

क़ासिद के पैर से 
क़ाफ़िर के दैर से 

ना ख़ुदी मयस्सर
ना खुदा मुक़म्मल 

मुसलसल 
चला जा रहा है 
मुसलसल 
चला जा रहा है 

शाइस्ता @ मुसलसल

©Mo k sh K an #MereKhayaal 
#Nojoto 
#hindi
#shaista
#शाइस्ता

Mo k sh K an

चल दीवारों पर चढ़ कर हम तकलीदों को तोड़ें 
हैं बँधी हुई जो राह रात से पैर हम उनके मोड़ें 

हर चिलमन हम आज हटा कर अस्तर धूप करें 
नफ़्स में सायों के भी हम चल नूर का रंग भरें 
टूट गए जो पँख ताप से, परवाजों से जोड़ें
चल दीवारों पर चढ़ कर हम तकलीदों को तोड़ें 

नज़र नज़रिया छोड़ के अब चल हम पानी बन जाते हैं 
जो भी प्यास दरया है अब काम उसी के आते हैं 
आज हवा के ज़ानिब चल हम पतवारों को छोड़े 
हैं बँधी हुई जो राह रात से पैर हम उनके मोड़ें 

उफ़क़ से आगे जाकर हम,एक नया आसमाँ बुनते हैं 
चाहे कितने भी मुश्किल हो राह यही अब चुनते हैं
आज धारा का पैराहन हम किरदारों पर ओढ़ें
चल दीवारों पर चढ़ कर हम तकलीदों को तोड़ें 

चल दीवारों पर चढ़ कर हम तकलीदों को तोड़ें 
हैं बँधी हुई जो राह रात से पैर हम उनके मोड़ें 

उदासियाँ@ नया आसमान

©Mo k sh K an #उदासियाँ_the_journey 
#zen
#mikyupikyu 
#Nojoto 
#Hindi 
#शाइस्ता

Mo k sh K an

अब वो मेरी कौन सी राह है
जो तुम तक नहीं जाती 
वो कौन सी सदा है
जो तुम तक नहीं आती 

वो कौन सा मोड़ है मेरा
जो तुम तक नहीं मुड़ता
वो कौन सा सिरा है
जो तुम से नहीं जुड़ता 

वो कौन सा है काफिया
जो तुम्हें नहीं लिखाता
है रंग कौन सा वो 
जो तुम्हें नहीं दिखाता

वो कौन सी है हसरत
जो तुम्हें नहीं पाती 
अब वो मेरी कौन सी राह है
जो तुम तक नहीं जाती 

शाइस्ता@ तुम तक

©Mo k sh K an #mokshkan 
#skand
#शाइस्ता 
#Hindi 
#Nojoto 

#walkingalone

Mo k sh K an

मेरे दायरे आसमान से बंधे नहीं है 
ना उफ़क़ मेरी दहलीज का कोना है 

मेरे अंदर ब्रह्म भी है ब्रह्मांड भी 
और वक़्त भी मेरी साँसों के साथ चलता है 

मैं सृजन सुनता हूँ, देखता हूँ
मैं संहार महसूस करता हूँ 
किसी झरने की तरह 
जिसका अस्तित्व बस रवानी है 

और मैं भी गतिमान हूँ 
सहील की तरह 
जिसकी लहरों पर भूत भी भविष्य है 
और रेत पर भविष्य भी भूत 

मेरे दायरे आसमान से बंधे नहीं है 
ना उफ़क़ मेरी दहलीज का कोना है 

उदासियाँ @ मैं ।।।
शाइस्ता 9

©Mo k sh K an #उदासियाँ_the_journey 
#शाइस्ता 
#Zen 
#poem 
#Poetry 
#Hindi 
#Nojoto

Mo k sh K an

आज सहर तू रंगत बन कर रूह में मेरी भर जा 
पारस है तू, छू कर मुझको, संदल सोना कर जा 

मैं महकूं तेरी साँसों से और ख़ुश्बू कस्तूरी हो 
और चाँदनी तेरी मुझमें पूनम बन कर पूरी हो 
बन कर आज बाहर तू ऐसे साज गुलों से झर जा
पारस है तू, छू कर मुझको, संदल सोना कर जा 

मैं उजली सी धूप बनूँ और आईना क़ामिल हो 
सायों के भी सीने में भी नूर तेरा ही शामिल हो 
अंधेरे जुगनू से चमके, कर ऐसा आज असर जा 
आज सहर तू रंगत बन कर रूह में मेरी भर जा

धुन तेरी धूनी सी जलकर मुझे जलाकर राख़ करे
तू बन जाए दौलत मेरी और दुनिया को खाख़ करे 
और उजड़ जाए सब मुझमें, कर तू ऐसे घर जा 
पारस है तू, छू कर मुझको, संदल सोना कर जा 

राह मेरी बस तू ही हो अब, तेरे ज़ानिब चलना हो 
और सावली बन कर मुझको इरहम में भी जलना हो 
हाथ थाम कर मेरे संग संग गंगा सागर तर जा 
आज सहर तू रंगत बन कर रूह में मेरी भर जा 

उदासियाँ @ आज सहर तू रंगत बन कर 
शाइस्ता 8

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#शाइस्ता

Mo k sh K an

तेरे पैरों को छू कर के राह बनी है धूप 
सोच ना था कोई सफ़र का ऎसा भी है रूप 

मंज़िल का कोई पता नहीं,और लगता नहीं ज़रूरी है 
तू जो मेरे साथ चले तो फिर कैसी मज़बूरी है 
हर लम्हा है नूर से रौशन जैसे चाँद अनूप
तेरे पैरों को छू कर के राह बनी है धूप 

सरगम से बहते हैं लम्हे, इत्र जो तेरा तारी है 
आफ़ताब बनने की देखो आज गुलों की बारी है 
आसमान सा अंतहीन है तेरा ब्रह्म स्वरूप 
तेरे पैरों को छू कर के राह बनी है धूप 

तू जो मुझ में है ज़ाहिर तो अंधेरों से डरना क्या 
रात हो चाहे जितनी गहरी रुक कर मुझको करना क्या 
तू ज़ुम्बिश है क़ायनात की नियती निगम निरूप
तेरे पैरों को छू कर के राह बनी है धूप 

माया है पर साँसों पर सच बन कर के भारी है 
तुझमें मुझमें क्षणभिंगुर ये श्रिष्टी सिमटी सारी है 
एक लम्हे में अंतहीन सब होगा अगम अलूप
तेरे पैरों को छू कर के राह बनी है धूप

उदासियाँ@ राह बनी है धूप
शाइस्ता

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Mo k sh K an

सहर रूह में बस जाने दे बन कर तेरा नूर 
पैर थिरकने दे तितली से हो कर तुझ में चूर 

साँसों में तू ज़ाफ़रान हो और रगों में राग 
ऐसे मेरी प्यास बुझा मैं रह जाऊँ बस आग 
महके महके तेरी इबादत बन कर आज सुररू
सहर रूह में बस जाने दे बन कर तेरा नूर 

सलत साठ हो, इरहम ऐसी, मुझ में तू भर दे 
और हरम के चारों चक्कर मुझ को तू कर दे 
तेरी कीरत में रम जाऊँ ऎसे मेरे हुज़ूर
सहर रूह में बस जाने दे बन कर तेरा नूर 

तू मुझमें ऐसे हो ज़ाहिर अक़्स आइना मिल जाए 
गहरी उतरे तेरी हक़ीक़त,सपनों में भी सील जाए
तू बन जाए रीत मेरी, तू मेरा दस्तूर
सहर रूह में बस जाने दे बन कर तेरा नूर 

हाथों पर तू रहे दुआ सा,होंठों पर शुक्राना हो 
तुझ में ऐसे रोज़ रोज़ का मुझ में आना जाना हो 
तकदीरों मेरी हो वही रज़ा अब जो तुझको मंज़ूर
सहर रूह में बस जाने दे बन कर तेरा नूर

©Mo k sh K an उदासियाँ
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Mo k sh K an

चल आज तराशें नई सहर ये मिल कर अपने हाथों से 
खाख़ बदलना है कुछ भी यूँ, कोरी कोरी बातों से 

नई दिशा चल मिल कर ढूँढें, अपने अंदर जो जाती है 
और आईने की आँखों से , ख़ुद से आप मिलती है 
कब तक तोलेंगे हम खुद को कागज़ की सौगातों से
खाख़ बदलना है कुछ भी यूँ, कोरी कोरी बातों से 

चले चला चला चाहे जितना सच पैरों को काटे 
थमे नहीं अब, रुके नहीं हम, अब ज्वार मिले या भाटे
कभी क्या सावन रुक पाया है रंग बिरंगे छातों से 
खाख़ बदलना है कुछ भी यूँ, कोरी कोरी बातों से 

नई राह जो रात के ज़ानिब रूह से जा कर मिलती है 
अंधेरों को जुगनू कर जो नूर सुबह का सिलती है
पश्म रोशनी की काते हम गहरी काली रातों से
खाख़ बदलना है कुछ भी यूँ, कोरी कोरी बातों से 

नया सफ़र एक नया सफीना,पार उफ़क़ के जाना है 
नई सोच से ,नए इल्म से ,नया सवेरा लाना है 
कहाँ मिला है ख़ुदा किसी को तकलीदों के खातों से 
खाख़ बदलना है कुछ भी यूँ, कोरी कोरी बातों से 

उदासियाँ @ नया सफ़र है नया सफीना 
शाइस्ता 10

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