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Sumit Kumar
"आज"भगवान का दिया हुआ एक उपहार है, इसलिए इसे"प्रेजेंट" कहते है.. ©Sumit Kumar प्रेजेंट..
Viaan.ki.poetry
उसूलो का पक्का था मैं शायद तभी फ्यूचर के कुछ अच्छे लोग प्रेजेंट में मेरे साथ खड़े है विपिन वर्मा #तभी प्रेजेंट अच्छा है मेरA
DILEEP RAJ AHIRWAR
The tension of the future never allowed the present to live फ्यूचर की टेंशन ने प्रेजेंट को कभी जीने ही नही दिया ©DILEEP RAJ AHIRWAR #lightpole फ्यूचर की टेंशन ने प्रेजेंट को कभी जीने ही नही दिया
#CTK -Funny 0r Die
🙋🙋🙋प्रेजेंट मैम 🙄😂😂 JYOTI AWASTHI (Jiya) 🌸 【#CTK #FoD】#SARCASM #JOKE #COMEDY #PEN #PAIN #HURT #love #sad #LAUGHTER #LAUGH #FUN #FUNNY #pain
yogesh atmaram ambawale
खडू आणि फळ्या सोबत आता डिजिटल बोर्ड आले. काळानुसार बदल घडतो म्हणून सर्व बदलत गेले. शिक्षक हे एकच नाव आता त्या नावात ही बदल झाले. "मास्तर" होते जे पाहिले त्यांचे नंतर "गुरुजी" झाले, गुरुजींचे मग "सर" हे नामांतर झाले. "बाई" होत्या पहिले मग "मॅडम" झाल्या मॅडम जुनाट वाटते म्हणून आता "मिस" झाल्या. "हजर" बोलायचे पहिले मग "यस सर" झाले यस सर पण आता जुने होऊन त्याचे "प्रेजेंट" झाले शाळेतील बदल.. #yqmarathi #yqtaai #बदल #शाळेतील_आठवणी #collabwithyourquote #मराठीलेखणी #collabratingwithyourquoteandmine Pic credit : google
Tera Azam
ट्रैफिक की वजह से एक दिन मेरा रूट डिफरेंट हो गया,, एक हसीना को देख कर दिल को करंट लग गया,, और फ़िर उधर जाम लगा और मेरा फ़िर उधर मूवमेंट हो गया,, और इत्तेफ़ाक़न उसकी नज़रों से मेरी नज़रों का एक्सीडेंट हो गया,, उसके बाद से मेरा उधर से गुज़रना परमानेंट हो गया,, घर के काम की वजह से मैं जाने में अब्सेंट हो गया,, मगर उसका ख़याल हमेशा के लिए प्रेजेंट हो गया,, फिर बाद में जो हुआ वो एक्सलेन्ट हो गया,, उसके मोहल्ले में मेरा एक इंफॉर्मेंट हो गया,, जिस से मेरे पास उसकी fb इंस्टा का कॉन्टेंट हो गया,, और अबतक जो हुआ मेरी मोहब्बत का बेसमेंट हो गया,, फ़िर धीरे से उस से मेरा अटैचमेंट हो गया,, रिक्वेस्ट एक्सेप्ट हुई और इंटरनेट मेरी मोहब्बत की बिल्डिंग का सीमेंट हो गया,, Fb इंस्टा के बाद वट्सप का किचन औऱ कॉल का हॉल बना और मेरी मोहब्बत की बिल्डिंग में खूबसूरत पेंट हो गया,, और फ़िर मोहब्बत में उधर भी इज़ाफ़ा हुआ औऱ हमारा रिश्ता परमानेंट हो गया तेरा आज़म✒ #MeraShehar ट्रैफिक की वजह से एक दिन मेरा रूट डिफरेंट हो गया,, एक हसीना को देख कर दिल को करंट लग गया,, और फ़िर उधर जाम लगा और मेरा फ़िर उधर मू
JALAJ KUMAR RATHOUR
उलझन इस बात की है कि पता नहीं जीवन के किस मोड़ पर हम फिर मिलेंगे। शायद स्कूल के उस नीम के पेड़ के नीचे या उस चौराहे पर जहां तुम्हारा इंतजार करता सोलह साल का मैं, बैठा रहता था।मेरी हर उदासी को हंसी में बदलने वाली तुम आज कल मेरी आंखों में नमी का कारण बनती हो।जैसे इंद्रधनुष आसमान को खूबसूरत बनाता है वैसे ही मुझे तुम्हारा साथ खूबसूरत नजर आता था।अब जब भी घर आता हूं तो तुमसे मुलाकात की ऐसी तड़प होती है जैसी तड़प छुट्टियों में नानी के घर से आने के बाद ,स्कूल में जाने के लिए किसी बच्चे को होती है।मुझे आज भी तुम्हारी जरूरत है जैसे आसमानी झूले पर बैठे किसी शक्श को होती है किसी का हाथ थामने की। मैं बचपन में जब भी अंग्रेजी स्कूल के बच्चों को देखता था तो उनकी अंग्रेजी से बहुत प्रभावित होता था और मन में एक प्रकार की घृणा भी होती थी।क्युकी उनकी अंग्रेजी की दो लाइन हमारी हिंदी के याद किए कई श्लोकों से ज्यादा तारीफें बटोर लेती थीं।पर जब तुम्हे पहली बार देखा था तो अंग्रेजी से मुझे पहली बार प्रेम हुआ था और शायद तुमसे भी।फ्यूचर टेंस के सहारे तुम्हारे संग मैं अपना भविष्य देखने लगा था।इन डायरेक्ट स्पीच के सहारे मैने कई बार बताना चाहा था कि तुम मेरी पोएम रूपी जीवन का सेंट्रल आइडिया थीं।जैसे हर लेखक और कवि का उसके द्वारा कही गई पंक्तियों से एक आशय होता है वैसे मेरी भी हर बात का एक आशय होता था। जिसमें तुम्हारे संग जीवन बिताने का मेरा एक निश्चय रूपी मतलब छिपा था। ...#जलज कुमार ©JALAJ KUMAR RATHOUR पता नहीं जीवन के किस मोड़ पर हम फिर मिलेंगे। शायद स्कूल के उस नीम के पेड़ के नीचे या उस चौराहे पर जहां तुम्हारा इंतजार करता सोलह साल का मैं,
JALAJ KUMAR RATHOUR
पता नहीं जीवन के किस मोड़ पर हम फिर मिलेंगे। शायद स्कूल के उस नीम के पेड़ के नीचे या उस चौराहे पर जहां तुम्हारा इंतजार करता सोलह साल का मैं, बैठा रहता था।मेरी हर उदासी को हंसी में बदलने वाली तुम आज कल मेरी आंखों में नमी का कारण बनती हो।जैसे इंद्रधनुष आसमान को खूबसूरत बनाता है वैसे ही मुझे तुम्हारा साथ खूबसूरत नजर आता था।अब जब भी घर आता हूं तो तुमसे मुलाकात की ऐसी तड़प होती है जैसी तड़प छुट्टियों में नानी के घर से आने के बाद ,स्कूल में जाने के लिए किसी बच्चे को होती है।मुझे आज भी तुम्हारी जरूरत है जैसे आसमानी झूले पर बैठे किसी शक्श को होती है किसी का हाथ थामने की। मैं बचपन में जब भी अंग्रेजी स्कूल के बच्चों को देखता था तो उनकी अंग्रेजी से बहुत प्रभावित होता था और मन में एक प्रकार की घृणा भी होती थी।क्युकी उनकी अंग्रेजी की दो लाइन हमारी हिंदी के याद किए कई श्लोकों से ज्यादा तारीफें बटोर लेती थीं।पर जब तुम्हे पहली बार देखा था तो अंग्रेजी से मुझे पहली बार प्रेम हुआ था और शायद तुमसे भी।फ्यूचर टेंस के सहारे तुम्हारे संग मैं अपना भविष्य देखने लगा था।इन डायरेक्ट स्पीच के सहारे मैने कई बार बताना चाहा था कि तुम मेरी पोएम रूपी जीवन का सेंट्रल आइडिया थीं।जैसे हर लेखक और कवि का उसके द्वारा कही गई पंक्तियों से एक आशय होता है वैसे मेरी भी हर बात का एक आशय होता था। जिसमें तुम्हारे संग जीवन बिताने का मेरा एक निश्चय रूपी मतलब छिपा था। ...#जलज कुमार ©JALAJ KUMAR RATHOUR पता नहीं जीवन के किस मोड़ पर हम फिर मिलेंगे। शायद स्कूल के उस नीम के पेड़ के नीचे या उस चौराहे पर जहां तुम्हारा इंतजार करता सोलह साल का मैं,