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Karan Meda
कि मिले थे बचपन में एक स्कूल की क्लास में फिर स्कूल खत्म हुए बिछड़े थे हम 10वीं की क्लास में कुदरत की मेहरबानी हम फिर से मिले लवली ग्रुप में पर जाने क्यों अब फिर से ग्रुप से बिछड़ने लगे क्या रे ऊपर वाले आज लोग ग्रुप में बात भी नहीं करते ©Karan Meda मेरी दिल किं बात #brothersday
RRB_12
*तकदीर के खेल से* *नाराज नहीं होते* *जिंदगी में कभी* *उदास नहीं होते* *हाथों किं लक़ीरों पे*
Poet Shivam Singh Sisodiya
#OpenPoetry जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम् 🚩 हस्तस्य भूषणं दानं सत्यं कण्ठस्य भूषणम् । श्रोत्रस्य भूषणं शास्त्रं भूषणैः किं प्रयोजनम् ॥ हाथ का भूषण दान है, कण्ठ का सत्य, और कान का भूषण
vishnu prabhakar singh
वृक्ष का आरब्ध पर्याप्त दूर गगन तक आते जाते वायुमण्डल दूषक निस्पंदन हरियाली के स्वभाव में समृद्धि मानते अबोला वृक्ष सूखता है रूखी आश में क्या तुम दोगे नया वृक्ष हरित आवरण आते जाते वायुमण्डल वनस्पति शुद्ध उनका है प्रभुत्व प्रथम! पत्र का पत्रिका वृक्ष का आरब्ध पर्याप्त दूर गगन तक आते जाते वायुमण्डल दूषक निस्पंदन हरियाली के स्वभाव में समृद्धि मानते
Kunal Thakur
जब भी कोई आपके इज्जत और प्रतिष्ठा पर चोट करें आप खामोश रहकर उसें बार - बार इस बात को दोहरानें का मौका कभी ना दें कदापि यें आपके जिंदगी किं सबसें बड़ी भूल हो सकती हैं Dil Se.........Written By Kunal........ ©Kunal Thakur जब भी कोई आपके इज्जत और प्रतिष्ठा पर चोट करें आप खामोश रहकर उसें बार - बार इस बात को दोहरानें का मौका कभी ना दें कदापि यें आपके जिंदगी किं
Harshita Dawar
Written by Harshita Dawar ✍️✍️ #Jazzbaat# हारारात सी थी दिल में अपनी अदुरी सी हसरतो को गिनना शुरू कर दिया। महज भीड़ में दम घुटना लगा तो। मैंने फिर से उड़ना शुरू कर दिया। दर्द यादे आदुरि खवाइए सब साथ बस फिर किसी किं कमी है। #yaadein #challengecompleted #chahat #rishte #yqdidi Written by Harshita Dawar ✍️✍️ #Jazzbaat# हारारात सी थी दिल में अपनी अदुरी सी हसरतो क
neeraj
पन्ने पर ग़ज़ल तो संवर जाएगी मगर उसमें तेरी कमी नज़र आएगी । मना लूँ केसे अब में खुदा को दोबारा आखिर मेरी शख्यियत बिखर जाएगी। जानकर नहीं गिनता
Anchal Tiwari
ईश्वरः पाषाणे लभ्यते किन्तु मानवः मनुष्ये न लभ्यते। वयं ईश्वरं वदामः यत् भवता निर्मिते जगति भवतः किमपि किमर्थं न प्राप्नुमः।परन्तु किं वयं स्वयमेव तेषां सदृशाः भवितुम् अर्हति। पत्थर में ईश्वर मिल सकता है लेकिन मनुष्य में मनुष्य नहीं मिलता । हम ईश्वर से कहते हैं कि आप की बनाई इस दुनिया मे कोई आप सा क्यों नही मिलता, परंतु क्या हम खुद उनके जैसा बन पाते हैं। हर हर महादेव ❤️ ©Anchal Tiwari ईश्वरः पाषाणे लभ्यते किन्तु मानवः मनुष्ये न लभ्यते। वयं ईश्वरं वदामः यत् भवता निर्मिते जगति भवतः किमपि किमर्थं न प्राप्नुमः।परन्तु किं वयं स
Divyanshu Pathak
प्रारब्ध कर्म से ही मैंने अपना ये जीवन पाया है। आरब्ध मर्म कर्मों का मैंने सच सबको दिखलाया है। सरिता में ज्यों कमल खिला मुख सीपी के ज्यों रत्न मिला जिस आँगन की चंदन मिट्टी तन लोट पोट हो आया है। बस मेरी है पहचान यही- पुण्यात्म भाव सब पाया है। 💐💐💐 कैप्शन--- देखें प्रारब्ध कर्म से ही मैंने अपना ये जीवन पाया है। आरब्ध मर्म कर्मों का मैंने सच सबको दिखलाया है। सरिता में ज्यों कमल खिला मुख सीपी के ज्यों रत