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Parasram Arora
खून को पानी का पर्यायवाची मत मान. लेना अनुभन कितना भी कटु क्यों न हो वो.कभी कहानी नही बन सकताहै उस बसती मे सच बोलने का रिवाज नही है यहां कोई भी आदमी सच.को झूठ बना कर पेश कर सकता है ताउम्र अपना वक़्त दुसरो की भलाई मे खर्च करता रहा वो ऐसा आदमी कुछ पल का वक़्त भी अपने लिये निकाल नही सकता है ©Parasram Arora पर्यायवाची......
Pooja Udeshi
मौत का भय ऐसा छाया की हाथ मिलाने से भी डर लगता है इंसान को मरने से डर लगता है किसी को मार कर खाने से डर लगता तो ये नौबत ना आती दिल मे प्यार रखो सब के लिए दिल तो सबका धड़कता है बिन बुलाये तो मौत भी नहीं आती जीओ और जीने दो ये बात सब को समझ नहीं आती मौत का भय
Sunil Kumar Maurya Bekhud
चंद्रमा ने सुना इंसान इंसान की आहट मन में होने लगी घबराहट करने लगा त्राहिमाम बचा लो घनश्याम रोक लो, आ चुका इंसान बसाएगा अपनी बस्तियां तोड़ेगा मेरी अस्थियां, करके हौसले बुलंद मचाएगा आतंक हर तरफ बनेंगे, गगनचुंबी मकान निकल जाएगी प्रदूषण से जान बदल जाएगा मेरा स्वरूप बना देगे m मुझे इंसान अब कुरूप ! सुनील कुमार मौर्य बेखुद गोरखपुर ha ©Sunil Kumar Maurya Bekhud # चांद का भय
Parasram Arora
प्रलय आने से ठीक एक दिन पहले वाली रात मैं जगता रहा रात भर औऱ हर लम्हें को जीवंतता से जीता रहा "जागरण " की परिभाषा भी मैने उसी दिन समझी थी काश ये "जागरण " मेरी जिन्दगी में बहुत पहले आ जाता तो प्रलय का ये भय मुझे इतना न सता रहा होता प्रलय का भय.....
Pushpendra Pankaj
डर डर के कब तक जीना है कङवा घूँट कब तक पीना है होटों को कब से सिले है कह दे जो शिकवे गिले हैं अपनी अनदेखी सह रहा है मुख से उफ नहीं कह रहा है यह तो तेरी बुजदिली है यह विरासत मे ना मिली है तेरे अंदर की भय पीङा है तुझसे ही पैदा तुझमे पली है पुष्पेन्द्र "पंकज " ©Pushpendra Pankaj भय का भूत
Kamal bhansali
शीर्षक: भय का दरवाजा आज कुछ ऐसा नया नहीं, जिसकी चर्चा की जाये भय का दरवाजा खुला, अच्छा है, चुप ही रहा जाये कहने को स्वतंत्रता है, पर आम आदमी सहमा सा है बाते रोशनी की है, पर जलवा तो अंधकार का सा है क्या करेंगे जानकर, आखिर हमारा अधिकार क्या है सोये है, बस दिखाये सपनों के सच होने का इंतजार है जीवन को विश्वास न दे पाये, तभी मौत से भाग रहे है क्या कहें, कभी कभी लगता खुद को योंही खो रहे है कुछ तो गड़बड़ हो रही है, खून का रंग बदल रहा है अंदर से सब कुछ टूट रहा, घुटन से दम फूल रहा है आज हर आदमी हतास है, यही जीने की तस्वीर है अब किसे क्या कहे, हर आदमी तो यहाँ अब बीमार है कभी आग थी सीनें में, जो आजादी के लिए जलती ठंडी हुई मशाल, अब जलाने वाले हाथों को तरसती ✍️ कमल भंसाली ©Kamal bhansali भय का दरवाजा #togetherforever