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vijay

दृष्टान्त #nojotothought

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तारीफ चरित्र की होनी चाहिए चित्र की नही क्योंकि,
चित्र बनाने में कुछ दिन लग सकते हैं,
लेकिन चरित्र बनाने में जिंदगी भी लग जाती है। दृष्टान्त  #nojotothought

vijay

दृष्टान्त #nojotohindi

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जब तक भारत  की युवा पीढ़ी 
फिल्मो, महँगी मोबाइलों, ब्रांडेड कपड़ो
और दिखावे के पीछे पड़ी रहेगी,
तब तक भारत का विकास हो पाना
असंभव है। दृष्टान्त
#nojotohindi

vijay

दृष्टान्त #nojotohindi

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हो सकता है, कि आप 
किसी के प्रसंसक या फैन 
केवल इसलिए हों, क्योंकि
आप उसके या उसके काम के
बारे में अधिक न जानते हों। दृष्टान्त
#nojotohindi

vijay

दृष्टान्त #nojotohindi

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पाश्चात्य दर्शन: इन्द्रियों का भोग करना ही सुख कहलाता है।
भारतीय दर्शन: इन्द्रियों का भोग करनेवाला 
व्यक्ति सदा दुखो से घिरा होता है।
इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करके ही
सुख पाया जा सकता है। #NojotoQuote दृष्टान्त
#nojotohindi

vijay

दृष्टान्त #nojotohindi

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यदि आप ये मानते हैं, कि पाश्चात्यता को अपनाकर आप सुखी हो जाएंगे तो ये आपके वैचारिक मृत्यु का सबूत है। दृष्टान्त #nojotohindi

vijay

दृष्टान्त #nojotohindi

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हृदय की शुध्दता इंसान को शब्द की परख कराने में सहायक होता है। दृष्टान्त #nojotohindi

vijay

दृष्टान्त #nojotohindi

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अगर अपने ऊपर उछाला हुआ 
कीचड़ तुम खुद ही गौर से देखोगे तो लोग तुम्हारे कीचड़ के ऊपर उतना ही गौर करेंगे।

इसलिए कीचड़  होने का अंदेशा होने पर उसपर गौर नही बल्कि  खामोशी से उसे साफ करने की कोशिश करो। दृष्टान्त #nojotohindi

vijay

दृष्टान्त #nojotohindi

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भारत को समर्थ बनाने के लिए जरूरी है कि हम एक इंसान बनकर नही अपितु समस्त भारत बनकर जिए।
तन भारत 
मन भारत
जीवन का 
क्षण क्षण भारत।
-जै भारत- दृष्टान्त
#nojotohindi

Ansh Rajora

#object = #Manifested world #Subject = #our true self दृष्टा एवम् दृष्टान्त💐💐 #yqbaba #Asfar #the1 #Divine

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As far as i know 
we are 
lost in 
the objects
So blindly
That
We don't 
have time
To look at the subject💗 #Object = #manifested world
#Subject = #our true self
दृष्टा एवम् दृष्टान्त💐💐
#yqbaba #asfar #the1 #divine

N S Yadav GoldMine

#City {Bolo Ji Radhey Radhey} अध्याय 2 : सांख्ययोग श्लोका 22 वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न #पौराणिककथा

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{Bolo Ji Radhey Radhey}
अध्याय 2 : सांख्ययोग
श्लोका 22
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।
अर्थ :- मनुष्य जैसे पुराने कपड़ोंको छोड़कर दूसरे नये कपड़े धारण कर लेता है, ऐसे ही देही पुराने शरीरोंको छोड़कर दूसरे नये शरीरोंमें चला जाता है।

जीवन में महत्व :-  यह गीता में कई प्रसिद्ध श्लोकों में से एक है, जिसमें यह समझाया गया है कि कैसे आत्मा अपने शरीर को छोड़ देती है और अन्य शरीरों के साथ पहचान करके नई परिस्थितियों में नए अनुभव प्राप्त करती है। व्यासजी द्वारा प्रयुक्त यह दृष्टान्त बहुत जानी मानी है ।

भगवान अपने विचारों को विशद उपमाओं के माध्यम से समझाने की विधि अपनाते हैं। इस तरह की तुलना आम आदमी को विचार स्पष्ट करने में मदद करती है।

जैसे कोई जीवन की अलग अलग परिथितियों के लिए अलग अलग कपडे पहनता है, उसी प्रकार आत्मा एक शरीर को छोड़कर अन्य प्रकार के अनुभवों को प्राप्त करने के लिए दूसरे शरीर को धारण करती है। कोई भी नाइट गाउन पहनकर अपने काम पर नहीं जाता या ऑफिस के कपड़े पहनकर टेनिस नहीं खेलता। वे अवसर और स्थान के अनुकूल कपड़े पहनते हैं। यही हाल मौत या आत्मा का भी है।
यह समझना इतना सरल है कि केवल अर्जुन ही नहीं, कोई भी विद्यार्थी या गीता का श्रोता त्याग के विषय को स्पष्ट रूप से समझ सकता है।
अनुपयोगी कपड़े बदलना किसी के लिए भी मुश्किल या दर्दनाक नहीं होता है और खासकर जब किसी को पुराने कपड़े छोड़कर नए पहनने पड़ते हैं। इसी तरह, जब जीव को पता चलता है कि उनका वर्तमान शरीर उनके लिए किसी काम का नहीं है, तो वे पुराने शरीर को त्याग देते हैं। शरीर का यह "बूढ़ापन" या यों कहें कि शरीर की घटती उपयोगिता को केवल पहनने वाला ही निर्धारित कर सकता है।

इस श्लोक की आलोचना यह है कि इस संसार में बहुत से बच्चे और युवा मरते हैं जिनका शरीर जीर्ण-शीर्ण नहीं था। इस मामले में, "बूढ़ापन" का अर्थ वास्तविक बुढ़ापा नहीं है, लेकिन शरीर की कम उपयोगिता यानी | इन बच्चों और युवाओं के लिए, यदि शरीर अनुपयोगी हो जाता है, तो वह शरीर पुराना माना जाएगा। एक अमीर व्यक्ति हर साल अपना भवन या वाहन बदलना चाहता है और हर बार उसे खरीदने के लिए कोई न कोई मिल जाता है। उस धनी व्यक्ति की दृष्टि से वह भवन या वाहन पुराना या अनुपयोगी हो गया है, लेकिन ग्राहक की दृष्टि से वही मकान उतना ही उपयोगी है जितना नया। इसी तरह, शरीर अप्रचलित हो गया है या नहीं, यह केवल वही तय कर सकता है जो इसे धारण करता है।
यह श्लोक पुनर्जन्म के सिद्धांत को पुष्ट करता है।
(राव साहब एन. एस. यादव )
अर्जुन इस दृष्टान्त के माध्यम से समझते हैं कि मृत्यु उन्हें ही डराती है जो इसे नहीं जानते। लेकिन जो व्यक्ति मृत्यु के रहस्य और अर्थ को समझता है, उसे कोई दर्द या दुख नहीं होता है, क्योंकि कपड़े बदलने से शरीर को कोई दर्द नहीं होता है, और न ही हम हमेशा वस्त्र त्यागने की स्थिति में रहते हैं। इसी प्रकार विकास की दृष्टि से आत्मा भी शरीर त्याग कर नये अनुभवों की प्राप्ति के लिये उपयुक्त नये शरीर को धारण करती है। इसमें कोई दर्द नहीं है। यह वृद्धि और परिवर्तन जीव के लिए है न कि चेतना के रूप में आत्मा के लिए। आत्मा हमेशा परिपूर्ण होती है, उसे विकास की आवश्यकता नहीं होती।

©N S Yadav GoldMine #City {Bolo Ji Radhey Radhey}
अध्याय 2 : सांख्ययोग
श्लोका 22
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
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