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SOGVAAR

बर्बादी का अपनी सबब खुद ही बन गया।
मेरी तो गयी उम्र भला उसका क्या गया।
आलम भी तो ये है कि हिमाकत ‌ना करें हम।
और पूछते हैं मुझसे वो कि मेरा क्या गया।
.................... संदीप"सोगवार".......................
....................................................................

©Sandeep Tripathi ......... संदीप"सोगवार'..........
.......................................
सोगवार..... ग़म से भरा हुआ, बहुत दुखी
आलम...... दुनिया, जहां,हद,ज़

......... संदीप"सोगवार'.......... ....................................... सोगवार..... ग़म से भरा हुआ, बहुत दुखी आलम...... दुनिया, जहां,हद,ज़

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Vinod Mishra

"सही व्यक्ति से गलत प्रश्न पूंछना एक दुस्साहस होता है."
      @विनोद कुमार मिश्र प्रवक्ता अंग्रजी
           🙏🙏🙏🖊️🖊️🙏🙏🙏

"सही व्यक्ति से गलत प्रश्न पूंछना एक दुस्साहस होता है." @विनोद कुमार मिश्र प्रवक्ता अंग्रजी 🙏🙏🙏🖊️🖊️🙏🙏🙏 #विचार

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Anuradha T Gautam 6280

😭मुझे रुलाने का दुस्साहस 
             अब तुम्हारे बस का नहीं है 
                        मैंने तो अपने आंसुओं का भी

😭मुझे रुलाने का दुस्साहस अब तुम्हारे बस का नहीं है मैंने तो अपने आंसुओं का भी #शायरी #अनु

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Vimu

#देश की रक्षा में वीर शहीदों को समर्पित परम् आदरणीय श्री कुमार विश्वास जी की बहुत ही सुंदर कविता के कुछ अंश बोलने का दुस्साहस किया है। माफ क

#देश की रक्षा में वीर शहीदों को समर्पित परम् आदरणीय श्री कुमार विश्वास जी की बहुत ही सुंदर कविता के कुछ अंश बोलने का दुस्साहस किया है। माफ क

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Rimpi chaube

🔥रावण_दहन 🔥

ये आतिशबाजी नही,उत्सव है
उस शख्श की हार का,
जो ज्ञानी होकर अज्ञानता कर गया
अपने एक बुरे कर्म से, 
युगों युगों से लोगों के हृदय से उतर गया
सीख आज के युग को देने, 
एक दुस्साहसी युगों पूर्व ही मर गया!!

©Rimpi chaube #रावण_दहन  🔥
ये आतिशबाजी नही,उत्सव है
उस शख्श की हार का,
जो ज्ञानी होकर अज्ञानता कर गया
अपने एक बुरे कर्म से, 
युगों युगों से लोगों के हृदय

#रावण_दहन 🔥 ये आतिशबाजी नही,उत्सव है उस शख्श की हार का, जो ज्ञानी होकर अज्ञानता कर गया अपने एक बुरे कर्म से, युगों युगों से लोगों के हृदय #शायरी

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Ish Kumar King

धरती रहने योग्य बनाती,
दो हांथों से संसार चलाती।
पुरुष-प्रकृति का वास है,
कोमलता का एहसास है।
संतानों को योग्य बना दे,
ये वर्षो का उपवास है।।
आँचल के भीतर शीतलता है,
हृदय में इसकी निर्मलता है।
दुनिया कहती इसको अ-बला,
समझो इसको मात्र जुमला।
महिला सबला नारी है,
सौ पुरुषों पर भारी है।
 #माँ के लिए काव्य, रचना #माँ के लिए 
#माँ_का_प्यार जिसके आगे दुनिया है बेकार
मातृत्व को कुछ पंक्तियों को उतारने का दुस्साहस कर रहा हूँ, क्यो

#माँ के लिए काव्य, रचना #माँ के लिए #माँ_का_प्यार जिसके आगे दुनिया है बेकार मातृत्व को कुछ पंक्तियों को उतारने का दुस्साहस कर रहा हूँ, क्यो #Feminism #ममता #yqdidi #collabwithme #ममताकीछाँव

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writer.varsha

 नारी हूं मैं... कोई प्रेम करें मुझको जो तो अपना सर्वस्व लुटा उस पर मैं, यदि कोई दुस्साहस करें मुझे स्पर्श करने का तो उसकी हस्ती मिटा दूं मैं

नारी हूं मैं... कोई प्रेम करें मुझको जो तो अपना सर्वस्व लुटा उस पर मैं, यदि कोई दुस्साहस करें मुझे स्पर्श करने का तो उसकी हस्ती मिटा दूं मैं

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शब्दिता

अनुशीर्षक पढ़ें....... भारत जो कुछ भी आज है वह पूर्वजों के बलिदानों का एक सकारात्मक परिणाम है।
किंतु भारत के गद्दारों ने पूर्वजों के बलिदान को व्यर्थ
करने का जो दु

भारत जो कुछ भी आज है वह पूर्वजों के बलिदानों का एक सकारात्मक परिणाम है। किंतु भारत के गद्दारों ने पूर्वजों के बलिदान को व्यर्थ करने का जो दु

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अविनाश कुमार

धर्म जात से परे एक अलग मैं वर्ण हूँ 
कि इस कलयुग में, शायद मैं कर्ण हूँ

न पुत्र हूँ सूर्य का, न गुरु परशुराम हैं
कर्म है कर्ण से, तो शायद मैं कर्ण हूँ 

युद्ध है द्वंद है, सब खुद के ही संग है
जीत में भी हार है,ये कैसा मैं कर्ण हूँ 

दान मैं दूँ किसे, हर कोई है छल रहा
उठ रहा यही प्रश्न है, कैसे मैं कर्ण हूँ

कर्म है  ज्ञात मुझे, धर्म बस यही मेरा
अंजान हूँ अधर्म से शायद मैं कर्ण हूँ कर्ण का किरदार अपने आप में अनोखा है। शायद ही कोई हो जिसे कर्ण का किरदार पसंद न हो, कर्ण कौरवों की ओर से लड़ कर भी महान हो गए। ये कर्ण की दानव

कर्ण का किरदार अपने आप में अनोखा है। शायद ही कोई हो जिसे कर्ण का किरदार पसंद न हो, कर्ण कौरवों की ओर से लड़ कर भी महान हो गए। ये कर्ण की दानव #Hindi #yqbaba #धर्म #yqdidi #कलयुग #1909avinash

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Divyanshu Pathak

सूर्यमल्ल मिश्रण को भी,
लिखने में पीछे छोड़ा है। ♥️ आइए लिखते हैं #मुहावरेवालीरचना_96 

👉 क़लम तोड़ना मुहावरे का अर्थ – बहुत सुन्दर लिखना 

♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) 

♥️ दो ले

♥️ आइए लिखते हैं #मुहावरेवालीरचना_96 👉 क़लम तोड़ना मुहावरे का अर्थ – बहुत सुन्दर लिखना ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ दो ले #yqbaba #yqdidi #YourQuoteAndMine #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़

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अम्बुज बाजपेई"शिवम्"

जिस संस्कृति में नारी देवी है,
वहां पर उसकी चुनरी हटाई जाती है।
कितना गिर गया है इन्सान देखो,
रोटी की कीमत किसी की अस्मत लगाई जाती है। "जिस संस्कृति में नारी देवी है,
वहां पर उसकी चुनरी हटाई जाती है।
कितना गिर गया है इन्सान देखो,
रोटी की कीमत किसी की अस्मत लगाई जाती है।"
यह

"जिस संस्कृति में नारी देवी है, वहां पर उसकी चुनरी हटाई जाती है। कितना गिर गया है इन्सान देखो, रोटी की कीमत किसी की अस्मत लगाई जाती है।" यह

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मोहित मिश्रा "अचल"

कुछ कहना तो होगा 
सच की खातिर पाँव धरो 
कांटों पर रहना होगा 
कुछ कहना तो होगा......

प्रतिघात  मुल्क  पर छाया है 
उस आँचल का फूल अभी मुर्झाया है 
सन्ताप,विकल,स्वर ,गुंजन हर ओर कहीं 
सुन शांत ह्रदय आक्रोश से भर आया  है 

इस समर शेष में जलकर भी रहना तो होगा 
कुछ कहना तो होगा.......

पूरी रचना कैप्शन में पढ़े 👇 कुछ कहना तो होगा 
सच की खातिर पाँव धरो 
कांटों पर रहना होगा 
कुछ कहना तो होगा......

प्रतिघात  मुल्क  पर छाया है 
उस आँचल का फूल अभी मुर्झाय

कुछ कहना तो होगा सच की खातिर पाँव धरो कांटों पर रहना होगा कुछ कहना तो होगा...... प्रतिघात मुल्क पर छाया है उस आँचल का फूल अभी मुर्झाय

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Divyanshu Pathak

21 वीं सदी के इन 20 वर्षों में देश ने बड़े बदलाव देखे ।
धर्म और जाति के नाम पर देश खंड खंड हो रहा था।
देश के भीतर विषाक्त वातावरण फैल रहा था।
जनता में त्राहि-त्राहि मची हुई थी।
पड़ोसी देश मित्रता भूलकर शत्रु बनते जा रहे थे।
निर्णय लेने की बजाय गंभीर मुद्दों को टाला जा रहा था।
इसका कारण हमारे देश के पास कोई मजबूत नेता नहीं होना था।
जो थे उनकी नेतागिरी अपनी-अपनी पार्टी तक सिमटी हुई थी।
लालकृष्ण आडवाणी हो या सोनिया गांधी राष्ट्रपति हो या प्रधानमंत्री इन के आह्वान पर देशवासी किसी मुद्दे पर कोई पहल नहीं कर सकते थे। 🙏#goodevening 🙏
:
एक ओर देश आरक्षण की आग में झुलस रहा था तो वहीं दूसरी ओर नेताओं में मनमाना आचरण करने की होड़ लगी थी। भले ही उनके आचरण से मत

🙏goodevening 🙏 : एक ओर देश आरक्षण की आग में झुलस रहा था तो वहीं दूसरी ओर नेताओं में मनमाना आचरण करने की होड़ लगी थी। भले ही उनके आचरण से मत #पंछी #पाठक #हरे #21वींसदीकेयह20बरस

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Poetry with Avdhesh Kanojia

#jnu
 #jnu #सत्य  #कविता #poem #poetry #life 


#जेएनयू के बुद्धूजीवियों को समर्पित संदेश

जो बात बात पर गुंडागर्दी
तुम करने लग जाते हो।
क्या लगता

#JNU #सत्य #कविता #poem poetry life #जेएनयू के बुद्धूजीवियों को समर्पित संदेश जो बात बात पर गुंडागर्दी तुम करने लग जाते हो। क्या लगता #जेएनयू_कथित_छात्र

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संगीत कुमार

( धिक्कार है )

धिक्कार है उस मुल्क का जिसने आतंक  को जन्म दिया। 
लानत है उस कोख का जिसने तुझे पैदा किया।। 
कैसा नसीबज़ला ओ मुल्क जिसने तुझे पनाह दिया। 
रमजान जैसा पाक माह में भी तूने नापाक किया।। 
धिक्कार उस मुल्क का जिसने आतंक को जन्म दिया। 

क्यों अमनचैन न रहने देते, जग में दहशत फैलाते हो।
 आतंकी बन इस वसुधा पर अशांति फैलाते हो।। 
क्यों हंदवाड़ा आया था, क्यों ऐसा कुकृत्य किया?। 
तू धृष्ट बन पाँच सुरक्षाकर्मी का जान लिया।।
धिक्कार है उस मुल्क का जिसने आतंक जन्म दिया। 

क्यों आतंकि बनते हो, क्यों जहर फैलाते हो। 
क्या तेरा कोई मजहब नहीं, बच्चपन से यही सिखाया है।। 
तेरा कोई घर द्वार नहीं क्यों दहशत फैलाते हो। 
लानत है उस माँ को जिसने तुझे पाला-पोशा।। 
धिक्कार है उस मुल्क का जिसने आतंक  को जन्म दिया।।

अरे जिस दिन हम उतर जायेंगे सबक तुझे सिखा देंगे। 
एक मिनट  में तेरा पूरा मुल्क हम जला देंगे।। 
एक बाप का बेटा है तो आतंकी बन क्यों आते हो। 
चुनौती है इस सरहद की  एक चुटकी में  मसल देंगे।। 
धिक्कार है उस मुल्क का जिसने आतंक को जन्म दिया। 

भूखे प्यासे तुम मरते हो अकालग्रस्त है तेरा मुल्क। 
क्यों इतना इतराते हो किस चीज का है तुझे घमण्ड।। 
तू दुस्साहसी हैवान बना, क्यों ऐसा करतूत किया। 
कुछ तो शर्म करो अपनो का, क्यों अश्क बहाते हो।। 
धिक्कार है उस मुल्क का जिसने आतंक को जन्म दिया। 

       (संगीत कुमार /जबलपुर) 
   🖋️स्व-रचित कविता 🙏🙏 ( धिक्कार है )

धिक्कार है उस मुल्क का जिसने आतंक  को जन्म दिया। 
लानत है उस कोख का जिसने तुझे पैदा किया।। 
कैसा नसीबज़ला ओ मुल्क जिसने तुझे

( धिक्कार है ) धिक्कार है उस मुल्क का जिसने आतंक को जन्म दिया। लानत है उस कोख का जिसने तुझे पैदा किया।। कैसा नसीबज़ला ओ मुल्क जिसने तुझे

11 Love

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सुनील धबाई

मन मे उठता ज्वार हमेशा,
देश मेरा किस ओर चला
हैवानो ने हदे पार की,
केंडल से विरोध हुआ

रोज कहि इन घटनाओ को
अंजाम दे दिये जाते है
सुबह बेठ कर अखबारों में,
पढ़ कर हम फिर भूल जाते है

दरिंदगी की अंतिम सिमा,
लांघ रहे अपराधी है
हम केवल मूक दर्शक बनकर,
सहते जैसे परिपाटी है

मेरे मन मे हर पल चलता ,
न जाने कल किसकी बारी है
हैवानो के दुस्साहस की
बलि चढ़ रही क्यो नारी है ?

नैतिकता भी मेरे देश की
किन मुद्दों से पनप रही,
धर्म पूछते पीड़िता के
ना पूछे क्यो बिलख रही 

ट्विंकल हो या हो आशिफा, 
सब की यही कहानी है
खुद के खून को खून कहो तो
गैरो का क्या पानी है

में पूछू उन इंसानो से
क्या मानवता यही सिखाति है
अपराधी की करतूते भी
क्यो मजहब से जोड़ी जाती है

गूंज रही थी जो कल किलकारी ,
क्यो वह अब चीत्कार बनी
सिहर उठी यह धरती माँ भी
जिसने यह चीख पुकार सुनी

एक निर्भया भूले भी न
दूजी घटना फिर घट जाती है
ह्रदय दुखी कर देती 
दिल मे मायूसी भर जाती है

राख बनी है आज प्रियंका
न जाने कल क्या होगा
दहशत में जी रही बेटियाँ
इसका अंत न जाने कब होगा ?

इन वीभत्स अपराधों का 
ऐसे अंत नही होगा
दण्ड सहिंता के पन्नो पर जब तक
फाँसी का प्रबंध नही होगा 


     सुनील धबाई मन मे उठता ज्वार हमेशा,
देश मेरा किस ओर चला
हैवानो ने हदे पार की,
केंडल से विरोध हुआ

रोज कहि इन घटनाओ को
अंजाम दे दिये जाते है
सुबह बेठ कर

मन मे उठता ज्वार हमेशा, देश मेरा किस ओर चला हैवानो ने हदे पार की, केंडल से विरोध हुआ रोज कहि इन घटनाओ को अंजाम दे दिये जाते है सुबह बेठ कर #कविता

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R.S. Meena

ऐ इन्सान
एे इन्सान, इतना ना किया कर, खुद की जाति पर गुरूर।
रखता है तु कदम जहाँ, उसी धरती में से ही है मेरा अंकुर।।

लग गया मेरे हाथ उसका, जिसे तु समझता अछूत है,
झाँककर देख अपने अंदर, मचा रखी तुने भी लूट है।

विधाता मत समझ खुद को, तु नश्वर है और है मजबूर।
एे इन्सान, इतना ना किया कर, खुद की जाति पर गुरूर।

नोट पर भी तो हाथ लगे होंगे उसके, जिसने छुआ है मुझे,
नफरत भरी निगाह तेरी, एक दिन नजरों से गिरा देंगी तुझे।

तब मेरा बना हलवा भी ना ला पायेंगा, तेरे चेहरे पर नूर।
एे इन्सान, इतना ना किया कर, खुद की जाति पर गुरूर।

किसी के छुने से, नहीं बदलता है जहाँ में, पानी का रंग,
सोच बनाओ सकारात्मक और बदल लो जीने का ढंग।

कर्म से ही बदले है किस्मत, ऊँच-नीच से होती है चकनाचूर।
एे इन्सान, इतना ना किया कर, खुद की जाति पर गुरूर।

प्रकृति के उपहारों को जाति में बाँटने का ना कर तु दुस्साहस,
मत कर अपमान उन हाथों का, वो भी है तुझ से सभ्य मानस।

तोड़ कर नियम प्रकृति के, ना रह पाएँ कोई मुझसे दूर।
एे इन्सान, इतना ना किया कर, खुद की जाति पर गुरूर। हमारे बीच कुछ ऐसे इन्सान भी है, जिन्होंने पेड़-पौधो को भी जातियों में बाँटने का अशोभनीय कार्य किया है ।

मूँग की व्यथा, उसी की जुबानी
👇👇👇👇
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हमारे बीच कुछ ऐसे इन्सान भी है, जिन्होंने पेड़-पौधो को भी जातियों में बाँटने का अशोभनीय कार्य किया है । मूँग की व्यथा, उसी की जुबानी 👇👇👇👇 ऐ #yqdidi #rsmalwar

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मेरी आपबीती

कृपया अनुशीर्षक में पढ़े  
© आराधना माथे पर कुमकुम की लाली ,
आँखों मे काजल , होंठ गुलाब की पंखुड़ियों से। 
गालों पर सूरज के लालिमा- सी बिखरी हुई हया ।

जब मैं आईने में देख के श्

माथे पर कुमकुम की लाली , आँखों मे काजल , होंठ गुलाब की पंखुड़ियों से। गालों पर सूरज के लालिमा- सी बिखरी हुई हया । जब मैं आईने में देख के श् #Poetry #Stories #writersofindia #wordporn #writersofinstagram #micropoetry #poetrycommunity #wordgasm #nojotoofficial #hindiwriting #hindikavita #nojotohindi #hindishayari #storytelling #loveshayari #hindipoets #hindiwriter #nojotoapp #hindi_poetry #विचार #hindi_shayari #HindiLover #poetsofindia #igpoets #indianwriters #poemsofig #writeraofindia #sajal #aabhawrites #aaruswrites #meri_aapbeeti_ #aarukibaatein #saju #meriaapbeeti #shabdshringaar

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Sachin Ratnaparkhe


एक और निर्भया.......

(Read in Caption) 
उसकी चिता अब तक जलकर राख हो चुकी है,
देश की एक और बेटी अलविदा कहकर जा चुकी है।

इंसाफ़ का क्या है वो तो कभी मिलना है ही नहीं,
यहीं वजह है द

उसकी चिता अब तक जलकर राख हो चुकी है, देश की एक और बेटी अलविदा कहकर जा चुकी है। इंसाफ़ का क्या है वो तो कभी मिलना है ही नहीं, यहीं वजह है द

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Ravikant Raut

 कभी कभी तो सचमुच यकीन होने  लगता है कि ज़िन्दगी वाकई  एक बड़ी खूबसूरत बला है।

शरीर-विज्ञान में नोबेल पुरस्कारप्राप्त चार्ल्स राबर्ट रिशेट ने

कभी कभी तो सचमुच यकीन होने लगता है कि ज़िन्दगी वाकई एक बड़ी खूबसूरत बला है। शरीर-विज्ञान में नोबेल पुरस्कारप्राप्त चार्ल्स राबर्ट रिशेट ने

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Divyanshu Pathak

प्रेम की शुद्धता प्रेम की शुद्धता
---------------------
जीवन में कुछ ऐसा भी होता है जिसे परिभाषाओं में बांधना असंभव है।यदि हम उसे परिभाषित करने के प्रयत्न कर

प्रेम की शुद्धता --------------------- जीवन में कुछ ऐसा भी होता है जिसे परिभाषाओं में बांधना असंभव है।यदि हम उसे परिभाषित करने के प्रयत्न कर #yqdidi #YourQuoteAndMine #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #ख़यालोंकीउथलपुथल #KKसवालजवाब #पाठकपुराण #KKसवालजवाब32

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अशेष_शून्य

कुछ शेष है अगर कहीं
और उसे खोने के भय से
मैं ख़ुद को खो न दूं कहीं;

इससे कहीं बेहतर है
मैं उसे खो दूं अभी,
जो कभी न कभी 
कहीं न कहीं मुझसे 
खोने ही वाला है।
~©Anjali Rai सब कुछ खोते खोते 
मैंने सब कुछ खोने 
का भय भी खो दिया ।

कुछ शेष है अगर कहीं
और उसे खोने के भय से
मैं ख़ुद को खो न दूं कहीं;

सब कुछ खोते खोते मैंने सब कुछ खोने का भय भी खो दिया । कुछ शेष है अगर कहीं और उसे खोने के भय से मैं ख़ुद को खो न दूं कहीं; #hindipoetry #yqquotes #yqrestzone #yqaestheticthoughts #अशेष_शून्य

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अज्ञात

पेज-54
तब तक शर्मा जी ने पुरोहित और वधू पक्ष से मिलकर अपने पांडित्य का प्रभाव दिखाकर लग्नपत्रिका की बात भी कर ली.. समयाभाव के कारण कल ही लग्नपत्रिका मानक के घर भेजी जायेगी ताकि आगे का कार्यक्रम सुचारु रूप से सम्पन्न कराया जा सके..!
कथाकार ने देखा-भोजन पर आक्रमण की पूरी तैयारी है..मगर कथाकार थोड़ा मायूस.. कुछ लोग सगाई में चेहरा दिखाकर निकल लिये...! कुछ आये और कैटरर्स की मेहरबानी का लाभ लेकर भोजन शुरू होने से पहले ही फुरसत होकर निकल लिये.. कुछ लोग बहाने बनाकर निकल लिये... ऐसे कैसे चलेगा... आखिर सब्र तो लाना पड़ेगा.. उसे तो आना पड़ेगा..! सब्र नहीं तो अब्र ही सही मगर रखना पड़ेगा..!

आगे कैप्शन में.. 🙏

©R. K. Soni #रत्नाकर कालोनी 
पेज-54
रात्रि के 11:00बज चुके हैं..डी जे डान्स कबसे चल रहा है.. गर्मी का असर चमकते चेहरों पर साफ दिखाई दे रहा है मगर खुशियो

#रत्नाकर कालोनी पेज-54 रात्रि के 11:00बज चुके हैं..डी जे डान्स कबसे चल रहा है.. गर्मी का असर चमकते चेहरों पर साफ दिखाई दे रहा है मगर खुशियो #प्रेरक

41 Love

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Senti Saharan

घोर निराशा के बादलों में से कोई उम्मीदों का सूरज निकलेगा,
अंधेरों में कोई तो जुगनू रास्ता दिखाएगा,
अस्त होते सूरज के साथ ही पस्त नहीं होना मुझे
गिरकर फिर से सम्भल जाना तो पड़ेगा,
घात लगाकर विश्वासघात करने वालों की भीड़ से
सफेद कुर्ते सा चरित्र बचा के निकलना है,
मिल ही जायेगा डूबते को किसी तिनके का सहारा
किनारा तो पार करके ही मरना है,
परिस्थितियां बेशक बद से बदतर हो जाएं
हौंसला किसी भी हालत में नहीं छोड़ना है,
ओट नहीं चाहिये मुझे किसी आशियाने की,
मुझे तो इस कमबख्त तूफान का रुख मोड़ना है,
दौड़ना है बहुत लंबा अभी तो
ये दुर्गम पथ थोड़े ना मुझे डरा देगा,
रख यकीं खुद पर तू सेंटी
घोर निराशा के बादलों में से कोई उम्मीदों का सूरज निकलेगा

©Senti Saharan
  दुःसाहस

दुःसाहस #विचार

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i am Voiceofdehati

“कान्वेट" शब्द का
 वास्तविक अर्थ
 (पढ़ें 👉 अनुशीर्षक में) Vijayant Singh🔰
🤦‍♂️🤦‍♂️🤦‍♂️🤦‍♂️🤦‍♂️🤦‍♂️🤦‍♂️🤦‍♂️
#कान्वेंट ’ शब्द पर गर्व न करे...

#सच समझे। सबसे पहले तो यह जानना आवश्यक है कि ये ‘काँन्वे

Vijayant Singh🔰 🤦‍♂️🤦‍♂️🤦‍♂️🤦‍♂️🤦‍♂️🤦‍♂️🤦‍♂️🤦‍♂️ #कान्वेंट ’ शब्द पर गर्व न करे... #सच समझे। सबसे पहले तो यह जानना आवश्यक है कि ये ‘काँन्वे #yqtales #yqthoughts #सनातनधर्म #yqlongform #yqsnatni

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Anil Siwach

|| श्री हरि: || 3 - सचिन्त 'भद्र। बाबा भद्र कहाँ है?' ऐसा तो कभी नहीं हुआ कि श्याम गोदोहन करने गोष्ठ में जाय और भद्र उसे दोहिनी लिये न मिले #Books

|| श्री हरि: || 3 - सचिन्त 'भद्र। बाबा भद्र कहाँ है?' ऐसा तो कभी नहीं हुआ कि श्याम गोदोहन करने गोष्ठ में जाय और भद्र उसे दोहिनी लिये न मिले #Books

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JYOTI JHA

#PoetryTutorial 
मेरी समझ अभी बहुत कम हैं परंतु फिर भी मैं अपनी विचारधार को अभिव्यक्त करने का दुसाहस दिखा रही हूँ।
यदि कोई गलती हो तो क्षमा

#PoetryTutorial मेरी समझ अभी बहुत कम हैं परंतु फिर भी मैं अपनी विचारधार को अभिव्यक्त करने का दुसाहस दिखा रही हूँ। यदि कोई गलती हो तो क्षमा

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Anil Siwach

|| श्री हरि: || 4 - मनुष्य क्या कर सकता है? 'पशुपतिनाथ। मुझ अज्ञानीको मागे दिखाओ।' उस ठिगने किन्तु सुपुष्ट शरीर वृद्ध के नेत्र भर आये। उसके #Books

|| श्री हरि: || 4 - मनुष्य क्या कर सकता है? 'पशुपतिनाथ। मुझ अज्ञानीको मागे दिखाओ।' उस ठिगने किन्तु सुपुष्ट शरीर वृद्ध के नेत्र भर आये। उसके #Books

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