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Utkarsh Jain

ऊंची इमारतें

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इन ऊंची इमारतों से दुनिया,
कितनी खुश हाल नज़र आती है
ज़रा ऊंची इमारतों से नीचे उतर के तो देखो।
दर्द के झूलों में बच्चों को झूलते देखो, 
मजबूरी की ओढ़नी मां को ओढ़ते देखो,
अरमानों के दीयों को अंधेरी रातों में भूझते देखो,
गालियों के पैसों से बाप को रोटी खरीदते देखो,
दुनिया को देखने का नज़रिया बदल जाएगा,
नज़रों के आगे से खुशहाली का पर्दा उतर जाएगा,
ज़रा ऊंची इमारतों से नीचे उतर के तो देखो।
 ऊंची इमारतें

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जलजला ऊंची इमारते ही गिरा सकती है...

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Shubham Beakta

ऊंची इमारत #Shayari

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Meenakshi Sharma

ऊंची इमारतें #शायरी

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ऊंची इमारतों के भी बहुत घर हुआ करते हैं,
फिर भी गरीब बच्चे फुटपाथ पर सोया करते हैं,
ना जाने खुदा की बनाई इस दुनिया का यह कौन-सा 

खेल हुआ होगा जब गरीब के घर फुटपाथ पर सोने वाला यह बच्चा  हुआ होगा और अमीर का बच्चा ऊची इमारतों वाले घर में सोया होगा।

Meenakshi Sharma ऊंची इमारतें

Vijay Kumar उपनाम-"साखी"

ऊंची-ऊंची इमारते #City #कविता

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"ये ऊंची-ऊंची इमारतें"
ये शहरों की ऊंची-ऊंची,इमारतें
बता रही जनसंख्या के आंकड़े
गर अब भी हम लोग न सम्भले
बहुत जल्द होंगे बड़े-बड़े हादसे

कम चीजों से ज्यादा की चाहते
इससे हो रही,हादसों की आहटें
बढ़ रहा,भूमि पर अतिरिक्त बोझ
कत्ल हो रहे,नित ही,भू कालजे

बिगड़ रहा,पारिस्थिकी संतुलन
मनुष्य का बहुत बिगड़ गया,मन
बहुत बढ़े,प्रकृति छेड़छाड़ मामले
कुल्हाड़ी,पांवों पर खुद ही मार रहे

ये शहरों की ऊंची-ऊंची,इमारतें
मिटा रही गांवों की मासूमियतें
फूल दब रहे है,पत्थरो के तले
बहुत बिगड़ गई,हमारी आदतें

गर वक्त रहते हम लोग न सुधरे
बढ़ी जनसंख्या,पार करेंगी हदें
भुखमरी से बढ़ेगी,इतनी मौतें
एक आम खाने,मरेंगे सो-सो जने

प्रकृति से जो गर छोड़ेंगे जड़ें
फिर तो हम सूखकर ऐसे मरेंगे,
जैसे जेठ दुपहरी में बदन जले
व्यर्थ की आधुनिकता छोड़ चले

जो भी कार्य प्रकृति को हानि दे
वो कार्य हम लोग कभी न करे
जितना हम प्रकृति से जुड़ सके,
वो कार्य हम लोग अवश्य ही करे

प्रकृति मां की गोद मे सोने चले
ओर अपने सारे ही गम भूल चले
ये ज़माने की ऊंची-ऊंची इमारतें
आज तक कोई संग लेकर न चले

जिओ-जीने दो,सिद्धांत पर चले
ओर निःस्वार्थ कर्म करते हुए चले
जिसने जिंदादिली के जलाये दीये
उस रोशनी से,तम जगमगाने लगे
दिल से विजय
विजय कुमार पाराशर-"साखी"

©Vijay Kumar उपनाम-"साखी" ऊंची-ऊंची इमारते

#City

Manjul

ऊंची इमारतें
छोटे लोग..


ऊंची ऊंची इमारतों में 
छोटे छोटे लोग
बाहर से सफ़ेद कपड़े 
अंदर से सने हुए लोग..

ओहदे पर ऊंचे ऊंचे
कद में छोटे छोटे लोग..

बाते करे मीठी मीठी 
हाथ में कटार लिए लोग..

ऊंची ऊंची इमारतों में 
छोटे छोटे लोग

©Manjul Sarkar #ऊंची #इमारतें #लोग 

#BuildingSymmetry

Shivank Shyamal

ये ऊंची इमारतें, इंसानों की रूढ़िवादी सोच की तरह हैं। दोनों ही दूर की नज़र को कमज़ोर कर देती हैं।। #रूढ़िवादी #Conservative #chotisoch Noj #thought #Hindi #Inspiration #quoteoftheday #poem #nojotohindi

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ये ऊंची इमारतें,
इंसानों की रूढ़िवादी सोच की तरह हैं।
दोनों ही दूर की नज़र को कमज़ोर कर देती हैं।।

Shivank Srivastava 'Shyamal' ये ऊंची इमारतें,
इंसानों की रूढ़िवादी सोच की तरह हैं।
दोनों ही दूर की नज़र को कमज़ोर कर देती हैं।।
#रूढ़िवादी #conservative #chotisoch  #Noj

Virendra Singh Diwakar

ये ऊंची इमारतें मेरे ख्वाबों की तेरे ख्याल से होकर गुजरती है खुशियां तो बहुत है मेरे दायरे में ये मुकम्मल तेरे ख्याल से होती हैं पता नहीं क् #कविता

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ये ऊंची इमारतें मेरे ख्वाबों की
तेरे ख्याल से होकर गुजरती है
खुशियां तो बहुत है मेरे दायरे में
ये मुकम्मल तेरे ख्याल से होती हैं
पता नहीं क्यों अब ऐसा लगता है
मेरा हर ख्वाब तुझसे होकर गुजरता है
जिंदगी की उन अंधेरी गलियों में
रोशनी के दिए अब तुझसे जलता है
ये ऊंची इमारतें मेरे ख्वाबों की
तेरे शहर आने का रास्ता पूछती है
मेरे हर ख्वाब की गली अब
तुझसे ही होकर मेरे ख्वाब में आती है
ये ऊंची इमारतें मेरे ख्वाबों की
तेरे ख्याल से होकर गुजरती है
खुशियां तो बहुत है मेरे दायरे में
ये मुकम्मल तेरे ख्याल से होती हैं
@VS.Diwakar

©Virendra Singh Diwakar ये ऊंची इमारतें मेरे ख्वाबों की
तेरे ख्याल से होकर गुजरती है
खुशियां तो बहुत है मेरे दायरे में
ये मुकम्मल तेरे ख्याल से होती हैं
पता नहीं क्

Manish Unique Jaiswal

तू ही रख अपने शहर की ऊंची इमारतों को मेरा गांव का बसेरा ही काफी है।। तू ही रख अपने शहर की शाम में डूबी चकाचोंध रोशनी को

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तू ही रख
अपने शहर की ऊंची इमारतों को
मेरा गांव का बसेरा ही काफी है।।


तू ही रख 
अपने शहर की शाम में डूबी 
चकाचोंध रोशनी को
मेरा गांव का सवेरा ही काफी है ।। तू ही रख
अपने शहर की ऊंची इमारतों को
मेरा गांव का बसेरा ही काफी है।।


तू ही रख 
अपने शहर की शाम में डूबी 
चकाचोंध रोशनी को

LIFE COACH SK

शाम को थक कर टूटे झोपड़े में सो जाता है वह मजदूर जो शहर में ऊंची इमारतें बनाता है

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