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वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

कः स्वि॑देका॒की चर॑ति॒ कऽउ॑ स्विज्जायते॒ पुनः॑।
 किस्वि॑द्धि॒मस्य॑ भेष॒जं किम्वा॒वप॑नं म॒हत्॥

पद पाठ
कः। स्वि॒त्। ए॒का॒की। च॒र॒ति॒। कः। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। स्वि॒त्। जा॒य॒ते॒। पुन॒रिति॒ पुनः॑। किम्। स्वित्। हि॒मस्य॑। भे॒ष॒जम्। किम्। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। आ॒वप॑न॒मित्या॒ऽवप॑नम्। म॒हत्॥

हे विद्वानो ! हम लोग तुम को पूछते हैं कि (कः स्वित्) कौन (एकाकी) एकाएकी अकेला (चरति) विचरता है? (उ) और (कः, स्वित्) कौन (पुनः) बार-बार (जायते) प्रगट होता है? (किम्, स्वित्) क्या (हिमस्य) शीत का (भेषजम्) औषध और (किम्) क्या (उ) तो (महत्) बड़ा (आवपनम्) बीज बोने का स्थान है? ॥

Hey scholars!  We ask you (who: self) who is (lonely) lonely (charati) wandering?  (A) and (A: self), who (again) appears again and again (jayate)?  (Kim, Svitta) Is (Himsya) Cold (Bheshajam) Drug and (Kim) Is (U) So (great) big (Aappanam) is the place of sowing seeds? 

( यजुर्वेद २३.९ ) #यजुर्वेद #वेद

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

वातो॑ वा॒ मनो॑ वा गन्ध॒र्वाः स॒प्तवि॑ꣳशतिः। 
तेऽअग्रेऽश्व॑मयुञ्जँ॒स्तेऽअ॑स्मिन् ज॒वमाद॑धुः ॥

पद पाठ
वातः॑। वा॒। मनः॑। वा॒। ग॒न्ध॒र्वाः। स॒प्तवि॑ꣳशति॒रिति॑ स॒प्तऽवि॑ꣳशतिः। ते। अग्रे॑। अश्व॑म्। अ॒यु॒ञ्ज॒न्। ते। अ॒स्मि॒न्। ज॒वम्। आ। अ॒द॒धुः॒ ॥

जो विद्वान् लोग (वातः) वायु के (वा) समान (मनः) मन के (वा) समतुल्य और जैसे (सप्तविंशतिः) सत्ताईस (गन्धर्वाः) वायु, इन्द्रिय और भूतों के धारण करनेहारे (अस्मिन्) इस जगत् में (अग्रे) पहिले (अश्वम्) व्यापकता और वेगादि गुणों को (अयुञ्जन्) संयुक्त करते हैं, (ते) वे ही (जवम्) उत्तम वेग को (आदधुः) धारण करते हैं ॥

Those scholars (vatā) of vayu (vā) equal (manāh) (vā) equivalent of mind and the like (saptvisantih) twenty-seven (gandharvaः) vayu, senses and ghosts (āsmīn) in this world (agra) in the first (ashvām)  ) (Unity) combines the broadness and velocity properties, (te) they (Jvam) hold the best velocity (adhudh).

( यजुर्वेद ९.७ ) #यजुर्वेद #मंत्र #वेद

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।

भे॒ष॒जम॑सि भेष॒जं गवेऽश्वा॑य॒ पुरु॑षाय भेष॒जम्।
 सु॒खं मे॒षाय॑ मे॒ष्यै ॥५९॥

पद पाठ

भे॒ष॒जम्। अ॒सि॒। भे॒ष॒जम्। गवे॑। अश्वा॑य। पुरु॑षाय। भे॒ष॒जम्। सु॒खमिति॑ सु॒ऽखम्। मे॒षाय॑। मे॒ष्यै ॥

हे जगदीश्वर ! जो आप (भेषजम्) शरीर, अन्तःकरण, इन्द्रिय और गाय आदि पशुओं के रोगनाश करनेवाले (असि) हैं (भेषजम्) अविद्यादि क्लेशों को दूर करनेवाले (असि) हैं सो आप (नः) हम लोगों के (गवे) गौ आदि (अश्वाय) घोड़ा आदि (पुरुषाय) सब मनुष्य (मेषाय) मेढ़ा और (मेष्यै) भेड़ आदि के लिये (सुखम्) उत्तम-उत्तम सुखों को अच्छी प्रकार दीजिये ॥

Hey Jagadishwar!  You (Bheshjam) who are the disinfectants (Asi) of the body, conscience, senses and animals etc.  For the beginning (Purushaya), all human beings (Aries), the ram and (Messiah) the sheep etc. (Sukham) give the best of the best pleasures.

( यजुर्वेद ३.५९ ) #यजुर्वेद #वेद #संध्या_वंदना

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।
सा वि॒श्वायुः॒ सा वि॒श्वक॑र्मा॒ सा वि॒श्वधा॑याः।
 इन्द्र॑स्य त्वा भा॒गꣳ सोमे॒नात॑नच्मि॒ विष्णो॑ ह॒व्यꣳर॑क्ष ॥४॥

पद पाठ
सा। वि॒श्वायु॒रिति॑ वि॒श्वऽआ॑युः। सा। वि॒श्वक॒र्मेति॑ वि॒श्वऽक॑र्मा। सा। विश्वधा॑या॒ इति॑ वि॒श्वऽधा॑याः। इन्द्र॑स्य। त्वा॒। भा॒गं। सोमे॑न। आ। त॒न॒च्मि॒। विष्णो॒ इति॒ वि॒ष्णो॑। ह॒व्यं। र॒क्ष॒ ॥


हे (विष्णो) व्यापक ईश्वर ! आप जिस वाणी का धारण करते हैं, (सा) वह (विश्वायुः) पूर्ण आयु की देनेवाली (सा) वह (विश्वकर्मा) जिससे कि सम्पूर्ण क्रियाकाण्ड सिद्ध होता है और (सा) वह (विश्वधायाः) सब जगत् को विद्या और गुणों से धारण करनेवाली है। पूर्व मन्त्र में जो प्रश्न है, उसके उत्तर में यही तीन प्रकार की वाणी ग्रहण करने योग्य है, इसी से मैं (इन्द्रस्य) परमेश्वर के (भागम्) सेवन करने योग्य यज्ञ को (सोमेन) विद्या से सिद्ध किये रस अथवा आनन्द से (आ तनच्मि) अपने हृदय में दृढ़ करता हूँ तथा हे परमेश्वर ! (हव्यम्) पूर्वोक्त यज्ञ सम्बन्धी देने-लेने योग्य द्रव्य वा विज्ञान की (रक्ष) निरन्तर रक्षा कीजिये ॥

O (Vishno) broad God!  The voice you hold, (sa) she (vishvayuah), who gives full life (sa), she (vishwakarma) that proves the whole action and (sa) she (vishvadhyaya), who wears all the world with knowledge and virtues.  is.  In response to the question in the former mantra, this is the only type of speech that is acceptable to you, from this I (Indrasya) proved the (Bhagam) consumable yajna of God with (soman) knowledge, from the juice or joy (aa tanmi)  ) I am strong in my heart and O God!  (Havayam) Continually protect (protect) material and science related to the aforesaid sacrifice.

( यजुर्वेद १.४ ) #यजुर्वेद #वेद #विष्णु

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।

अश्वत्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता ।

अश्वत्थ ( पीपल के वृक्ष ) पर तुम्हारी बैठना है ,पत्ता तुम्हारा वसति:-वास है ।

You are sitting on peepal tree and live on the leaves.

( यजुर्वेद ३५.४ ) #यजुर्वेद #वेद #पीपल

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

उ॒रु वि॑ष्णो॒ विक्र॑मस्वो॒रु क्षया॑य नस्कृधि।
 घृतं घृ॑तयोने पिब॒ प्रप्र॑ य॒ज्ञप॑तिं तिर॒ स्वाहा॑ ॥

पद पाठ
उ॒रु। वि॒ष्णो॒ऽइति॑ विष्णो। वि। क्र॒म॒स्व॒। उ॒रु। क्षया॑य। नः॒। कृ॒धि॒। घृ॒तम्। घृ॒त॒यो॒न॒ इति॑ घृतऽयोने। पि॒ब॒। प्रप्रेति॒ प्रऽप्र॑। य॒ज्ञप॑ति॒मिति॑ य॒ज्ञऽप॑तिम्। ति॒र॒। स्वाहा॑ ॥

जैसे परमेश्वर अपनी व्यापकता से कारण को प्राप्त हो सब जगत् के रचने और पालने से सब जीवों को सुख देता है, वैसे आनन्द में हम सभों को रहना उचित है। जैसे अग्नि काष्ठ आदि इन्धन वा घृत आदि पदार्थों को प्राप्त हो प्रकाशमान होता है, वैसे हम लोगों को भी शत्रुओं को जीत प्रकाशित होना चाहिये, और जैसे होता आदि विद्वान् लोग धार्मिक यज्ञ करनेवाले यजमान को पाकर अपने कामों को सिद्ध करते हैं, वैसे प्रजास्थ लोग धर्मात्मा सभापति को पाकर अपने-अपने सुखों को सिद्ध किया करें ॥

Just as God attains reason through his comprehensiveness, he creates happiness for all living beings by creating and sustaining the world, so it is appropriate for all of us to live in joy.  Just as fire, wood, fire, etc., are received by such things, we should also illuminate our enemies, and just like that, scholars will prove their works by finding a Yajman who performs religious sacrifices, the people like that  Find your righteous chairman and prove your happiness.

( यजुर्वेद ५.३८ ) #यजुर्वेद #वेद #मंत्र

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

परी॒मे गाम॑नेषत॒ पर्य॒ग्निम॑हृषत।
 दे॒वेष्व॑क्रत॒ श्रवः॒ कऽ इ॒माँ२ऽ आ द॑धर्षति ॥

पद पाठ
परि॑। इ॒मे। गाम्। अ॒ने॒ष॒त॒। परि॑। अ॒ग्निम्। अ॒हृ॒ष॒त॒ ॥ दे॒वेषु॑। अ॒क्र॒त॒। श्रवः॑। कः। इ॒मान्। आ। द॒ध॒र्ष॒ति॒ ॥

जो राजपुरुष पृथिवी के समान धीर, अग्नि के तुल्य तेजस्वी, अन्न के समान अवस्थावर्द्धक होते हुए धर्म से प्रजा की रक्षा करते हैं, वे अतुल राजलक्ष्मी को पाते हैं ॥

Those men who protect the people from religion by being patient like Prithivi, glittering like fire, stagnant like food, find Atul Rajalakshmi.

( यजुर्वेद ३५.१८ ) #यजुर्वेद #वेद  #मंत्र

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

नमो॑ विसृ॒जद्भ्यो॒ विद्ध्य॑द्भ्यश्च वो॒ नमो॒ नमः॑ स्व॒पद्भ्यो॒ जाग्र॑द्भ्यश्च वो॒ नमो॒ नमः॒ शया॑नेभ्य॒ऽआसी॑नेभ्यश्च वो॒ नमो॒ नम॒स्तिष्ठ॑द्भ्यो॒ धाव॑द्भ्यश्च वो॒ नमः॑ ॥

पद पाठ
नमः॑। वि॒सृ॒जद्भ्य॒ इति॑ विसृ॒जत्ऽभ्यः॑। विद्ध्य॑द्भ्य॒ इति॒ विद्ध्य॑त्ऽभ्यः। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। स्व॒पद्भ्य॒ इति॑ स्व॒पत्ऽभ्यः॑। जाग्र॑द्भ्य॒ इति॒ जाग्र॑त्ऽभ्यः। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। शया॑नेभ्यः। आसी॑नेभ्यः। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। तिष्ठ॑द्भ्य इति॒ तिष्ठ॑त्ऽभ्यः। धाव॑द्भ्य॒ इति॒ धाव॑त्ऽभ्यः। च॒। वः॒। नमः॑ ॥

गृहस्थों को चाहिये कि करुणामय वचन बोल और अन्नादि पदार्थ देके सब प्राणियों को सुखी करें ॥

Householders should make all beings happy by uttering compassionate words and giving them everyday food.

( यजुर्वेद १६ .२३ ) #यजुर्वेद #वेद #मंत्र

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

कः स्वि॑देका॒की चर॑ति॒ कऽउ॑ स्विज्जायते॒ पुनः॑।
 किस्वि॑द्धि॒मस्य॑ भेष॒जं किम्वा॒वप॑नं म॒हत्॥

पद पाठ
कः। स्वि॒त्। ए॒का॒की। च॒र॒ति॒। कः। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। स्वि॒त्। जा॒य॒ते॒। पुन॒रिति॒ पुनः॑। किम्। स्वित्। हि॒मस्य॑। भे॒ष॒जम्। किम्। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। आ॒वप॑न॒मित्या॒ऽवप॑नम्। म॒हत्॥

हे विद्वानो ! हम लोग तुम को पूछते हैं कि (कः स्वित्) कौन (एकाकी) एकाएकी अकेला (चरति) विचरता है? (उ) और (कः, स्वित्) कौन (पुनः) बार-बार (जायते) प्रगट होता है? (किम्, स्वित्) क्या (हिमस्य) शीत का (भेषजम्) औषध और (किम्) क्या (उ) तो (महत्) बड़ा (आवपनम्) बीज बोने का स्थान है? ॥

Hey scholars!  We ask you (who: self) who is (lonely) lonely (charati) wandering?  (A) and (A: self), who (again) appears again and again (jayate)?  (Kim, Svitta) Is the (ice) cold (Bheshajam) medicine and (Kim) is (U) so (great) big (Aappanam) is the place to sow seeds?  

( यजुर्वेद २३.९ ) #यजुर्वेद #वेद #प्रश्न

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

प्र॒जाप॑तौ त्वा दे॒वता॑या॒मुपो॑दके लो॒के नि द॑धाम्यसौ। 
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥

पद पाठ
प्र॒जाप॑ता॒विति॑ प्र॒जाऽप॑तौ। त्वा॒। दे॒वता॑याम्। उपो॑दक॒ इत्युप॑ऽउदके। लो॒के। नि। द॒धा॒मि॒। अ॒सौ॒ ॥ अप॑। नः॒। शोशु॑चत्। अ॒घम् ॥

हे जीव ! जो (असौ) यह लोक (नः) हमारे (अघम्) पाप को (अप, शोशुचत्) शीघ्र सुखा देवे, उस (प्रजापतौ) प्रजा के रक्षक (देवतायाम्) पूजनीय परमेश्वर में तथा (उपोदके) उपगत समीपस्थ उदक जिसमें हों (लोके) दर्शनीय स्थान में (त्वा) आप को (नि दधामि) निरन्तर धारण करता हूँ ॥

Hey creature  Which (Asau) this lok (nah) shall dry our (agham) sin (up, Shoshuchat) soon, the (Prajapatau) protector of the subjects (Devatayam) in the venerable God and (Upodake) subordinate Udkat in which (Lokay) is visible  In the place (Twa), I keep you (childless) constantly.

( यजुर्वेद ३५.६ ) #यजुर्वेद #वेद #धारणकर्त्ता
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