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Kh_Nazim
हर घडी में लम्हा-ए-ज़िन्दगी मुकामल नहीं होती, यक़ीन रख सब्र-ए-मोहब्बत पे। क्योंकि किसी के जाने से ज़िन्दगी अधूरी नहीं होती। यक़ीन #मुकामल #सब्र #जाने #khnazim
ittu Sa
part-6 एक उम्र खर्च कर दी मैंने तब हिज्र मिला हैं। हिज्र-ए-दौलत लुटा दूँ ये कैसे गिला करते हो। अश्को से हिज्र बहा दूँ ,मरने की खुशी मिली हैं। मौत मुकामल हो जाये, हिज्र की ये गलती हैं। ©ittu Sa blog- http://ittusaphenomenal.blogspot.com/2021/09/blog-post_22.html part-6 एक उम्र खर्च कर दी मैंने तब हिज्र मिला हैं। हिज्र-ए-दौलत लुटा
ashish gupta
कुछ ख्वाइश ऐसी भी अपनी ही ख्वाइशों से बंधी कुछ ख्वाहिशों की आरजू है की वो मुकामल हो जाए देखी जो ख्वाब ख्वाहिशों ने बस जमीन पर उतर जाए आसमान को लेकर बाहों में चांद सितारों से मिल जाए भागती लहरों संग दौड़ में दरिया हंसता हुआ पार करा जाए पहाड़ों की ऊंची ऊंची चोटी पंछियों पर चढ़ी जाए जब चाहे रोक ले वक्त को चलो वक्त को हराया जाए यू ही कुछ ख्वाहिश आशीष की साथ साथ चलती जाए ©ashish gupta #RailTrack कुछ ख्वाइश ऐसी भी अपनी ही ख्वाइशों से बंधी कुछ ख्वाहिशों की आरजू है की वो मुकामल हो जाए
Vikas Sharma Shivaaya'
दशहरा के मंत्र रावनु रथी बिरथ रघुबीरा-देखि बिभीषन भयउ अधीरा।। अधिक प्रीति मन भा संदेहा-बंदि चरन कह सहित सनेहा।। रावण को रथ और श्रीराम को पैदल देखकर बिभीषन अधीर हो गए और प्रभु से स्नेह अधिक होने पर उनके मन में संदेह आ गया कि प्रभु कैसे रावण का मुकाबल करेंगे। श्रीराम के चरणों की वंदना कर वो कहने लगे। नाथ न रथ नहि तन पद त्राना-केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥ सुनहु सखा कह कृपानिधाना-जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥ हे नाथ आपके पास न रथ है, न शरीर की रक्षा करने वाला कवच और पैरों में पादुकाएं हैं, इस तरह से रावण जैसे बलवान वीर पर जीत कैसे प्राप्त हो पाएगी? कृपानिधान प्रभु राम बोले- हे सखा सुनो, जिससे जय होती है, वह रथ ये नहीं कोई दूसरा ही है॥ सौरज धीरज तेहि रथ चाका-सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका ॥ बल बिबेक दम परहित घोरे-छमा कृपा समता रजु जोरे ॥ इस चौपाई में श्रीराम ने उस रथ के बारे में बताया है जिससे जीत हासिल की जाती है। धैर्य और शौर्य उस रथ के पहिए हैं। सदाचार और सत्य उसकी मजबूत ध्वजा और पताका हैं। विवेक, बल, इंद्रियों को वश में करने की शक्ति और परोपकार ये चारों उसके अश्व हैं। ये क्षमा, दया और समता रूपी डोरी के जरिए रथ में जोड़े गए हैं। ईस भजनु सारथी सुजाना-बिरति चर्म संतोष कृपाना ॥ दान परसु बुधि सक्ति प्रचंडा-बर बिग्यान कठिन कोदंडा ॥ इस चौपाई में प्रभु ने सारथी के बारे में बताया है। जो रथ को चलाता है। ईश्वर का भजन ही रथ का चतुर सारथी है । वैराग्य ढाल है और संतोष तलवार है। दान फरसा है, बुद्धि प्रचण्ड शक्ति है, श्रेष्ठ विज्ञान धनुष है। अमल अचल मन त्रोन समाना-सम जम नियम सिलीमुख नाना ॥ कवच अभेद बिप्र गुर पूजा-एहि सम बिजय उपाय न दूजा ॥ पाप से मुक्त और स्थिर मन तरकस के समान है। वश में किया हुआ मन, यम-नियम, ये बहुत से बाण हैं। ब्राह्मणों और गुरु का पूजन अभेद्य कवच है। इसके समान विजय का दूसरा उपाय नहीं है। सखा धर्ममय अस रथ जाकें-जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें ॥ हे सखा (बिभीषन) यदि किसी योद्धा के पास ऐसा धर्ममय रथ हो तो उसके सामने शत्रु होता ही नहीं, वो हर क्षेत्र में जीत हासिल करता है। महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर।। हे धीरबुद्धि वाले सखा सुनो, जिसके पास ऐसा दृढ़ रथ हो, वह वीर संसार (जन्म मरण का चक्र) रूपी महान दुर्जय शत्रु को भी जीत सकता है,फिर रावण को जीतना मुश्किल कैसे हो सकता है। सुनि प्रभु बचन बिभीषन हरषि गहे पद कंज एहि मिस मोहि उपदेसेहु राम कृपा सुख पुंज ।। प्रभु श्रीराम के वचन सुनकर बिभीषन प्रफुल्लित हो गए और उन्होंने प्रभु के चरण पकड़कर कहा, हे प्रभु, आपने इस युद्ध के बहाने मुझे वो महान उपदेश दिया है जिससे जीवन के किसी भी क्षेत्र में विजय पाने का मार्ग मिल गया है। ये मंत्र पाकर मैं धन्य हो गया 🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' दशहरा के मंत्र रावनु रथी बिरथ रघुबीरा-देखि बिभीषन भयउ अधीरा।। अधिक प्रीति मन भा संदेहा-बंदि चरन कह सहित सनेहा।। रावण को रथ और श्रीराम