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जिसे हम तिरंगा कहते हैं वो तो चौरंगा है वास्तव में इतना बडा़ झूठ कहा किसने हमको यूं बरगलाया किसने ७५ सालों से गलत पढाया किसने इतिहास को विकृत बनाया जिसने केसरिया सफेद हरा रंग है तिरंगे का पर बीच में चक्र का रंग तो नीला है कुल चार रंगों का राष्ट्र ध्वज है अपना फिर तिरंगा कहना तो ठीक नहीं है या हम सब कलर ब्लाइंड हो गये हैं राष्ट्र ध्वज हमारी आन बान शान है उसके सारे रंग हम सबकी पहचान हैं फिर नीले रंग को हम क्यों भूल गये हैं अशोक चक्र का रंग क्यों याद नहीं है वस्तृत: राष्ट्र ध्वज के कुल चार रंग हैं जो केसरिया सफेद हरा संग नीला हैं यही यथार्थ है और यही पूर्ण सत्यार्थ है इन्ही चार रंगों में बसा भारत का भावार्थ है राष्ट्रध्वज का सत्यार्थ
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केसरिया हरा सफेद तो सबको याद है राष्ट्रध्वज के ये तीन रंग पर असली रंग तो मध्य में है नीला उस ही सब लोग क्यों भूल गये जो प्रतीक है बल पौरुष वीरता का जो प्रतिनिधित्व करता सागर और आकाश का नीला रंग है निशानी जल तत्व का उसे ही हम सभी क्यों भूल गये हैं चार रंगों के राष्ट्रध्वज को तिरंगा कहते झूम रहे हैं सत्य पर असत्य ओढाये क्यों मंत्रमुग्ध हो रहे हैं जागो भारतवासियों जागो ! राष्ट्रध्वज के चार रंगों के भावार्थ पहचानो इनके निहितार्थ को मानो राष्ट्रध्वज के हैं चार रंग
BANDHETIYA OFFICIAL
कस गया नकेल,बंदा था बड़ा गुस्सैल, जिंदगी जिंदगी की ही हो रहेगी रखैल। ©BANDHETIYA OFFICIAL #नकेल कसा! #lovequote
Harishchandra Dalvi
कवी कसा बनु मी कोणी मला सांगेल का? कविता कशी लिहू मी कोणी मला समजवल का? कविता लिहता येते वाटते कविता बोलायला कोणी मला शिकवेल का? यमक शब्द आठवत नाही कोणी शब्दकोष पाठवाल का ? एकटा बसून विचार करतो कविता माझी सर्वाना आवडेल का ? कवी बनायची इच्छा आहे इच्छा पूर्ण होईल का ? कवी : हरीश्चंद्र मुकुंद दळवी कवी कसा बनू
आशिष गंगाधरजी चोले
कसा रे मर्दा तू माणूसकी विसरला स्वतःची आई बहीण विसरून तुझी हवस तू जोपासला पूर्ण करण्यात हवस तुझी कुठली रे मर्दानगी तुझ्या या हवसिने लागली सम्पूर्ण समजाला ठिणगी दुर्भाग्य तिचे ती बनायला निघाली होती सबला तुझ्याच अश्या कर्मकांडाने ती पुन्हा झाली अबला दृष्ट बुद्धी विचाराने माजून तू शैतान झालास तुझ्याच या भोंगळ विकृत भावनेला तू पुरुषार्थ समजलास कसा रे मर्दा तू माणूसकी विसरला नव्हताच दोष तिचा कुठला न तिची वाटही नव्हती चुकली तुझ्या हैवानी जाळ्यात ती विना पर्यायी फसली विधात्यालाही तुला बनवून पश्चात्ताप झाली अरे नराधमा अशी विकृत हवस तुझी कसली नालायक पणे तू माणुसकी भोसकला कसा रे मर्दा तू माणूसकी विसरला लेखन:- आशिष गंगाधरजी चोले । कसा रे मर्दा